हाईकोर्ट का अहम फैसला : विधवा बेटी को भी अनुकंपा नियुक्ति का हक, विवाह या वैवाहिक स्थिति बाधा नहीं

UPT | Allahabad High Court Lucknow Bench

Nov 23, 2024 09:34

हाईकोर्ट ने बीएसएनएल को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता की अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी पर दो महीने के भीतर विचार करे। कोर्ट ने कहा कि महज वैवाहिक स्थिति के आधार पर उसकी अर्जी खारिज करना अनुचित है।

Lucknow News : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु होने पर उसकी विधवा पुत्री को भी अनुकंपा नियुक्ति का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाहित या विधवा होना अनुकंपा नियुक्ति के दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।

याचिका पर सुनवाई और फैसला
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश पुनीता भट्ट उर्फ पुनीता धवन की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिकाकर्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि वह मृतक कर्मचारी की विधवा पुत्री है।



बीएसएनएल के निर्देश को कोर्ट ने ठहराया अनुचित
पुनीता ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के उस निर्देश को भी चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि मृतक कर्मचारी की विधवा पुत्री अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। कोर्ट ने बीएसएनएल के इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि विधवा पुत्री को भी पुत्री की श्रेणी में माना जाएगा।

दो महीने में नियुक्ति पर विचार का आदेश
हाईकोर्ट ने बीएसएनएल को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता की अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी पर दो महीने के भीतर विचार करे। कोर्ट ने कहा कि महज वैवाहिक स्थिति के आधार पर उसकी अर्जी खारिज करना अनुचित है।

कानूनी नजीर स्थापित करने वाला फैसला
हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले से न केवल विधवा पुत्रियों के अधिकारों को मजबूती प्रदान की है, बल्कि इसे सरकारी सेवाओं में लैंगिक समानता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण आदेश माना जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि कानूनी दृष्टि से विधवा पुत्री को पुत्री के समान अधिकार प्राप्त हैं, और इस आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।

मामले का महत्व
यह मामला उन परिवारों के लिए अहम है, जिनमें सरकारी कर्मचारी की असमय मृत्यु हो जाती है और परिवार को आर्थिक सुरक्षा की जरूरत होती है। कोर्ट के इस फैसले से न केवल याचिकाकर्ता बल्कि ऐसी स्थिति में अन्य परिवारों को भी न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

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