जजों के खिलाफ भी लगाया जा सकता है महाभियोग : जानें क्या है संवैधानिक प्रक्रिया, न्यायाधीश शेखर कुमार यादव के खिलाफ उठी ये मांग

UPT | Allahabad High Court

Dec 11, 2024 19:50

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव को उनके हालिया बयान को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव को उनके हालिया बयान को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा था कि कानून को बहुमत के अनुसार होना चाहिए। इस बयान के बाद, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने उन पर हमला बोला और उन्हें पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात कही। इस मुद्दे को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से रिपोर्ट मांगी, हालांकि अभी तक इस पर कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। यह पहली बार नहीं है जब किसी उच्च न्यायिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की बात हो रही है।

जज पर महाभियोग प्रस्ताव लाना संभव
बता दें कि भारत में उच्च न्यायालय के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना संविधानिक प्रक्रिया के तहत संभव है। संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के अनुसार, अगर किसी जज के खिलाफ गलत आचरण या कार्यक्षमता की कमी के आरोप हैं, तो उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। हालांकि, यह प्रक्रिया काफी जटिल है और इसके लिए संसद के एक सदन में प्रस्ताव पारित होना जरूरी है। इसके बाद, एक विशेष समिति जज के आचरण की जांच करती है और अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो प्रस्ताव को दोनों सदनों में पास करना पड़ता है, जिसके बाद राष्ट्रपति जज को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।



इन मामलों में लाया जा सकता है महाभियोग प्रस्ताव
जजों के खिलाफ महाभियोग के लिए ‘गलत आचरण’ या ‘अक्षमता’ की कोई एक स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ज्यूडिशियल एथिक्स के तहत आचरण और नैतिकता से जुड़ी कुछ गाइडलाइन्स जारी की हैं। इसके अनुसार, अगर कोई जज रिश्वतखोरी जैसे गंभीर आरोपों से घिरा हो या उसकी कार्य क्षमता प्रभावित हो, तो उसे महाभियोग का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, अगर कोई जज मानसिक या शारीरिक समस्याओं के कारण न्यायिक फैसले लेने में असमर्थ हो, या उसकी कानून की समझ पर सवाल उठते हों, तो भी महाभियोग लाया जा सकता है।

महाभियोग प्रस्ताव लाने की पूरी प्रक्रिया
  • महाभियोग का प्रस्ताव सबसे पहले संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है।  
  • प्रस्ताव के लिए लोकसभा में कम से कम 100 या राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है।  
  • प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद, एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट का जज भी शामिल होता है।  
  • अगर समिति आरोपों को सही पाती है, तो महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है।  
  • इस प्रस्ताव को पास करने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है।  
  • अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश दे सकते हैं।
निजी मौकों पर बोलने के दिशानिर्देश
भारत में न्यायपालिका के उच्च पदों पर बैठे जजों के लिए कोई विशेष आचारसंहिता नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को अपने शब्दों के अर्थ का पूरा ज्ञान होता है। ऐसे जजों से यह उम्मीद की जाती है कि वे सार्वजनिक रूप से बोलते समय, चाहे वह किसी निजी कार्यक्रम में ही क्यों न हों, हर बयान सोच-समझ कर दें। इसके अलावा, जजों को अदालत में चल रहे मामलों पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि इससे अदालत के निर्णय पर असर पड़ सकता है। संवेदनशील मामलों में भी जजों को कुछ बोलने से बचने की हिदायत दी जाती है, जब तक वह बात अदालत में न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी जानकारी
जस्टिस यादव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी मांगी है। सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट इस जानकारी को समझने के लिए अपनी जजों की एक समिति गठित कर सकता है, जो इस मामले की जांच करेगी। अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह रिपोर्ट संसद को भेजी जाएगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट खुद इस मामले पर कोई सीधा एक्शन नहीं ले सकता। महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद, राष्ट्रपति संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश दे सकते हैं और यह एक संवैधानिक प्रक्रिया होगी। इसके बाद उस जज को सरकारी सेवाओं में शामिल नहीं किया जा सकेगा। 

जजों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत जजों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है, जैसे आम नागरिकों को होती है। हालांकि, अनुच्छेद 19(2) के तहत, इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि जब कोई मामला न्यायालय में हो, तो उस पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करना या कोई ऐसा कार्य करना, जिससे उस मामले पर प्रभाव पड़े, यह संविधान द्वारा निषिद्ध है। इस प्रकार, जजों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को उनके पद की जिम्मेदारियों के अनुसार सीमित किया गया है।

पहले भी लाया गया महाभियोग प्रस्ताव
भारत में महाभियोग का प्रस्ताव कभी-कभी उठाया जाता है। 1990 के दशक की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाभियोग लाया गया था, लेकिन वह प्रस्ताव लोकसभा में पास नहीं हो सका। इसके बाद, कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाभियोग का प्रस्ताव आया, लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसी तरह, 2018 में विपक्षी दलों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश की, लेकिन राज्यसभा के सभापति ने इसे खारिज कर दिया।

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