लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने एक साथ मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला किया। जिसका फायदा दोनों पार्टियों को इस चुनाव में मिला। सपा के सांसद जहां 5 से बढ़कर 37 हो गए तो वहीं कांग्रेस के भी एक से 6 सांसद इस चुनाव में हो गए।
कांग्रेस का एक से छह सांसद तक का सफर : गठबंधन और चुनावी वादे से मिला फायदा, लेकिन अभी भी दहाई नंबर से दूर
Jun 06, 2024 18:43
Jun 06, 2024 18:43
- 2019 के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी तो 2014 के चुनाव में 2 सीटें हासिल हुई थी
- इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी को कुल 6 सीटें मिली है
सपा-कांग्रेस का गठबंधन
लोकसभा चुनाव शुरू होने से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने एक साथ मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला किया। जिसका फायदा दोनों पार्टियों को इस चुनाव में मिला। सपा के सांसद जहां 5 से बढ़कर 37 हो गए तो वहीं कांग्रेस के भी एक से 6 सांसद इस चुनाव में हो गए। दोनों पार्टियों के इस परफॉर्मेंस का श्रेय मजबूती के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने को जाता है। यह पहली दफा था जब लोकसभा के चुनाव में दोनों पार्टी एक साथ चुनाव लड़ रही थीं। इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां साथ आई थीं लेकिन कांग्रेस को कुछ खास फायदा इस चुनाव में नहीं हुआ था।
संविधान बचाने की अपील
कांग्रेस पार्टी और विपक्षी दल ने इस चुनाव को संविधान बचाने का चुनाव घोषित कर दिया था। कांग्रेस के नेता खासकर राहुल गांधी अपनी हर रैली में इसका जिक्र करते थे कि यह चुनाव संविधान बचाने का चुनाव है। रैली को संबोधित करते हुए कहते थे कि अगर भाजपा फिर से सरकार में आती है तो वो संविधान में बदलाव कर देगी और देश को अपने हिसाब से चलाएगी। भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने इस तरह का बयान भी दिया था कि अगर 400 पर सांसद हमारे चुनकर आते हैं तो देश की भलाई के लिए संविधान में शंशोधन किया जा सकता है। राहुल गांधी अपनी हर रैली में संविधान की एक कॉपी हाथ में लेकर जनता को संबोधित करते थे। इसका भी प्रभाव वोटों पर पड़ा है। कांग्रेस पार्टी जनता तक यह बात पहुंचाने में कामयाब हो गए। जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिला।
जातीय जनगणना का वादा
संविधान बचाने के साथ ही कांग्रेस पार्टी ने जातीय जनगणना का भी मुद्दा बहुत जोर-शोर से उठाया। कांग्रेस पार्टी का कहना था कि अगर उनकी सरकार आती है तो देशभर में जातीय जनगणना करवाया जाएगा। जिसके आधार पर इस बात की जानकारी मिलेगी कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं। साथ ही कांग्रेस पार्टी का यह भी दावा था कि जातीय जनगणना से देश के सभी वर्गों के लोगों को सामान हिस्सेदारी मिलेगी और उचित अधिकार उनको मिलेगा।
चुनावी वादे
कई राजनीतिक मुद्दों के साथ ही कांग्रेस पार्टी ने कई ऐसे वादे भी किए जो लोगों को सीधे फायदा पहुंचाने वाली थी। चुनाव के दौरान राहुल गांधी का खटाखट वाला बयान काफी चर्चा में रहा था। जिसमें उन्होंने अकाउंट बैंक खाते में सीधे पैसे भेजने की बात कही थी। महालक्ष्मी योजना के तहत परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला को 1 लाख रूपये सालाना देने की बात कांग्रेस पार्टी ने की थी। साथ ही युवाओं को ग्रेजुएशन खत्म होते ही नौकरी देने का वायदा कांग्रेस पार्टी ने किया था। इसके अलावा कर्जमाफी एमएसपी की गारंटी जैसे कई वादे थे जो कांग्रेस पार्टी ने चुनाव के दौरान किए।
भाजपा प्रत्याशियों से नाराजगी
कांग्रेस के चुनाव में पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने का एक कारण यह भी रहा कि भाजपा के कई प्रत्याशियों को लेकर उनके संसदीय क्षेत्र में काफी नाराजगी थी। स्थानीय जनता भाजपा के प्रत्याशी और मौजूदा सांसद के काम से नाराज थे। इस बात का जानकारी भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं को थी, इसलिए पार्टी कई सांसदों के टिकट काटने के बारे में भी सोच रही थी लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया। जिसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा और विपक्षी दलों को इसका फायदा मिला। भाजपा के कई उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही अपनी नैया पार लगाने की जुगत में थे।
इस चुनाव में जरूर कांग्रेस पार्टी के 6 सांसद प्रदेश से चुनकर आएं हैं लेकिन अभी भी पार्टी के पास सम्मानजनक नंबर प्रदेश में नहीं हैं। दहाई के आकड़ें से भी पार्टी अभी 4 सांसद दूर है। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी से तनुज पुनिया, रायबरेली से राहुल गांधी, सहारनपुर से इमरान मसूद, सीतापु से राकेश राठौर,अमेठी से किशोरी लाल शर्मा और इलाहाबाद से उज्जवल रमण सिंह सांसद बने हैं। साथ ही पूरे देश में भी कांग्रेस पार्टी 100 का आंकड़ा नहीं छू पाई हैं। देशभर में कांग्रेस पार्टी के मात्र 99 सांसद चुनकर आएं हैं।
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