आजमगढ़ के कमलगट्टे की चीन में खूब डिमांड : मुंहमांगे दाम पर खरीद रहे कारोबारी, किसान हो रहे मालामाल

मुंहमांगे दाम पर खरीद रहे कारोबारी, किसान हो रहे मालामाल
UPT | आजमगढ़ के कमलगट्टे की चीन में खूब डिमांड

Aug 12, 2024 01:57

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के बड़ैला और सगड़ी क्षेत्र के विशाल तालों में उगने वाला कमलगट्टा अब वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। इन तालों में विशेष रूप से ताल सलोना में कमलगट्टा का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है।

Aug 12, 2024 01:57

Short Highlights
  • कमल के फूल से बनता है कमलगट्टा
  • कई देशों में है कमलगट्टे की डिमांड
  • स्थानीय किसानों को हो रहा फायदा
Azamgarh News : उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के बड़ैला और सगड़ी क्षेत्र के विशाल तालों में उगने वाला कमलगट्टा अब वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। इन तालों में विशेष रूप से ताल सलोना में कमलगट्टा का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। पहले, कमलगट्टा स्थानीय स्तर पर ही बिकता था और किसानों को इसके लिए बहुत कम कीमत मिलती थी। लेकिन हाल के वर्षों में, कोलकाता और वाराणसी से कारोबारी इस विशेष बीज को 200-300 रुपये प्रति किलो के दर से खरीदने लगे हैं, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिल रहा है। इसका प्रमुख उपयोग चीन समेत कई विदेशी बाजारों में पोषक तत्वों से भरपूर आहार के रूप में किया जा रहा है।

कई देशों में है कमलगट्टे की डिमांड
कमलगट्टा की बढ़ती मांग का मुख्य कारण इसकी पौष्टिकता है। चीन, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, इंग्लैंड और नेपाल जैसे देशों में इसका जबरदस्त क्रेज देखा जा रहा है। खासकर चीन में कमलगट्टा का उपयोग पौष्टिक आहार के रूप में किया जा रहा है, जिससे वहां इसके निर्यात की मांग लगातार बढ़ रही है। भारत से हर साल करीब दो हजार टन कमलगट्टा निर्यात किया जाता है, जिससे देश को अच्छी खासी विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इसके अलावा, इस बीज की निरंतर बढ़ती मांग ने व्यापारियों को भी लाभ पहुँचाया है, जिन्होंने अब इसे बेहतर दाम पर खरीदना शुरू कर दिया है।

पहले कौड़ियों के दाम पर बिकता था
कमलगट्टा की बढ़ती मांग से आजमगढ़ के स्थानीय किसानों को भी बड़ा लाभ हो रहा है। पहले जहां यह बीज स्थानीय बाजार में कौड़ियों के दाम पर बिकता था, वहीं अब किसान इसे उच्च मूल्य पर बेच पा रहे हैं। विशेषकर वाराणसी और कोलकाता के व्यापारियों द्वारा खरीदारी की जा रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। हर साल सितंबर से अक्टूबर के बीच कमलगट्टा की कटाई होती है, और फिर इसे विदेशी बाजारों में भेजा जाता है। इस प्रक्रिया ने किसानों को पहले से कहीं अधिक आर्थिक स्थिरता प्रदान की है।

कमल के फूल से बनता है कमलगट्टा
कमलगट्टा, कमल के फूलों के सूखने पर निकलने वाले बीज होते हैं, जो आकार में गोल और काले होते हैं। यह बीज स्वाभाविक रूप से तालों में उगता है और इसकी विशेष खेती नहीं की जाती। किसान बस कमल के फूलों को एकत्र कर उन्हें सुखाते हैं और फिर बीज निकालते हैं। कमलगट्टा का उपयोग पूजा सामग्री में भी किया जाता है, खासकर लक्ष्मी पूजन के दौरान। इसे 108 बीजों के रूप में भी पूजा में प्रयोग किया जाता है, जब कमल का फूल उपलब्ध नहीं होता।

बीपी, शुगर में है लाभकारी
कमलगट्टा का सेवन कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसमें पोटेशियम, सोडियम, विटामिन बी, सी, ए, ई, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइटोकेमिकल्स जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं। ये तत्व शरीर को ताकत और पोषण प्रदान करने के साथ-साथ बीपी, शुगर और अन्य गंभीर बीमारियों से बचाने में भी सहायक होते हैं। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण शरीर की कई समस्याओं में राहत प्रदान करते हैं। कमलगट्टा का नियमित सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है और इसे एक संतुलित आहार का हिस्सा माना जा सकता है।

स्थानीय किसानों को हो रहा फायदा
कृषि विज्ञान केंद्र लेदौरा के अध्यक्ष एलसी वर्मा ने पुष्टि की है कि आजमगढ़ के बड़ैला और सगड़ी तहसील के सलोना ताल में कमलगट्टा पैदा होता है। स्थानीय किसान इन तालों से कमलगट्टा निकालते हैं और उच्च मूल्य पर बेचते हैं। वर्मा ने कहा कि यह बीज स्थानीय किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत बन गया है। इसके निर्यात से न केवल किसानों को फायदा हो रहा है, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है।

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