कोरोना महामारी के बाद अचानक दिल का दौरा (सडन कार्डियो अटैक) के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है, और इसके कारणों का पता अब चल गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, आने वाले दिनों में इसके रोकथाम के लिए दवाओं का विकास किया जाएगा...
कोविड के बाद बढ़े सडन हार्ट अटैक को लेकर खुलासा : ये चीजे हैं जिम्मेदार, अब दवा विकसित करने की तैयारी
Nov 29, 2024 18:49
Nov 29, 2024 18:49
इस कारण आता है सडन कार्डियो अटैक
विशेषज्ञों का कहना है कि अचानक दिल के दौरे (सडन कार्डियो अटैक) के मामलों में वृद्धि के पीछे मस्तिष्क से निकलने वाले कैटेकोलामाइन हार्मोन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस का प्रमुख योगदान है। शरीर में यह हार्मोन सामान्य रूप से दिल की धड़कन को नियंत्रित करता है, लेकिन जब ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस बढ़ता है, तो यह धड़कन की गति को तेज कर देता है। इस स्थिति में मस्तिष्क अधिक मात्रा में कैटेकोलामाइन हार्मोन रिलीज करता है, ताकि दिल की धड़कन को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि, जब यह हार्मोन जरूरत से ज्यादा रिलीज होता है, तो वह दिल की पंपिंग को रोक सकता है, जो अंततः मरीज की मौत का कारण बन सकता है। कोविड-19 के बाद इस प्रकार के मामले बढ़े हैं, लेकिन 80% मरीज इससे प्रभावित नहीं हुए। केवल 20% मरीज गंभीर रूप से प्रभावित हुए और उनमें से 5% की स्थिति अधिक खराब हुई।
एम्स में आयोजित कांफ्रेंस में किया दावा
एम्स में आयोजित फार्माकोलॉजी कांफ्रेंस में कनाडा से आए भारतीय मूल के दिल के विशेषज्ञ डॉ. एन एस ढल्ला ने बताया कि 80 फीसदी कैंसर के मरीजों की मौत के पीछे दिल की बीमारी मुख्य कारण होती है। उनका कहना था कि कीमोथेरेपी की दवाओं के साइड इफेक्ट्स से दिल का रोग बढ़ सकता है, जिससे मरीजों की हालत और गंभीर हो जाती है। इसके साथ ही, डॉक्टरों ने यह भी बताया कि दवाओं के विकास में तेजी से सुधार हो रहा है। एक समय था जब बोटॉक्स जैसी दवाओं को इंजेक्शन के रूप में लगाया जाता था, लेकिन अब वही फायदे क्रीम के रूप में मिलने लगे हैं। क्रीम को शरीर पर लगाने से वह असर दिखाती है। एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डीएस आर्य ने कहा कि नई दवाएं कैंसर कोशिकाओं पर विशिष्ट प्रोटीन को पहचानती हैं और सिर्फ उन्हीं पर हमला करती हैं। इसका फायदा यह है कि इससे शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को कम से कम नुकसान होता है।
आज भी विदश पर निर्भर देश
देश में कई बीमारियों की दवाओं के लिए अभी भी विदेशों पर निर्भरता बनी हुई है। लेकिन हाल ही में आयोजित एक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इस दिशा में सकारात्मक बदलाव की संभावना जताई है। उन्होंने कहा कि भारत में दवाओं के विकास के लिए पर्याप्त क्षमता मौजूद है। यदि युवा वैज्ञानिक इस दिशा में काम करें, तो भविष्य में कई दवाओं का निर्माण देश में ही किया जा सकता है, जो न केवल सुरक्षित और प्रभावी होंगी, बल्कि सस्ती भी होंगी। इससे हमें विदेशी कंपनियों की दवाओं पर निर्भर होने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
देश में दवाओं के विकास की अपार संभावनाएं
देश में दवाओं के विकास की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि यहां जड़ी-बूटियों का खजाना है। डॉक्टरों का मानना है कि इन जड़ी-बूटियों का सही तरीके से उपयोग कर कई गंभीर रोगों का इलाज संभव होगा। इस दिशा में कई शोध हो रहे हैं, जो आने वाले समय में न केवल आयुर्वेदिक उपचार को नया जीवन देंगे, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में नई राह भी खोलेंगे। इस सम्मेलन में केंद्रीय राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव सहित कई अन्य विशेषज्ञों ने भी अपने विचार रखे और देश में दवाओं के विकास के लिए संभावनाओं पर चर्चा की। सम्मेलन 30 नवंबर तक चलेगा।
हृदय समस्याओं के लिए जरूरी जांच
विशेषज्ञों का कहना है कि हृदय से संबंधित समस्याओं की पहचान के लिए ईसीजी, इको और हॉल्टर टेस्ट करवाना जरूरी है। ईसीजी से यह पता चलता है कि हार्ट में कोई दिक्कत तो नहीं हुई, जबकि इको से हार्ट पंपिंग क्षमता और हॉल्टर टेस्ट से हार्ट रेट की जानकारी मिलती है। यह तीन प्रमुख जांचें काफी होती हैं, लेकिन अगर किसी को छाती में दर्द, सांस फूलना, या दिल की धड़कन तेज हो रही हो, तो उसे तुरंत इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। हालांकि, इन टेस्टों की आवश्यकता हर किसी को नहीं होती। जिनको सीवियर कोविड हुआ हो, उन्हें डॉक्टर की सलाह पर ये जांच करानी चाहिए।
हृदय रोग के जोखिम कारक : क्या आप इनमें से किसी से प्रभावित हैं?
हृदय रोग के बढ़ते जोखिम से बचने के लिए यह जानना जरूरी है कि कौन-कौन से कारक प्रभावित कर सकते हैं। यदि आप इनमें से कोई भी आदत अपना रहे हैं, तो आपको हृदय रोग का खतरा हो सकता है :
- स्मोकिंग, तंबाकू या शराब का सेवन
- आसपास धूम्रपान करने वाले लोग
- हुक्का और वेपिंग का इस्तेमाल
- रात में देर तक काम करना
- ब्लड प्रेशर या डायबिटीज जैसी समस्याएं
- अधिक वजन होना
- शारीरिक व्यायाम का अभाव
- मानसिक तनाव
- 8 घंटे से कम नींद लेना
अगर आपके पास हृदय रोग से जुड़ा कोई रिस्क फैक्टर नहीं है, तो भी 30 साल के बाद एक बार सारे जरूरी टेस्ट करवाना चाहिए। जिनके पास हृदय रोग के जोखिम कारक (जैसे कि स्मोकिंग, डायबिटीज, हाइपरटेंशन) हैं, उन्हें हर साल स्वास्थ्य चेकअप करवाना चाहिए। ब्लॉकेज का पता लगाने के लिए स्ट्रेस टेस्ट एक महत्वपूर्ण तरीका है, और एंजियोग्राम से भी इसकी जानकारी मिलती है।
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