पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने कहा कि इस तरह के निर्णयों से सरकारी नौकरियों में दलित और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व खत्म होने का खतरा है। उन्होंने आरक्षित वर्गों के जनप्रतिनिधियों, विधायकों और सांसदों से अपील की कि वे इस मुद्दे पर चुप्पी न साधें।
UPPCL Privatisation : एक रुपये में जमीन और सरकार का 49 फीसदी शेयर मिलने पर भी आरक्षण पर चुप्पी
Dec 11, 2024 19:55
Dec 11, 2024 19:55
संविधान पर कुठाराघात की आशंका
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने बुधवार को चेतावनी दी कि यह स्थिति डॉ. भीमराव आंबेडकर की बनाई संवैधानिक व्यवस्था पर सीधा प्रहार है। एसोसिएशन ने इस मसौदे को दलित, पिछड़े वर्गों और अन्य गरीब वर्ग के अभियंताओं और कर्मचारियों के साथ धोखा करार दिया। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के के दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के बाद से ही एसोसिएशन आरक्षण के मुद्दे पर अधिकारियों से जवाब मांग रहा है। दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक सहित ऊर्जा मंत्री एके शर्मा से भी संगठन का प्रतिनिधिमंडल मिलकर अपनी चिंता जाहिर कर चुका है। लेकिन, कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है। अब टास्क फोर्स से मंजूर मसौदे ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है।
आरक्षण की अनदेखी से खत्म होगा इन वर्गों का प्रतिनिधित्व
पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने कहा कि इस तरह के निर्णयों से सरकारी नौकरियों में दलित और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व खत्म होने का खतरा है। उन्होंने आरक्षित वर्गों के जनप्रतिनिधियों, विधायकों और सांसदों से अपील की कि वे इस मुद्दे पर चुप्पी न साधें। एसोसिएशन ने आरोप लगाया कि मसौदा गोपनीय तरीके से तैयार किया गया है और इसमें आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की गई है। संगठन ने मांग की कि इस मसौदे का स्पष्ट खुलासा किया जाए और सभी संबंधित पक्षों को इसमें शामिल किया जाए।
संवैधानिक लड़ाई की चेतावनी
संगठन ने स्पष्ट किया कि यदि आरक्षण की मांगों को अनसुना किया गया, तो वे संवैधानिक लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर होंगे। संगठन के अध्यक्ष के बी राम, कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, महासचिव अनिल कुमार, सचिव आरपी केन, संगठन सचिव बिंदा प्रसाद, सुशील कुमार वर्मा, राम बुझारत और एसके विमल ने कहा कि यह मसला केवल एक वर्ग का नहीं, बल्कि पूरे संविधान के प्रति जिम्मेदारी का है। एसोसिएशन ने निजीकरण के फलस्वरूप आरक्षित वर्ग के अभियंताओं और कर्मचारियों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि निजीकरण की प्रक्रिया में आरक्षित वर्ग के लोगों को न केवल भेदभाव का सामना करना पड़ेगा, बल्कि उनकी आर्थिक सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो जाएंगे।
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