बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर दुनियाभर में हल्ला : माता-पिता की अनुमति क्यों जरूरी, अधिकारों पर पड़ेगा असर? जानें सब कुछ

माता-पिता की अनुमति क्यों जरूरी, अधिकारों पर पड़ेगा असर? जानें सब कुछ
UPT | प्रतीकात्मक तस्वीर

Jan 04, 2025 16:07

भारत सरकार ने हाल ही में एक नया मसौदा जारी किया है, जिसके तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने से पहले अपने माता-पिता से सहमति लेनी होगी...

Jan 04, 2025 16:07

New Delhi News : भारत सरकार ने हाल ही में एक नया मसौदा जारी किया है, जिसके तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने से पहले अपने माता-पिता से सहमति लेनी होगी। केंद्र सरकार ने बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग से संबंधित नियमों को लागू करने के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (डीपीडीपी), 2023 के तहत एक ड्राफ्ट तैयार किया है। इस ड्राफ्ट में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि डेटा कलेक्शन एंटिटी (Data Collection Entity) को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो व्यक्ति खुद को किसी बच्चे का माता-पिता या अभिभावक बता रहा है, उसके पास इसके लिए कानूनी आधार या अधिकार है। इसका मतलब है कि यह जांचना जरूरी होगा कि उस व्यक्ति के पास सचमुच उस बच्चे की देखभाल या कानूनी जिम्मेदारी है या नहीं। 

केंद्र सरकार ने नागरिकों से मांगे सुझाव
इस संबंध में सरकार ने नागरिकों से सुझाव मांगे हैं। मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी करते हुए लोगों से अनुरोध किया कि वे माय गवर्नमेंट डॉट इन वेबसाइट पर जाकर इस ड्राफ्ट पर अपनी आपत्तियां दर्ज कर सकते हैं और सुझाव दे सकते हैं। यह कदम सरकार की योजना का हिस्सा है, जिससे विभिन्न पक्षों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर नियमों को और अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनाया जा सके।  इस कदम ने सोशल मीडिया पर बच्चों के उपयोग को लेकर एक बार फिर से बहस को जन्म दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बच्चों को सोशल मीडिया से क्यों दूर रखा जाना चाहिए? इसके फायदे और नुकसान क्या हैं? अन्य देशों में इसके लिए क्या नियम बनाए गए हैं? और सबसे महत्वपूर्ण, इस तरह के प्रतिबंध बच्चों के अधिकारों को कैसे प्रभावित करते हैं?

बच्चों पर पड़ रहा नकारात्मक प्रभाव
बच्चों के सोशल मीडिया के इस्तेमाल से जुड़े सबसे सामान्य तर्क में से एक यह है कि इसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह कहा जाता है कि सोशल मीडिया पर बच्चों को ऐसे कंटेंट का सामना करना पड़ता है, जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 10 प्रतिशत से अधिक किशोर सोशल मीडिया के इस्तेमाल से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। साथ ही, WHO की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जैसे-जैसे सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ रहा है, बच्चों में मानसिक और शारीरिक समस्याएं भी बढ़ रही हैं। इसके अलावा,  सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग बच्चों को एडिक्शन, साइबर बुलिंग और हिंसा जैसी समस्याओं का सामना करवा सकता है। ये समस्याएं बच्चों के भावनात्मक और शारीरिक विकास पर भी नकारात्मक असर डाल सकती हैं।



रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
भारत में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 8 से 18 वर्ष आयु वर्ग के करीब 30 प्रतिशत बच्चों के पास अपना स्मार्टफोन है, जबकि 62 प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिता के फोन से इंटरनेट का उपयोग करते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लगभग 43 प्रतिशत बच्चों के पास सक्रिय सोशल मीडिया अकाउंट है। इसके अलावा, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज सहित विभिन्न शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि स्मार्टफोन, ऑनलाइन गेमिंग और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से बच्चों को कई स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं।

बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार
इस पर बहस और बढ़ी है कि सोशल मीडिया बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर डालता है। अमेरिकी सोशल साइकोलॉजिस्ट जोनाथन हैड्ट ने अपनी किताब "The Anxious Generation" में यह बताया है कि मोबाइल पर अधिक समय बिताने से बच्चों में अवसाद, चिड़चिड़ापन और काल्पनिक दुनिया में खो जाने की आदत विकसित हो रही है। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक रीरी त्रिवेदी ने भी एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि जितना अधिक बच्चे मोबाइल का उपयोग करते हैं, उतना ही उनका डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। उनका मानना है कि बच्चे अकेलेपन को दूर करने के लिए फोन का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह आदत उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर देती है।

इन देशों में पहले से है प्रतिबंध
बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को लेकर कई देशों ने कदम उठाए हैं। ऑस्ट्रेलिया ने सबसे पहले 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया था। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया ने उन कंपनियों पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान किया है, जो बच्चों के लिए प्रभावित करने वाला कंटेंट बनाएंगी। ऑस्ट्रेलिया के इस कदम को देखते हुए न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया सहित कई अन्य देशों में भी इस मुद्दे पर विचार हो रहा है। ब्रिटेन, फ्रांस और नार्वे जैसे देशों ने भी बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर पाबंदियां लगाई हैं।

