आगरा से अच्छी खबर : इंजीनियरिंग के छात्रों को मिली बड़ी सफलता, खारे पानी को पीने योग्य बनाया... 

इंजीनियरिंग के छात्रों को मिली बड़ी सफलता, खारे पानी को पीने योग्य बनाया... 
UPT | राजा बलवंत सिंह इंजीनियरिंग टेक्निकल कैंपस बिचपुरी

Jul 06, 2024 16:53

आगरा में पानी की समस्या कई दशकों से चली आ रही है। सरकारें आईं और गईं, लेकिन पानी की समस्या जस की तस बनी रही। इसी जल संकट के कारण आगरा से अकबर को पलायन करना पड़ा था। यही जल संकट...

Jul 06, 2024 16:53

Agra News : आगरा में पानी की समस्या कई दशकों से चली आ रही है। सरकारें आईं और गईं, लेकिन पानी की समस्या जस की तस बनी रही। इसी जल संकट के कारण आगरा से अकबर को पलायन करना पड़ा था। यही जल संकट आज भी आगरा में बरकरार है। बेशक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में आगरा को गंगाजल उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन आगरा के पानी मांग को पूरा करने के लिए यह नाकाफी है। सरकार से लेकर न्यायालय तक सब जानते हैं कि आगरा का पानी खारा है और यह डार्क जोन में है। 

दूर हो सकता है जल संकट
देश के तमाम वैज्ञानिक आगरा के जल संकट को दूर करने के लिए प्रयास करते रहे हैं। लेकिन आगरा में जल संकट जारी है। आगरा के इसी खारे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए सौर ऊर्जा माध्यम से उन्नत उपकरण बनाया गया है। इससे पारंपरिक सिस्टम की क्षमता और उत्पादकता दोनों बढ़ जाती हैं। आगरा के राजा बलवंत सिंह इंजीनियरिंग टेक्निकल कैंपस बिचपुरी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के चार छात्रों ने यह काम किया है। खारे पानी को पीने योग्य पानी बनाने का सफल प्रयोग करने वाली टीम के प्रोजेक्ट गाइड इंजी. अरुण सिंह और इंजी. दीपेश शर्मा ने बताया कि हेमिस्फेरिकल सौर ऊर्जा चालित वाटर डिस्टिलेशन उपकरण (स्टिल) को बनाने में छात्रों को 6 माह का समय लगा। इस पर कुल 14,500 रुपये की लागत आई है। 

ऐसे काम करता है उपकरण
संस्थान के निदेशक प्रो. बीएस कुशवाह ने बताया कि यह नवाचार भविष्य में पेयजल संकट का एक उचित समाधान हो सकता है। इसमें सोलर ऊर्जा से समुद्री जल को डिस्टिल्ड वाटर में बदला जाता है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के यशस्वी कुमार सिंह, हर्षिता अग्रवाल, समीक्षा और यश तेत्रिया ने इस पारंपरिक स्टिल में बदलाव किया है। फेस चेंज मैटेरियल (पीसीएम) के साथ-साथ पैराबोलिक रिफ्लेक्टर का प्रयोग किया है, जिसमें कॉपर ट्यूब से सिंथेटिक ऑयल प्रवाह किया जाता है। यह पैराबोलिक रिफ्लेक्टर से प्राप्त ऊष्मा को स्टिल के बेसिन तक ले जाता है। इससे सिस्टम की दक्षता बढ़ जाती है। पारंपरिक सोलर स्टिल में कुल उत्पादकता जहां 920 से 1000 मिली प्रतिदिन होती है, अधिकतम तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक जाता है। वहीं, छात्रों के मोडिफाइड स्टिल की उत्पादकता 3.5 लीटर प्रतिदिन है, तापमान अधिकतम 72 डिग्री सेल्सियस तक जाता है।

इनका रहा अहम योगदान
इंजीनियरिंग अंतिम वर्ष के छात्रों ने कहा कि इस स्टिल का साइज यदि बड़ा बनाया जाए तो उत्पादकता और भी बढ़ जाएगी। विभागाध्यक्ष डॉ. अमित अग्रवाल ने कहा कि इससे कोई भी स्टार्टअप शुरू हो सकता है। निदेशक वित्त एवं प्रशासनिक प्रो. पंकज गुप्ता ने कहा कि छात्र हमेशा से देश व समाज के लिए नित नए अविष्कार करते आ रहे हैं। छात्रों के इस कार्य में विभाग के अनुराग कुलश्रेष्ठ, अभिषेक दीक्षित और राघवेंद्र सिंह का अहम योगदान रहा है।

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