अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। राममंदिर का नाम आते ही 'कार सेवक' शब्द भी चर्चा में आता है। कार का अर्थ होता है कर यानी हाथ और सेवक का मतलब है सेवा करने वाला। कारसेवकों ने जिस मंशा से राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया था, वह दिन आने वाला है। हम आपको कुछ ऐसे लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं , जो राम मंदिर आंदोलन के साक्षी रहे। पढ़िए खास रिपोर्ट...
इतिहास के साक्षी : वो पल याद करके आंखें भर आती हैं नागर परिवार की, मुकदमा लड़ते-लड़ते हार गए जिंदगी
Jan 19, 2024 12:05
Jan 19, 2024 12:05
- आडवाणी-जोशी के साथ नामजद हुए कानपुर के डॉ. नागर का परिवार झेल रहा आर्थिक तंगी
- कुल तेरह नामजदों में शामिल थे डॉ. नागर, उमा भारती, विनय कटियार, ऋतंबरा, परमहंस के साथ में थे नामजद
- उस दिन पुलिस की गोली से उन्नीस साल के छोटे भाई अमित की हो गई थी मौत
- मुकदमा लड़ते-लड़ते 2007 में डॉ. नागर की हुई मौत, परिवार आर्थिक बदहाली का हुआ शिकार
भाई को गोली लगी थी और वो नामजद थे
शिव सैनिक कोठारी ब्रदर्स की तरह कानपुर के किदवई नगर निवासी नागर ब्रदर्स का बलिदान और योगदान विवादित ढांचा प्रकरण में कुछ कम नहीं था। उस दिन डॉक्टर नागर के छोटे भाई अमित कुमार नागर की पुलिस फायरिंग के दौरान अयोध्या में मौके पर ही मौत हो गई थी। अमित मात्र 19 साल के थे। डॉ. नागर के छोटे बेटे सुधांशु नागर बताते हैं कि पिताजी की उम्र उस समय करीब तीस साल की रही होगी। पिताजी पहली एफआईआर में नामजद हुए थे। उनके साथ ही लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंम्बरा, बाला साहेब ठाकरे, स्वामी रामचंद्र परमहंस, राम विलास वेदांती जैसे बड़े-बड़े नाम थे, जो नामजद थे। कुल 13 नामजदों में अंतिम नाम उनके पिताजी का था। सुधांशु बताते हैं कि तब उनकी उम्र पांच साल और बड़े भैया की उम्र सात साल की रही होगी।
कोर्ट के चक्कर काटते-काटते हार गए जिंदगी
पुरानी बातें याद करके सुधांशु की आंखों में पानी तैरने लगा। कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को अदालतों के चक्कर लगाते ही देखा है। लखनऊ और रायबरेली में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट्स थीं। अदालतों की परिक्रमा करते-करते पिताजी की दोनों क्लीनिक बंद हो गईं। दोनों भाईयों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई। फिलहाल सुधांशु जनसेवा केंद्र चलाते हैं, जबकि बड़े भाई दक्ष नागर पिकअप के ड्राइवर हैं और व्यापारिक माल एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि माता जी आदर्श नागर बताती थीं कि अक़्सर सीबीआई अदालत की सुनवाई में जाने के लिए डॉ. साहब के पास पैसे तक नहीं होते थे। वह अपने दोस्तों और शुभचिंतकों से रुपये लेकर लखनऊ और रायबरेली जाते थे। इसी झंझावात से उलझते-सुलझते साल 2007 में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई।
कोई सुध लेने वाला नहीं
सुधांशु बताते हैं कि आज तक न किसी अधिकारी ने उनके परिवार की खोज खबर ली न किसी नेता ने। पिता जी को मुकदमेबाजी का सिरदर्द तो था ही, अपने छोटे भाई अमित की मौत का भी गम था। अमित की पीठ में गोली लगी थी, जिसने उनका पूरा सीना फाड़ दिया था। भाई को याद कर अक्सर पिताजी बेहाल हो जाते थे। इसी गम को लेकर 54 साल की उम्र में ही वे चल बसे। अब राम मंदिर बन रहा है, इसके बाद भी उन्हें कोई न्योता नहीं आया।
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