Meerut News : सिंघाड़ा की खेती कर लखपति हुए किसान लिख रहे कामयाबी की नई इबारत

UPT | सिंघाड़ा की फसल

Nov 01, 2024 09:39

मेरठ मंडल के किसान परंपरागत खेती से विमुख हो रहे हैं। मंडल के मेरठ, हापुड और बुलंदशहर के किसान सिंघाड़ा की खेती से लखपति होकर कामयाबी की नई इबारत गढ रहे हैं।

Short Highlights
  • नकद फसल के रूप में किसान अपना रहे सिंघाड़ा खेती
  • मेरठ के किठौर, शाहजहापुर बेल्ट में हो रही सिंघाडा की खेती
  • उपजाऊ जमीन पर सिघाड़े की खेती के अच्छे परिणाम  
Meerut News : मेरठ, हापुड और बुलंदशहर में किसान सिंघाड़ा की फसल को नकद फसल के रूप में अपना रहे हैं। मेरठ की किठौर—शाहजहापुर बेल्ट और बुलंदशहर के शिकारपुर तहसील क्षेत्र में किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़ दिया है। 

सोच में आया बदलाव तो बदली किस्मत
सोच में बदलाव के कारण किसानों की किस्मत बदली है।  जिले की पहचान अब सिघाड़ा उत्पादक के रूप में होने लगी है। यहां किसानों ने बड़े स्तर पर सिघाड़े की फसल को अपने खेतों में जगह देकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है। जिले के अहमदगढ़ में किसानों ने एक दशक पहले सिघाड़े की फसल बोने की शुरुआत की थी। उपजाऊ जमीन पर सिघाड़े की खेती शुरू करने पर इसके अच्छे परिणाम सामने आए। समय बदला और अब अहमदगढ़ क्षेत्र में तमाम किसान सिघाड़े की खेती कर रहे हैं। 

सिघाड़ा उत्पादक किसानों का कहना है
सिघाड़ा उत्पादक किसानों का कहना है कि पहले के मुकाबले अब परंपरागत खेती करना काफी मुश्किल भरा हो गया है। आलू, धान, मक्का, गेहूं, गन्ने की खेती अब किसानों के लिए अधिक लाभकारी नहीं रही। लगातार महंगी होती खेती के कारण ही किसानों का परंपरागत खेती से मोहभंग हो रहा है।


तीन हजार की लागत पर 15-20 हजार कमाई 
मेरठ जिला उद्यान अधिकारी अरूण कुमार का कहना है कि किसान को एक बीघा जमीन में सिघाड़े की फसल तैयार करने में तीन हजार रुपए की लागत आती है। जबकि फसल तैयार होने पर पंद्रह से बीस हजार की आमदनी आसानी से होती है। सीजन में सिघाड़ा तीस से पैंतीस रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक जाता है। 

आवारा पशुओं से कोई नुकसान नहीं
फसल को आवारा पशुओं से कोई नुकसान नहीं होता है। उन्होंने बताया कि मेरठ और आसपास के जिलों में नहरों का जाल बिछा हुए हैं। जो कि सिघाड़े की खेती के लिए काफी उपयोगी है। 

बेल डालकर भर देते हैं 4-5 फुट पानी 
बुलंदशहर के लखावटी ब्रांच की मध्य गंग नहर मामऊ, अहमदगढ़, पापड़ी, ढकनगला, सालबानपुर, दारापुर, मोरजपुर,  सैदगढ़ी, बुधपुर और मुरादपुर आदि गांव के मध्य होकर गुजर रही है। नहर में पानी आते ही किसान अपने-अपने खेतों की डौल ऊंची कर उसमें करीब 4-5 फुट तक पानी भर देते हैं। इसके बाद खेतों में सिघाड़ा की बेल डाल दी जाती है।
 

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