पूर्वांचल के पनियाले को मिलेगा पुनर्जीवन : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल
UPT | पनियाले फल को लेकर सीएम योगी की पहल

Jul 25, 2024 02:48

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पूर्वांचल के लुप्तप्राय हो रहे पनियाले फल को पुनर्जीवित करने का अभियान शुरू किया गया है। इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम देने के लिए लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने पिछले वर्ष से प्रयास आरंभ कर दिए हैं।

Jul 25, 2024 02:48

Short Highlights
  • पनियाला फल औषधीय गुणों से भरपूर
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पहुंचेगा किसानों तक लाभ
Lucknow News : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पूर्वांचल के लुप्तप्राय हो रहे पनियाले फल को पुनर्जीवित करने का अभियान शुरू किया गया है। इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम देने के लिए लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने पिछले वर्ष से प्रयास आरंभ कर दिए हैं। संस्थान के निदेशक टी दामोदरन के अनुसार, इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य न केवल पनियाले के पौधों की संख्या बढ़ाना है, बल्कि उनकी उत्पादकता और फलों की गुणवत्ता में भी सुधार लाना है। इस प्रयास में गोरखपुर का जिला उद्यान विभाग और स्थानीय प्रगतिशील किसान भी सहयोग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, बागवानों को कैनोपी प्रबंधन का प्रशिक्षण देकर बागों के रखरखाव को आसान बनाने की योजना है। यह पहल न केवल एक लुप्तप्राय फल को बचाएगी, बल्कि क्षेत्र के किसानों के लिए आय का एक नया स्रोत भी विकसित करेगी।

पांच छह दशक पूर्व पूर्वांचल में खूब मिलता था पनियाला
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र, विशेषकर गोरखपुर, देवरिया और महाराजगंज में पाया जाने वाला पनियाला फल, जो कभी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था, अब लुप्तप्राय की श्रेणी में आ गया है। पांच-छह दशक पहले इन क्षेत्रों में आसानी से मिलने वाला यह फल अब दुर्लभ हो गया है। पनियाला अपने विशिष्ट स्वाद के लिए जाना जाता है, जो खट्टा, मीठा और हल्का कसैला होता है। जामुनी रंग के इस गोल या चपटे फल को हाथ में लेकर थोड़ा मसलने पर इसका स्वाद और मधुर हो जाता है। स्वाद में अनूठा होने के साथ-साथ पनियाला कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इस अनोखे फल के संरक्षण के प्रयास न केवल क्षेत्र की जैव विविधता को बचाएंगे, बल्कि स्थानीय संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान को भी संरक्षित करने में मदद करेंगे।
 
पनियाला बचाने और बेहतर गुणवत्ता के पौध तैयार करने पर जोर
पिछले साल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया। इस अध्ययन के दौरान, प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र और डॉ. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने लिए। वे बताते हैं कि इन फलों का भौतिक और रासायनिक विश्लेषण अब संस्था की प्रयोगशाला में किया जाएगा, ताकि इनमें मौजूद विविधता को समझा जा सके। इन प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उन्हें संरक्षित किया जाएगा और कलमी विधि से नए पौधे तैयार किए जाएंगे। इन नए पौधों को किसानों और बागवानों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे पनियाला की गुणवत्ता में सुधार हो सके और वह लुप्त होने से बचाया जा सके।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किसानों तक पहुंचेगा लाभ
डॉ. दुष्यंत ने बताया कि पिछले वर्ष के सर्वेक्षण में, सीजन के अंत में होने के कारण, उत्तम गुणवत्ता के फल नहीं मिल पाए। फिर भी, प्राप्त नमूनों से एक विकास ब्लॉक बनाया गया है। इस वर्ष, वैज्ञानिक दशहरे के आसपास, जो पनियाला का मुख्य मौसम होता है, फिर से सर्वेक्षण करेंगे। इस बार वे सर्वोत्तम गुणवत्ता के फलों का चयन कर उनका विस्तृत परीक्षण करेंगे। चुने गए सर्वश्रेष्ठ फलों से ही नर्सरी तैयार की जाएगी, जो बाद में किसानों को वितरित की जाएगी। संस्थान के निदेशक टी दामोदरन ने आश्वासन दिया है कि वे किसानों को न केवल तकनीकी सहायता प्रदान करेंगे, बल्कि उत्पाद के लिए बाजार उपलब्ध कराने में भी मदद करेंगे।

एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल से भरपूर पनियाला 
गोरखपुर का पनियाला फल न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि इसके औषधीय गुणों के कारण यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है। पनियाला के पत्ते, छाल, जड़ें और फल सभी में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो कई पेट संबंधी रोगों में लाभदायक हैं। स्थानीय लोग इसका उपयोग दांत दर्द, मसूड़ों की समस्याओं, खांसी, निमोनिया और गले की खराश जैसी बीमारियों के इलाज में करते हैं। इसके अलावा, पनियाला के फल में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट्स लीवर की बीमारियों में भी मददगार साबित हुए हैं। फल, लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाया गया है। पनियाला के फल में विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट भी मिलते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300 से 400 रुपये किलो तक बिक जाते हैं | इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास जारी है। पनियाला के फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है। लकड़ी, जलावन और कृषि कार्यो के लिए उपयोगी है।

पनियाला के लिए संजीवनी साबित होगी जीआई
औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला के लिए जीआई टैगिंग संजीवनी साबित होगी। इससे लुप्तप्राय हो चले इस फल की पूछ बढ़ जाएगी। सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेराकोटा की तरह गोरखपुर का खास ब्रांड होगा।

पूर्वांचल के दर्जन भर जिलों के लाखों किसान परिवार होंगे लाभान्वित
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के वरिष्ठ हॉर्टिकल्चर वैज्ञानिक डॉक्टर एस पी सिंह के अनुसार, जीआई टैग मिलने के लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को ही मिलेगा, बल्कि इससे देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी लाभ होगा। ये सभी जिले एक ही एग्रोक्लाइमेटिक जोन में आते हैं, और इनके कृषि उत्पादों की गुणवत्ता भी एक जैसी होगी।

जीआई टैग के लाभ 
जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) किसी विशिष्ट क्षेत्र के कृषि उत्पादों को एक अनूठी पहचान और कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। यह टैग न केवल उत्पादों के अनाधिकृत उपयोग को रोकता है, बल्कि उनके मूल्य और महत्व को भी बढ़ाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक प्रतिष्ठित ट्रेडमार्क के रूप में माना जाता है, जो निर्यात को प्रोत्साहित करता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है। जीआई टैग प्राप्त उत्पादों को भारतीय और वैश्विक बाजारों में पहचान, प्रचार और निर्यात करना आसान हो जाता है। यह विशेष दर्जा उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता को प्रमाणित करता है, जिससे उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ता है और उत्पादकों को बेहतर मूल्य मिलता है।

आर्थिक क्षेत्र में लाभदायक
पनियाला की खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर साबित होगी। पनियाला परंपरागत खेती से अधिक लाभ देता है। कुछ साल पहले करमहिया गांव सभा के करमहा गांव में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के आर. दूबे गये थे। पारस के पास पनियाला के नौ पेड़ थे। अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे। प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये आय होती थी। अब तो ये दाम पांच से छह गुने तक हो गए हैं। लिहाजा आय भी इसी अनुरूप बढ़ गई। खास बात ये है कि पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है। लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है।

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