प्रदूषण से नदियों और समुद्र का बढ़ता संकट : मछलियों-समुद्री भोजन के जरिए इंसानों तक पहुंच रहा जहर

UPT | प्रदूषण से जहरीली होती नदियां

Nov 30, 2024 12:36

समुद्री जीवन में बढ़ते प्रदूषण के कारण किडनी और लिवर से जुड़ी बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लंबे समय तक मछलियों और सी फूड का सेवन करने से लोगों में फैटी लिवर और किडनी फेल्योर जैसी बीमारियां देखने को मिल रही हैं।

Lucknow News : टेनरी, फर्टिलाइजर और केमिकल उद्योगों से निकलने वाला जहरीला कचरा नदियों और समुद्रों में मिलकर गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन उद्योगों से निकलने वाले कैडमियम, लेड, जिंक, कॉपर जैसे खतरनाक हैवी मेटल्स पानी में घुलकर समुद्री जीवन को जहरीला बना रहे हैं। इस जहरीले प्रभाव का सीधा असर मछलियों और सी फूड पर पड़ रहा है, जो मानव जीवन के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। 

मछलियों के जरिए हमारी प्लेट तक पहुंच रहा है जहर
अंतरराष्ट्रीय विष विज्ञान सम्मेलन में कोचीन से आए वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस विजॉय नंदन के मुताबिक नदियों में घुलते जहरीले तत्व सबसे पहले छोटे जलीय जीवों और लार्वा को प्रभावित करते हैं। इन छोटे जीवों को मछलियां खाती हैं और फिर यह मछलियां इंसानी भोजन का हिस्सा बनती हैं। इस तरह, उद्योगों का कचरा खाद्य श्रृंखला के जरिए इंसानों तक पहुंचकर गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है।



कोचीन तट पर किडनी और लिवर के मरीजों में वृद्धि
कोचीन के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर किए गए शोधों में यह पाया गया है कि समुद्री जीवन में बढ़ते प्रदूषण के कारण किडनी और लिवर से जुड़ी बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लंबे समय तक मछलियों और सी फूड का सेवन करने से लोगों में फैटी लिवर और किडनी फेल्योर जैसी बीमारियां देखने को मिल रही हैं। यह समस्या कोचीन तट के आसपास के इलाकों में विशेष रूप से चिंताजनक है।

मछलियों के डीएनए में हो रहा बदलाव
शोध में यह भी पाया गया कि नदियों और समुद्र में घुल रहे जहरीले तत्वों के कारण मछलियों की जैविक संरचना में बदलाव हो रहा है। उनके किडनी, आंखें और अन्य अंग गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। यहां तक कि जीनो टॉक्सिसिटी के कारण मछलियों के डीएनए में भी परिवर्तन देखा जा रहा है, जो समुद्री जीवन के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है।

गोमती नदी में प्रदूषण से खत्म हो रहीं मछलियों की प्रजातियां
लखनऊ की गोमती नदी एक वक्त में शहर की जीवनरेखा मानी जाती थी। लेकिन, अब प्रदूषण का शिकार हो चुकी है। गोमती में पहले 55 प्रजातियों की मछलियां पाई जाती थीं। लेकिन, अब यह संख्या घटकर मात्र 15 से 20 प्रजातियों तक रह गई है। नदी में बेलगगरा, टेंगना, कतला, सिघरी और पटरा प्रजातियां गायब हो गई हैं। गोमती में नालों का गंदा पानी और ऑक्सीजन की कमी इस गिरावट के मुख्य कारण हैं। जून 2023 में नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से बड़ी संख्या में मछलियों की मौत हुई थी।

नेशनल वाटर क्वालिटी गाइडलाइन की जरूरत
डॉ. विजॉय नंदन ने सुझाव दिया कि भारत में नदियों और समुद्रों के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जल गुणवत्ता मानक बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नदियों और समुद्रों का पानी अब मानक से चार गुना अधिक जहरीला हो चुका है। हालांकि सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन यह प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।

खतरनाक आंकड़े  : मर्करी और अन्य जहरीले तत्वों का खतरा
कोचीन के तटवर्ती क्षेत्रों में मर्करी (पारा) का उच्च स्तर दर्ज किया गया है। यह तत्व मछलियों और अन्य समुद्री जीवों को तेजी से जहरीला बना रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में दक्षिणी-पश्चिमी कोचीन तट, नदी के तटवर्ती इलाके और समुद्री पोषक क्षेत्र हैं। समुद्र और नदियों के प्रदूषण से केवल पर्यावरण ही नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ रहा है। जहरीले हैवी मेटल्स के कारण इंसानों में कैंसर, किडनी फेल्योर, लिवर डैमेज, और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

समाधान की दिशा में अहम कदम जरूरी
प्रदूषण नियंत्रण : टेनरी, फर्टिलाइजर, और केमिकल उद्योगों के अपशिष्ट को नदियों में डालने पर सख्त रोक।
जल गुणवत्ता की निगरानी : हर जिले में जल गुणवत्ता की नियमित जांच।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट : सभी बड़े शहरों में सीवेज को साफ करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग।
जन जागरूकता अभियान : आम जनता को नदियों और समुद्रों के प्रदूषण के खतरे के प्रति जागरूक करना।

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