हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की है जो कि पूरी तरह से दर्द रहित रही। युवक अब बिल्कुल ठीक है। युवक पिछले छह माह से बांयें कूल्हे के दर्द एवं जकड़न से पीड़ित था।
बदलता उत्तर प्रदेश : दिल्ली-मुंबई के बाद मेरठ के LLRM में मिनिमली इनवेज़िव DAA हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी, बदल दिया 22 वर्षीय युवक का कूल्हा
Dec 15, 2024 15:06
Dec 15, 2024 15:06
- एलएलआरएम के अस्थि रोग विभाग के डॉक्टरों का कमाल
- छह माह से कूल्हे के दर्द और जकड़न से परेशान था युवक
- लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज मेरठ में पहली
- हुई ऐसी सर्जरी
AVN Hip नामक बीमारी के बारे में पता चला
उन्होंने मेडिकल कॉलेज मेरठ के अस्थि रोग विभाग के ऑर्थोपैडिक एवं स्पोर्ट्स इंजरी विशेषज्ञ डॉ कृतेश मिश्रा से संपर्क किया। उन्होंने मरीज़ को Xray एवं MRI टेस्ट कराने की सलाह दी। जिसके उपरांत AVN Hip नामक बीमारी के बारे में पता चला। विस्तृत जांचों के पश्चात मरीज़ का विशिष्ट विधि द्वारा कूल्हे के जोड़ की प्रत्यारोपण सर्जरी की गई।
सर्जरी के दूसरे दिन से चलने लगा मरीज
सर्जरी के बाद मरीज़ बिलकुल स्वस्थ्य है एवं सर्जरी के अगले दिन से चलने में सक्षम है। डॉ. कृतेश मिश्रा ने बताया कि मरीज़ की सर्जरी एक नवीनतम तकनीक से की गई है। जिसे "मिनिमली इनवेसिव" DAA ( डायरेक्ट एंटीरियर अप्रोच) हिप रिप्लेसमेंट कहते हैं। इस तकनीक में कूल्हे के सामने की ओर (एंटीरियर अप्रोच) चीरा लगाकर विशेष उपकरण के माध्यम से बिना किसी मांसपेशी या टेंडन को अलग किये कूल्हे का प्रत्यारोपण किया जाता है।
दिल्ली-मुंबई के बाद अब मेरठ में भी उपलब्ध
यह जटिल तकनीक दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों के कुछ ही केंद्रों में की जाती है एवं देश के चुनिंदा सर्जन इस विधि में प्रशिक्षित हैं। DAA (डायरेक्ट एंटीरियर एप्रोच) के द्वारा हिप रिप्लेसमेंट के कई फायदे हैं, जैसे ऑपरेशन से दौरान कम रक्तस्राव, पैर की लम्बाई में अंतर न आना, हिप डिस्लोकेशन जैसी जटिलताओं का कम होना , क्विक रिकवरी, अस्पताल के जल्दी छुट्टी होना एवं सामान्य जीवनशैली पर जल्द वापस लौटना। इस विधि के द्वारा हिप रिप्लेसमेंट के लिए मरीज़ का विशेष चयन ज़रूरी है क्यूंकि इस विधि का प्रयोग सभी मरीज़ों में संभव नहीं है।
कूल्हे से मांसपेशियों और टेंडन को अलग करना शामिल
अस्थि रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञानेश्वर टोंक ने बताया कि पारंपरिक हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी में कूल्हे के किनारे (लेटरल अप्रोच) या कूल्हे के पीछे (पोस्टीरियर अप्रोच) से चीरा लगाया जाता है। दोनों तकनीकों में जोड़ को बदलने के लिए कूल्हे से मांसपेशियों और टेंडन को अलग करना शामिल है। इन मांसपेशियों के अलग होने से सर्जरी के बाद दर्द बढ़ सकता है, और अक्सर पूरी तरह से ठीक होने में महीनों का समय लग सकता है। सर्जरी के बाद इन मांसपेशियों के ठीक न होने से हिप डिस्लोकेशन (बॉल और सॉकेट का अलग होना) का जोखिम बढ़ सकता है, जो हिप रिप्लेसमेंट विफलता का प्रमुख कारण है।
प्राचार्य ने दी सर्जरी टीम को बधाई
मेडिकल कॉलेज मेरठ के प्राचार्य डॉ. आरसी गुप्ता ने उपरोक्त सर्जरी हेतु अस्थि रोग विभाग व ऑपरेशन टीम को उनकी इस सफतला पर बधाइयाँ दी। ऑपरेशन टीम में डॉ. रेहमान, डॉ. सचिन एवं एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. प्रमोद एवं डॉ. गौरी शामिल रहे।
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