उपचुनाव में मायावती कहीं भी धरातल पर नजर नहीं आईं। वह केवल सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात कहती रहीं और इसका खामियाजा उनके प्रत्याशियों को उठाना पड़ रहा है।
UP By Election : एक-एक वोट को तरसे बसपा उम्मीदवार, नौ विधानसभा सीटों पर देखें प्रदर्शन, बार-बार हार से सबक नहीं ले रहीं मायावती
Nov 23, 2024 15:08
Nov 23, 2024 15:08
भाजपा और सपा के बीच उपचुनाव से पहले शुरू हो गई सियासी जंग
यूपी में उपचुनाव की शुरुआत से पहले ही पोस्टर वॉर शुरू हो गई थी। इसमें भाजपा और सपा की ओर से एक दूसरे पर जमकर कटाक्ष किए गए। इसके अलावा दोनों पक्षों की ओर से उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए रणनीति तैयार की गई। सत्तापक्ष की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जहां मंत्रियों को सीटवार जिम्मेदारी सौंपी और हर सीट पर जीत का विशेष तौर पर खाका तैयार किया, वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से भी अखिलेश यादव पूरी तरह सक्रिय रहे।
मायावती की पुरानी रणनीति से बड़ा लक्ष्य भेदने की हसरत रह गई अधूरी
इसके इतर मायावती कहीं भी धरातल पर नजर नहीं आईं। वह केवल सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात कहती रहीं और इसका खामियाजा उनके प्रत्याशियों को उठाना पड़ रहा है। बसपा लंबे समय से विपक्ष में रहने के बावजूद सड़क पर उतरने से परहेज करती है। मायावती ने भले ही अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया हो। लेकिन ये बड़ा सच है कि पार्टी में उनके बाद जनता के बीच पैठ रखने वाले दूसरी पंक्ति के नेताओं के नेता का अभाव है। ऐसे में बसपा कार्यकर्ताओं में भाजपा और सपा की तुलना में जोश नजर नहीं आया और न ही वह मतदाताओं को जोड़ने में सफल साबित हुए। नतीजा चुनाव दर चुनाव यूपी में बसपा की नींव दरकती जा रही है। मायावती को उम्मीद थी कि भाजपा सरकार से नाराजगी और सपा के गुंडाराज के खिलाफ जनता उसके प्रत्याशियों पर विश्वास जताएंगे। इस तरह उसे बिना कुछ किए काफी कुछ हासिल हो जाएगा, लेकिन ये सोच महज भ्रम ही साबित हुई।
नौ विधानसभा सीटों पर बसपा उम्मीदवारों का प्रदर्शन
- सीसामऊ : सीसामऊ से वीरेंद्र कुमार को महज 1410 वोट मिले हैं।
- कटेहरी : कटेहरी से अमित वर्मा को 25025 वोट मिले हैं।
- फूलपुर : फूलपुर से जितेंद्र कुमार सिंह अब तक 14124 हासिल कर सके हैं।
- मझवां : मझवां से दीपक तिवारी को 22151 वोट अब तक हासिल कर पाए हैं।
- मीरापुर : बसपा प्रत्याशी फिलहाल 2232 वोट हासिल कर सके हैं।
- कुंदरकी : कुंदरकी में बसपा प्रत्याशी रफतउल्ला को अब तक महज 601 वोट मिले हैं।
- करहल : करहल से अविनाश कुमार शाक्य को अब तक मात्र 6315 मत मिले हैं।
- खैर : खैर से पहल सिंह 11945 मत फिलहाल हासिल कर सके हैं।
- गाजियाबाद : गाजियाबाद में पार्टी प्रत्याशी परमानंद गर्ग को 9836 वोट मिले हैं।
इन आंकड़ों से साफ है कि कभी सूबे में राज करने वाली बसपा न केवल सियासी दौड़ में पीछे रह गई, बल्कि वह अपने पारंपरिक वोटरों को भी संभालने में असफल रही है। उसके मतदाताओं पर भाजपा और सपा सेंध लगाने में सफल रहे हैं। बसपा के उपचुनाव में उतरने की वजह उसके पारंपरिक मतदाताओं का वोट दूसरे दलों में शिफ्ट होने से रोकना भी था। लेकिन, पार्टी अपनी रणनीति में सफल नहीं हुई। न सिर्फ दलित मतदाताओं ने उसके उम्मीदवारों पर भरोसा जताया, बल्कि एक बार फिर मुसलमान मतदाताओं का भी उसे साथ नहीं मिला।
2019 के बाद लगातार गिर रहा बसपा का ग्राफ
बसपा के सियासी ग्राफ पर नजर डालें तो 2019 लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करके पार्टी 10 सीटें जीतने में सफल हुई थी। इस चुनाव में सपा को झटका लगा था। इसलिए इसके बाद सपा ने बसपा से दूरी बना ली और बसपा का प्रदर्शन चुनाव दर चुनाव खराब होता चला गया। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज एक सीट पर सिमट गई। इसके बाद विधानसभा 2024 में पार्टी ने एक बार फिर सभी 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। लेकिन, वह अपना खाता तक नहीं खोल सकी। उपचुनाव में भी पार्टी उम्मीदवार एक एक वोट को तरस गए।
मायावती सहित अन्य स्टार प्रचारक केवल कागजों पर
दरअसल भाजपा, रालोद और सपा की तरह बसपा सुप्रीमो मायावती और अन्य बड़े नेताओं ने उपचुनाव में एक भी जनसभा नहीं की। पार्टी ने कहने को 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। इसमें मायावती, आकाश आनंद और सतीश चंद्र मिश्र जैसे कई नाम शामिल थे। लेकिन, इन्होंने कहां प्रचार किया ये हकीकत में प्रत्याशी भी नहीं जानते। ऐसे में इनके वोटर भी उदासीन हो गए। जब पार्टी को भाजपा और सपा के बीच तीखी बयानबाजी के दौरान अपने लिए रास्ता बनाने की जरूरत थी, मायावती सिर्फ सोशल साइट पर बयान जारी कर शांत हो गईं। इसीलिए पहले दिन से प्रत्याशी लड़ाई में नजर नहीं आए। मतदाताओं के बीच भी साफ संदेश गया कि बसपा केवल चुनाव लड़ने के लिए चुनाव लड़ रही है।
कमजोर रणनीति और जनता से दूरी हर बार बन रही हार की वजह
पार्टी की कमजोर रणनीति से न सिर्फ उसके पारंपरिक वोटर उससे छिटकते जा रहे हैं, बल्कि युवा मतदाताओं के बीच भी बसपा को लेकर कोई जोश नजर नहीं आ रहा है। बसपा के परंपरागत वोटरों ने उससे दूरी बना ली है। जाटव बिरादरी को छोड़ दें, तो अन्य दलित वोटर पहले ही पार्टी से किनारा कर चुके हैं। ऐसे में युवा मतदाताओं के बीच भी बसपा को लेकर कोई उत्साह नहीं होना, पार्टी के लिए सियासी लिहाज से काफी नुकसानदायक साबित हो रहा है। सियासी विश्लेषकों के मुताबिक बसपा लगातार खराब प्रदर्शन के बावजूद अपनी रणनीति में फेरबदल नहीं कर ही है। सिर्फ पार्टी पदाधिकारियों में बदलाव या उनके साथ बैठक करके मायावती सियासत में बड़ी लकीर खींचने में सफल नहीं हो सकती हैं। ये वक्त की जरूरत है कि वह न सिर्फ जनहित के मुद्दों पर लड़ें बल्कि वह लड़ाई जनता को धरातल पर दिखाई भी पड़े।
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