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कांग्रेस-बसपा लगा चुकी हैं हैट्रिक : भाजपा के सामने तीसरी बार जीत की चुनौती, सीतापुर में किसकी किस्मत बदलेगा 'R' अक्षर वाला टोटका?

भाजपा के सामने तीसरी बार जीत की चुनौती, सीतापुर में किसकी किस्मत बदलेगा 'R' अक्षर वाला टोटका?
UPT | सीतापुर में किसकी किस्मत बदलेगा 'R' अक्षर वाला टोटका?

May 08, 2024 19:54

सीतापुर की सीट को लेकर एक टोटका काफी प्रचलित है। कहते हैं कि यहां जीतने वाले हर प्रत्याशी के नाम में 'R' अक्षर जरूर होता है। अबकी बार कांग्रेस, बसपा और भाजपा की तरफ से जो प्रत्याशी मैदान में हैं, उन तीनों के नाम पर 'R' आता है।

May 08, 2024 19:54

Short Highlights
  • सीतापुर में वर्चस्व की लड़ाई
  • कांग्रेस ने जीता था पहला चुनाव
  • बसपा ने भी लगाया जीत का हैट्रिक
Sitapur News : उत्तर प्रदेश में 13 लोकसभा सीटों पर चौथे चरण में मतदान होने हैं। इन सीटों में शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच के अलावा सीतापुर भी शामिल है। सभी 13 सीटों पर 13 मई को मतदान होना है। सीतापुर की सीट को लेकर एक टोटका काफी प्रचलित है। कहते हैं कि यहां जीतने वाले हर प्रत्याशी के नाम में 'R' अक्षर जरूर होता है। अबकी बार कांग्रेस, बसपा और भाजपा की तरफ से जो प्रत्याशी मैदान में हैं, उन तीनों के नाम पर 'R' आता है। इसके पहले हम शाहजहापुर, खीरी और धौरहरा की बात कर चुके हैं। आज बार 'R' अक्षर के टोटके वाली सीतापुर सीट की...

सीतापुर सीट का सियासी इतिहास
देश में जब पहली बार आम चुनाव हुए थे, तब सीतापुर की सीट से कांग्रेस के टिकट पर जवाहर लाल नेहरु की भाभी उमा नेहरु ने चुनाव लड़ा था। उमा नेहरु पंडित नेहरु के चचेरे भाई श्यामलाल की पत्नी थीं। उस समय एक सीट पर दो प्रत्याशी चुनाव जीतते थे। इसके लिए कांग्रेस ने दूसरा टिकट परागी लाल को दिया था। परागी लाल और उमा नेहरु दोनों जीतकर संसद पहुंचे थे। ये जीत 1657 में फिर दोहराई गई। लेकिन 1962 में जनसंघ ने खेल को पलट दिया और पहले सूरज लाल वर्मा और फिर 1967 में जनंघ के टिकट पर शारदा नंद ने चुनाव जीता। 1971 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और जगदीश चंद्र दीक्षित ने चुनाव में जीत दर्ज की।

इमरजेंसी में मुंह की खानी पड़ी
इमरजेंसी के बाद 1977 में जब फिर से चुनाव हुए, तो कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। जनता पार्टी के हर गोविंद वर्मा ने कांग्रेस प्रत्याशी को शिकस्त देते हुए चुनाव जीत लिया। लेकिन 1980 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की और राजेंद्र कुमार बाजपेयी लगातार तीन बार सांसद चुने गए। 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां खाता खोला और जनार्दन प्रसाद मिश्रा चुनाव जीते। तब से लेकर अब तक यह सीट भाजपा, सपा और बसपा के बीच ही घूमती रही और कांग्रेस कभी वापसी नहीं कर पाई।

बसपा ने भी लगाया जीत का हैट्रिक
भारतीय जनता पार्टी के बाद समाजवादी पार्टी के मुख्तार अनीस ने 1996 में सीतापुर से विजय प्राप्त की। लेकिन 1998 में जनार्दन प्रसाद मिश्रा ने फिर से वापसी कर ली। जब 1999 में दोबारा चुनाव हुए, तो पहली बार बसपा ने अपना खाता खोला। बसपा प्रत्याशी राजेश वर्मा ने सीतापुर से लगातार दो बार 1999 और 2004 में जीत दर्ज की। 2009 में बसपा ने उम्मीदवार बदल दिया और कैसर जहां को टिकट मिला। कैसर जहां ने भी यहां से भी चुनाव जीता और इसके साथ बसपा ने सीतापुर में जीत की हैट्रिक लगा दी। लेकिन 2014 में मोदी लहर चली और इस लहर पर सवार भाजपा ने सीतापुर का किला दोबारा जीत लिया।

