KGMU : जुड़वां गर्भावस्था के साथ 35 किलोग्राम की महिला के दिल का वॉल्व सिकुड़ा, बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी से बचाई गई तीन जिदंगी

जुड़वां गर्भावस्था के साथ 35 किलोग्राम की महिला के दिल का वॉल्व सिकुड़ा, बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी से बचाई गई तीन जिदंगी
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Jan 06, 2025 18:06

बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी या बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमिया एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसे माइट्रल वाल्व स्टेनोसिस के उपचार के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया माइट्रल वाल्व में संकुचन या रुकावट को दूर करने के लिए की जाती है।

Jan 06, 2025 18:06

Lucknow News : किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के चिकित्सकों ने जटिल मामले में एक साथ तीन जिंदगी बचाने में सफलता हासिल की है। इस गर्भवती महिला की जिंदगी बेहद खतरे में थी और एक-एक सांस उसके लिए भारी हो रही थी। साथ ही इसके गर्भ में पल रहे दो बच्चे भी खतरे से जूझ रहे थे। ऐसे में केजीएमयू के चिकित्सकों ने मॉडर्न मेडिकल साइंस की बदौलत सर्जरी के जरिए तीन जिंदगियों को बचाने का काम किया। महिला के स्वास्थ्य पर बराबर नजर रखी जा रही है। चिकित्सकों ने सही समय पर उसका प्रसव कराने की भी बात कही है।

महज 35 किलोग्राम है गर्भवती महिला का वजन
केजीएमयू के लारी कार्डियोलॉजी विभाग में डॉक्टरों ने एक दुर्लभ और जटिल चिकित्सा प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम देकर एक साथ तीन जीवन बचाए। इस केस में 28 वर्षीय गर्भवती महिला का वजन केवल 35 किलोग्राम था और पेट में जुड़वां भ्रूण थे। महिला दिल के वॉल्व यानी माइट्रल स्टेनोसिस के सिकुड़ने के कारण सांस लेने में असमर्थ थी।



जटिल ऑपरेशन की सफलता
महिला को बाराबंकी से गंभीर स्थिति में केजीएमयू लाया गया। जहां, शुरुआती जांच के बाद उसे स्त्री एवं प्रसूति विभाग से कार्डियोलॉजी विभाग में रेफर किया गया। हृदय के माइट्रल वॉल्व में गंभीर संकुचन के कारण डॉक्टरों ने बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी प्रक्रिया का निर्णय किया। इस चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया को डॉ. ऋषि सेठी के मार्गदर्शन में डॉ. प्रवेश विश्वकर्मा ने अंजाम दिया।

कम वजन, एनीमिया और संक्रमण ने बढ़ाई चुनौती
डॉ. प्रवेश विश्वकर्मा ने बताया कि महिला का वजन बेहद कम था और उसे एनीमिया और हेपेटाइटिस सी का संक्रमण भी था। यह संक्रमण ऑपरेटिंग टीम के लिए अतिरिक्त जोखिम पैदा कर रहा था। इन सभी जटिलताओं के बावजूद महिला और उसके जुड़वां भ्रूणों की जान बचाई गई। डॉ. ऋषि सेठी ने बताया कि हृदय रोग से पीड़ित महिलाओं के लिए गर्भावस्था अत्यंत जोखिमपूर्ण हो सकती है। यह स्थिति मां और भ्रूण दोनों के लिए घातक हो सकती है। कुछ गंभीर हृदय रोगों में गर्भधारण वर्जित होता है। लेकिन, कई महिलाएं अपनी स्थिति को अनदेखा करते हुए गर्भधारण कर लेती हैं। ऐसी स्थिति में हृदय रोग और गर्भावस्था दोनों का प्रबंधन करना डॉक्टरों के लिए अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होता है।

बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी प्रक्रिया क्या है?
बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी या बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमिया एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसे माइट्रल वाल्व स्टेनोसिस के उपचार के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया माइट्रल वाल्व (हृदय के बाएं एट्रियम और बाएं वेंट्रिकल के बीच स्थित वाल्व) में संकुचन या रुकावट को दूर करने के लिए की जाती है। माइट्रल वाल्व स्टेनोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें माइट्रल वाल्व संकरा हो जाता है और हृदय के बाएं एट्रियम से बाएं वेंट्रिकल में रक्त का प्रवाह बाधित होता है। इसका मुख्य कारण रूमैटिक फीवर हो सकता है, जिससे वाल्व की सतह मोटी या कठोर हो जाती है।

बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी की प्रक्रिया
इस प्रक्रिया में डॉक्टर जांघ या कभी-कभी हाथ में एक छोटी चीरा लगाते हैं और वहां से एक पतला कैथेटर यानी एक प्रकार की ट्यूब को डालते हैं। यह कैथेटर धमनियों के जरिए हृदय तक पहुंचाया जाता है। कैथेटर के सिरे पर एक छोटा बैलून लगा होता है। इसे माइट्रल वाल्व के संकुचित हिस्से में ले जाया जाता है। बैलून को धीरे-धीरे फुलाया जाता है, जिससे माइट्रल वाल्व खुल जाता है और रक्त प्रवाह को सामान्य कर दिया जाता है।बैलून को बाद में डिफ्लेट (फुलाने के बाद खाली) कर दिया जाता है और कैथेटर को शरीर से बाहर निकाल लिया जाता है। यह प्रक्रिया उन मरीजों के लिए उपयुक्त होती है जिन्हें माइट्रल वाल्व स्टेनोसिस है और इसके लक्षण जैसे सांस फूलना, थकान, या छाती में दर्द महसूस हो रहे हैं। सर्जरी के बजाय एक कम जोखिम वाली प्रक्रिया की जरूरत है। वाल्व में कैल्शियम डिपॉजिट या थक्के न हों।

बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी के लाभ
  •     यह सर्जरी की तुलना में कम इनवेसिव प्रक्रिया है।
  •     रिकवरी समय तेजी से होता है।
  •     जटिलताओं का जोखिम कम होता है।
  •     लक्षणों में तेजी से सुधार होता है।
चिकित्सकों के मुताबिक बैलून माइट्रल वाल्वोटॉमी एक प्रभावी प्रक्रिया है जो माइट्रल वाल्व स्टेनोसिस से पीड़ित मरीजों के लिए राहत प्रदान करती है। यह सर्जरी का एक बेहतर विकल्प है। डॉक्टर इस प्रक्रिया को मरीज की स्थिति और वाल्व के स्वास्थ्य के आधार पर सलाह देते हैं।

विपन्न योजना से मिला निःशुल्क इलाज
महिला की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब थी। उसे उत्तर प्रदेश सरकार की विपन्न योजना के तहत नि:शुल्क इलाज उपलब्ध कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि महिला की गर्भावस्था की अवधि पूरी होने पर उसका प्रसव कराया जाएगा। इस ऑपरेशन ने न केवल चिकित्सा विज्ञान की प्रगति को दर्शाया है, बल्कि डॉक्टरों के सामूहिक प्रयास की सफलता पर भी मुहर लगाई है। ऑपरेशन के दौरान टीम में शामिल अन्य विशेषज्ञों, जैसे डॉ. मोनिका भंडारी, डॉ. प्राची शर्मा, डॉ. गौरव चौधरी, डॉ. अखिल शर्मा और डॉ. उमेश त्रिपाठी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्त्री एवं प्रसूति विभाग के प्रो. अमिता पांडेय, प्रो. अंजू अग्रवाल, प्रो. शालिनी, और प्रो. नम्रता ने महिला और भ्रूणों की देखभाल सुनिश्चित की। केजीएमयू की कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने इस चिकित्सा उपलब्धि के लिए पूरी टीम को बधाई दी है।

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