उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि वास्तव में पावर कारपोरेशन गलत तरीके से दोनों बिजली कंपनियों के मसौदे पर कैबिनेट से मंजूरी लेना चाहता है, जो पूरी तरह से अनुचित है।
UPPCL Privatisation : नियामक आयोग की अनुमति के बगैर एनर्जी टास्क फोर्स में प्रस्ताव को मंजूरी असंवैधानिक
Dec 13, 2024 17:26
Dec 13, 2024 17:26
नियामक आयोग ने 2010 में जारी किया स्वतंत्र लाइसेंस
इसमें सवाल उठाया गया है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 के तहत पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2010 में लाइसेंस जारी किया था। इस लाइसेंस के बिंदु 5 में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि लाइसेंसधारी यानी पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम आयोग को पूर्व सूचना देकर ही किसी भी काम में आगे संलग्न होंगे। साथ ही अपनी परसंपत्तियों के अधिकतम उपयोग के लिए व्यवसाय निर्धारित करेंगे।
विद्युत अधिनियम 2003 की धारा में स्पष्ट हैं नियम
इससे स्पष्ट है कि बिना विद्युत नियामक आयोग की पूर्व अनुमति के यूपीपीसीएल ने पीपीपी मॉडल की जो मंजूरी एनर्जी टास्क फोर्स से ली है, वह पूरी तरह असंवैधानिक है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17(3) भी यही कहती है कि किसी भी समय बिना समुचित आयोग की मंजूरी के बिना लाइसेंसी विक्रय पट्टा विनियम द्वारा या अपनी अनुगती द्वारा कोई भी निर्णय नहीं कर सकता।
सभी ऊर्जा निगमों का अलग-अलग हो चुका है गठन
उपभोक्ता परिषद ने कहा कि पावर कारपोरेशन ने एनर्जी टास्क फोर्स में विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 के तहत प्रक्रिया की बात की है जबकि यह धारा राज्य विद्युत परिषद के विघटन के लिए अनुमति देता है। यहां विघटन के फलस्वरुप उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल (PuVVNL), दक्षिणांचल (DVVNL), मध्यांचल (MVVNL) व पश्चिमांचल (PVVNL) का गठन हो चुका है। ये सभी विद्युत नियामक आयोग से लाइसेंस लेकर अपना स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं। ऐसे में पावर कारपोरेशन का तर्क पूरी तरह बेबुनियाद व गलत है।
यूपीपीसीएल की नियम विरुद्ध तरीके से कैबिनेट से मंजूरी लेने की कोशिश
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि वास्तव में पावर कारपोरेशन गलत तरीके से दोनों बिजली कंपनियों के मसौदे पर कैबिनेट से मंजूरी लेना चाहता है, जो पूरी तरह से अनुचित है। पावर कारपोरेशन जिस प्रकार मनमाने तरीके से काम कर रहा है, उससे ऊर्जा क्षेत्र में ये चर्चा का विषय बना हुआ है। सभी को पता है कि इस पूरे मामले पर विद्युत नियामक आयोग की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। ऐसे में सवाल उठता है कि विद्युत नियामक आयोग रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में कब तक इस गंभीर मुद्दे पर चुप्पी साधे रहेगा। ये स्थिति तब है, जब उपभोक्ता परिषद लगातार नियामक आयोग के समक्ष वैधानिकता का सवाल उठा रहा है।
लखनऊ के मामले में नियामक आयोग कैबिनेट के फैसले पर लगा चुका है रोक
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने वर्ष 2006 में लखनऊ के सरोजिनीनगर, काकोरी, माल, मलिहाबाद को इनपुट बेस्ड फ्रेंचाइजी के रूप में एक एजेंसी को दिया गया था। इसके विरोध में विद्युत नियामक आयोग में उपभोक्ता परिषद ने एक याचिका लगाई। इस पर आयोग ने तत्काल कदम उठाते हुए कैबिनेट के निर्णय पर रोक लगा दी थी।
मध्यांचल विद्युत वितरण निगम ने आज तक दाखिल नहीं किया जवाब
साथ ही कमीशन के सामने सभी दस्तावेज को मंजूर कराने के लिए निर्देश दिए थे। इस पर वर्ष 2006 के बाद से आज तक मध्यांचल विद्युत वितरण निगम ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। उपभोक्ता परिषद इस मुद्दे को उठाता रहा है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 13 के तहत बिना आयोग के अनुमति के सरकार ने ये काम किया है। इसके बावजूद भी जानबूझकर पावर कारपोरेशन गलती पर गलती कर रहा है। उसके इस फैसले से केवल निजी कंपनियों को लाभ होगा।
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