Mathura News : धूमधाम से मनाई भगवान श्रीराम-सीता विवाह की वर्षगांठ, दूल्हा बने भगवान के दर्शन कर धन्य हुए नगरवासी

धूमधाम से मनाई भगवान श्रीराम-सीता विवाह की वर्षगांठ, दूल्हा बने भगवान के दर्शन कर धन्य हुए नगरवासी
UPT | राम बारात में शामिल नगरवासी

Dec 06, 2024 13:06

मथुरा जिले के राया कस्बे में श्रद्धालुओं ने भगवान श्री राम और माता सीता के पवित्र विवाह समारोह में भाग लिया। स्थानीय रेतिया बाजार स्थित श्री राम मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम ने पौराणिक परंपराओं को जीवंत कर दिया।

Dec 06, 2024 13:06

Mathura News : मथुरा जिले के राया कस्बे में स्थित मांट रोड के पास रेतिया बाजार स्थित श्रीराम मंदिर में भगवान श्रीराम और माता सीता का भव्य विवाह समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में हजारों की संख्या में कस्बे के निवासी और भक्तगण एकत्रित हुए और श्रीराम और सीता के विवाह के साक्षी बने। हर वर्ष की तरह इस साल भी राया कस्बे में यह धार्मिक उत्सव धूमधाम से मनाया गया। 

समाजसेवी किशोर अग्रवाल ने अपने परिवार और मित्रों के साथ भगवान श्रीराम की शानदार बारात निकाली। भगवान श्रीराम को घोड़े पर सवार करके बारात राया कस्बे के प्रमुख मार्गों से होते हुए रेतिया बाजार स्थित मंदिर तक पहुंची। यह बारात मांट रोड, मथुरा रोड, कटरा बाजार होते हुए रेतिया बाजार मंदिर पहुंची। इस दौरान बैंड बाजे की धुनों ने पूरे कस्बे को श्रद्धा और उत्सव के माहौल से भर दिया। कस्बे के लोग भगवान श्रीराम की बारात में शामिल हो कर उनके दर्शन कर आनंदित हुए और विवाह समारोह का हिस्सा बने।

विवाह पंचमी और उसकी धार्मिक महत्ता 
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था। यह दिन हर वर्ष श्रीराम और सीता के विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक रूप से इस दिन को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन विधि-विधान से श्रीराम और सीता का विवाह कराने से घर में सुख-समृद्धि आती है और दांपत्य जीवन में भी खुशहाली बनी रहती है।

राम और सीता का विवाह कैसे हुआ था?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने अवतार लेकर राजा दशरथ के घर श्रीराम के रूप में जन्म लिया। वहीं मिथिला के राजा जनक जब खेतों में हल चला रहे थे, तो धरती से एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपनाया और उसका नाम सीता रखा। 

सीता के बड़े होने पर राजा जनक ने एक स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें यह शर्त रखी गई कि जो भी व्यक्ति भगवान शिव के अदम्य धनुष को तोड़ पाएगा, वही सीता से विवाह करेगा। यह धनुष इतना मजबूत और अद्वितीय था कि इसे तोड़ना असंभव माना जाता था। कई राजकुमारों ने प्रयास किया, लेकिन कोई भी धनुष को उठाने में सफल नहीं हो सका।

तब भगवान श्रीराम ने अपने गुरु वशिष्ठ से अनुमति प्राप्त की और धनुष के पास पहुंचे। उन्होंने शांत मन से धनुष की प्रत्यंचा खींची और वह धनुष दो टुकड़ों में टूट गया। यह अद्भुत दृश्य देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। इसके बाद, सीता ने वरमाला लेकर अपनी सखियों के साथ श्रीराम के पास पहुंचकर विवाह की प्रक्रिया पूरी की। 

विवाह पंचमी का महत्व और आस्थाएं
तब से लेकर आज तक, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की वर्षगांठ मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है और इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, श्रीराम के विवाह की कथा का श्रवण करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। साथ ही, यह दांपत्य जीवन में भी सुख और सामंजस्य लाने का कारण माना जाता है। 

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