कई देशों ने पाबंदी को अधिकारों के खिलाफ माना
हालांकि, यह माना जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया इस तरह की पाबंदी लगाने वाला पहला देश है, लेकिन ऐसा नहीं है कि अन्य देशों ने इस दिशा में कदम नहीं उठाए हैं। 2011 में, दक्षिण कोरिया ने अपना "शटडाउन कानून" लागू किया था, जिसके तहत 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को रात 10.30 बजे से सुबह 6 बजे तक इंटरनेट गेम्स खेलने से रोका गया था। हालांकि, बाद में इसे रद्द कर दिया गया, क्योंकि सरकार ने इसे बच्चों के अधिकारों के खिलाफ पाया। इसी तरह, फ्रांस ने भी एक कानून पेश किया था, जिसमें 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया तक पहुंच पाने के लिए माता-पिता की अनुमति लेनी होती है। लेकिन रिसर्च से यह भी सामने आया कि कई बच्चे VPN का इस्तेमाल करके इस प्रतिबंध से बच जाते हैं। 

सोशल मीडिया के इस्तेमाल से पड़ने वाले प्रभाव
सोशल मीडिया के बच्चों पर प्रभाव को लेकर कई चिंताएं हैं। रिसर्च से यह साबित हुआ है कि बच्चों को अश्लील या हिंसक सामग्री का सामना करने से उनका व्यवहार हिंसक, आक्रामक और मतलबी हो सकता है। इसके अलावा, बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर निजी जानकारी साझा करना और अजनबियों के साथ संपर्क बढ़ाना भी एक बड़ा खतरा है। यह भी देखा गया है कि अनियंत्रित सोशल मीडिया उपयोग से बच्चे साइबरबुलिंग का शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स कंपनियों को बच्चों के व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल कर विज्ञापन दिखाने या उनके खरीदारी की आदतों को प्रभावित करने का अवसर भी देते हैं, जिससे बच्चों की गोपनीयता खतरे में पड़ती है।

सोशल मीडिया से फायदा भी
हालांकि, सोशल मीडिया के कुछ फायदे भी हैं। बच्चों को नए दोस्त बनाने, विभिन्न संस्कृतियों और विचारों को जानने का अवसर मिलता है। इसके अलावा, सोशल मीडिया बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और क्रिएटिविटी दिखाने का मंच भी प्रदान करता है। बच्चे अपनी पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों में भी भाग ले रहे हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास और सामाजिक विकास बढ़ रहा है। इन सभी पहलुओं के बीच यह भी महत्वपूर्ण है कि बच्चों के पास अपने विचार और निर्णय लेने का अधिकार है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा बाल अधिकारों के कन्वेंशन में स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार, सोशल मीडिया पर किसी प्रकार की पाबंदी बच्चों के विकास के लिए नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

सोशल मीडिया के प्रभाव के माता-पिता भी जिम्मेदार?
कुछ रिसर्च इस बात पर सवाल उठाती हैं कि बच्चों की सोशल मीडिया लत और गलत कंटेंट तक उनकी पहुंच के लिए मुख्य रूप से माता-पिता जिम्मेदार हैं। इनका कहना है कि अधिकांश बच्चों को सोशल मीडिया की लत इसलिए लगती है क्योंकि उनके माता-पिता उनके साथ पर्याप्त समय नहीं बिताते और बच्चों पर नजर रखने के बजाय उन्हें मोबाइल दे देते हैं। कई मनोवैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि माता-पिता को यह समझना होगा कि आखिर क्यों उनका बच्चा मोबाइल पर इतना समय बिता रहा है और उसे सोशल मीडिया पर ऐसा क्या मिल रहा है जो घर में या दोस्तों के बीच नहीं मिल रहा है। 

कैसे बढ़ जाती है पैरेंट्स की जिम्मेदारी
भारत में बच्चों द्वारा अश्लील कंटेंट देखने की समस्या केवल बच्चों तक सीमित नहीं है। देश में करीब 60 प्रतिशत युवा अपने माता-पिता के मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं और कई सर्वे यह दिखाते हैं कि भारत में बहुत से लोग स्मार्टफोन का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं जानते। ऐसे में, सोशल मीडिया पर देखा जाने वाला सामग्री बच्चों को प्रभावित करता है। जब सरकार बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर सख्ती करने जा रही है, तो माता-पिता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका बच्चा मोबाइल पर क्या देखता है और क्या वह सही कंटेंट का पालन कर रहा है। इसके अलावा, माता-पिता को यह समझना भी आवश्यक है कि वह मोबाइल पर क्या सर्च कर रहे हैं, ताकि बच्चों तक गलत सामग्री न पहुंच सके।

टेक कंपनियों कर रही विरोध
जब भी किसी देश में सोशल मीडिया से जुड़े नियम लागू किए जाते हैं, तो टेक कंपनियां इसका विरोध करती हैं। उनका तर्क है कि इससे लोगों की स्वतंत्रता में बाधा आती है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के साइबर विशेषज्ञ विराग गुप्ता का कहना है कि अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में 13 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने का कानून पहले से ही मौजूद है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत जैसे देश में, जहां 18 साल से कम उम्र के बच्चे कई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले सकते, वहां सोशल मीडिया पर आसानी से सहमति ली जा रही है। टेक कंपनियां इन नियमों का विरोध इसलिए करती हैं, क्योंकि उन्हें बच्चों से 40 प्रतिशत से अधिक राजस्व मिलता है।

ये भी पढ़ें- डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट : सोशल मीडिया अकाउंट के लिए बच्चों को पेरेंट्स से लेनी होगी मंजूरी, सरकार ने ड्राफ्ट जारी किया, जल्द आएगा नियम

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