यह मामला गौतमबुद्ध नगर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) द्वारा 30 सितंबर 2020 को पारित एक प्रस्ताव पर आधारित था। यह प्रस्ताव बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण को रोकने के उद्देश्य से था, जिसमें भूमि मालिकों को किसी भी बिक्री कार्यवाही से पहले अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्राप्त करने की आवश्यकता थी।
गौतमबुद्ध नगर के लिए बड़ी खबर : हिंडन और यमुना के खादर में कृषि भूमि की बिक्री पर लगाए प्रतिबंध रद्द, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
Aug 23, 2024 03:13
Aug 23, 2024 03:13
क्या है पूरा मामला
यह मामला गौतमबुद्ध नगर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) द्वारा 30 सितंबर 2020 को पारित एक प्रस्ताव पर आधारित था। यह प्रस्ताव बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण को रोकने के उद्देश्य से था, जिसमें भूमि मालिकों को किसी भी बिक्री कार्यवाही से पहले अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्राप्त करने की आवश्यकता थी। यह एनओसी प्रमाणित करती थी कि संबंधित भूमि में कोई अवैध या अनधिकृत निर्माण नहीं है। याचिकाकर्ताओं, जो गौतमबुद्ध नगर के विभिन्न गांवों के कृषि भूमि मालिक थे, जिनमें सुरेश चंद, अमन सिंह और अन्य शामिल थे, ने तर्क दिया कि डीडीएमए द्वारा लगाए गए प्रतिबंध मनमाने थे और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन के इस निर्णय ने उन्हें अपनी संपत्ति बेचने के अधिकार से प्रभावी रूप से वंचित कर दिया, जिससे वे आर्थिक संकट में फंस गए हैं।
फैसले में कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि प्रतिबंध न केवल दमनकारी हैं, बल्कि कानूनी आधार से भी रहित हैं। पीठ ने देखा कि यूपी औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, जिसके तहत प्रतिबंध लगाए गए थे, ऐसे व्यापक प्रतिबंधों को लागू करने की अनुमति नहीं देते हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि सरकार की बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण के बारे में चिंता वैध है, लेकिन इसे संबोधित करने के लिए अपनाया गया तरीका गलत था। पीठ ने जोर देकर कहा कि भूमि मालिकों को सरकार की निर्माण नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफलता के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने सुनाया यह फैसला
अपने फैसले में, कोर्ट ने 30 सितंबर 2020 के डीडीएमए के प्रस्ताव और गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी द्वारा जारी बाद के आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि याचिकाकर्ता और अन्य समान स्थिति वाले भूमि मालिकों को मौजूदा भूमि लेनदेन कानूनों का पालन करते हुए, बिना एनओसी के अपनी कृषि भूमि बेचने की अनुमति दी जानी चाहिए। कोर्ट ने राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों को बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनधिकृत निर्माण की समस्या को संबोधित करने के लिए, भूमि मालिकों के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना, वैकल्पिक उपायों की खोज करने का भी निर्देश दिया।
इस फैसले का असर क्या होगा
यह फैसला नोएडा और ग्रेटर नोएडा में, विशेष रूप से बाढ़ क्षेत्र के रूप में नामित क्षेत्रों में भूमि लेनदेन के लिए व्यापक परिणाम देने वाला है। यह निर्णय उन भूमि मालिकों के लिए बहुत जरूरी राहत प्रदान करता है, जो प्रतिबंधात्मक विनियमों के कारण अपनी संपत्ति बेचने में असमर्थ थे। कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को संपत्ति मालिकों के मौलिक अधिकारों की पुनर्पुष्टि के रूप में स्वागत किया है। याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता अजय कुमार सिंह ने कहा, "कोर्ट ने सही रूप से मान्यता दी है कि सरकार का बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को नियंत्रित करने का कर्तव्य है, वह इसे व्यक्तिगत अधिकारों की कीमत पर नहीं कर सकती।"
अब सरकार क्या करेगी
उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कोर्ट के फैसले पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि सरकार तेजी से शहरीकरण वाले क्षेत्र में बाढ़ जोखिम प्रबंधन की चिंताओं का हवाला देते हुए, इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर विचार कर सकती है। फिलहाल, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि मालिक बिना एनओसी के अपनी कृषि भूमि की बिक्री के साथ आगे बढ़ सकते हैं, जो इन क्षेत्रों में रियल एस्टेट बाजार को पुनर्जीवित करने की संभावना है।
कुल मिलाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला एक ऐतिहासिक निर्णय है, जो आपदा प्रबंधन और व्यक्तिगत संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाता है। जैसा कि क्षेत्र का विकास जारी है, यह निर्णय भविष्य में इस प्रकार के मुद्दों को नेविगेट करने के लिए एक मिसाल स्थापित करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास नागरिकों के अधिकारों की कीमत पर न हो।
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