एक चुनाव बाद दोगुना हो गया अंतर
2014 में भाजपा ने राजेश वर्मा और मैदान में उतारा था। उनके सामने बसपा की कैसर जहां थी, वहीं समाजवादी पार्टी ने भरत त्रिपाठी को टिकट दिया था। कैसर जहां ने राजेश वर्मा को कड़ी टक्कर जरूर दी, मगर वह जीत नहीं सकीं। राजेश वर्मा ने 51 हजार वोटों के अंतर से कैसर जहां को हरा दिया। इस चुनाव में राजेश वर्मा को 4.17 लाख, कैसर जहां को 3.66 लाख और भरत त्रिपाठी को 1.56 लाख वोट मिले थे। इसके बाद 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की जीत का अंतर दोगुना हो गया। 2019 में राजेश वर्मा के सामने बसपा से नकुल दुबे थे। जबकि कैसर जहां एक बार फिर से मैदान में थी, मगर कांग्रेस के टिकट पर। राजेश वर्मा को इस चुनाव में 5.14 लाख वोट मिले। नकुल दुबे को 4.13 लाख वोट और कैसर जहां को मात्र 96 हजार मतों से संतोष करना पड़ा। राजेश वर्मा ने एक चुनाव बाद ही जीत का अंतर दोगुना कर लिया था और उन्होंने बसपा उम्मीदवार को 1 लाख वोटों के अंतर से मात दी थी।

2024 में वर्चस्व की लड़ाई
राजेश वर्मा पांचवीं बार चुनावी मैदान में हैं। वह 1994 और 2004 में भाजपा से सांसद रहे थे। 2014 से वह भाजपा के सांसद हैं। लेकिन 2024 की लड़ाई भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं होने वाली है। उनके सामने बसपा और कांग्रेस के जो प्रत्याशी मैदान में हैं, वह कभी भाजपा खेमे के ही हुआ करते थे। राकेश राठौर 2017 में भाजपा के ही विधायक थे। लेकिन 2022 में उनका टिकट कट गया और वह सपा में शामिल हो गए। इसके बाद वहां भी दाल नहीं गली तो कांग्रेस का दामन थाम लिया। उनका यह दांव काम कर गया और सपा-कांग्रेस गठबंधन में सीतापुर की सीट कांग्रेस के खाते में आ गई। कांग्रेस ने राकेश राठौर को सीतापुर लोकसभा से उम्मीदवार बना दिया। वहीं बसपा के प्रत्याशी महेंद्र सिंह यादव भी 2017 में भाजपा के विधायक थे। 2024 में वह लोकसभा का टिकट मांग रहे थे, लेकिन निराशा हाथ लगने पर बसपा में शामिल होकर अपनी इच्छापूर्ति कर ली। तीनों प्रत्याशियों के बीच 2024 में वर्चस्व की लड़ाई है।

क्या है सीतापुर का जातीय समीकरण?
सीतापुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभाएं आती हैं, इसमें सीतापुर सदर, लहरपुर, बिसवां, सेवता और महमूदाबाद शामिल हैं। इन पांचों सीटों में से केवल लहरपुर की विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का विधायक है, जबकि शेष 4 सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, सीतापुर में कुल 18 लाख मतदाता है, जिसमें से 81 फीसदी ग्रामीण और शेष शहरी वोटर हैं। इसमें 10 लाख पुरुष और 8 लाख महिला वोटर हैं। अगर जातीय समीकरण की बात करें, तो इस सीट पर करीब 27 फीसदी दलित वोटर हैं। वहीं कुर्मी वोटरों की संख्या 12 फीसदी है। सीतापुर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी 20 फीसदी के आसपास है। हालांकि इसके बावजूद अब तक यहां से केवल 2 बार ही मुस्लिम सांसद चुने गए हैं। 2024 में भी किसी प्रमुख पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है। ऐसे में मुस्लिम मतदाता जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यहां अंत में एक बात और स्पष्ट कर देते हैं कि कांग्रेस, बसपा या भाजपा में से कोई भी चुनाव जीते, 'R' अक्षर वाला टोटका इस बार भी बरकरार रहेगा।

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