उत्तर प्रदेश का हाथरस हादसा हर किसी के लिए सबक बन गया है। हाथरस हादसे से सबक लेते हुए ओडिशा राज्य ने सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया है। इस बार यात्रा में भीड़ नियंत्रित करने के लिए एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा...
हाथरस भगदड़ का असर ओडिशा तक : जगन्नाथ यात्रा में एआई करेगी भीड़ को नियंत्रित, यूपी के हादसे से ये लिया सबक
Jul 06, 2024 16:05
Jul 06, 2024 16:05
- सात जुलाई से होगी जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरूआत
- हाथरस हादसे से सबक लेते हुए ओडिशा ने सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाया
- यात्रा के दौरान ड्रोन से होगी भीड़ पर नजर
ओडिशा पुलिस करेगी एआई का इस्तेमाल
जानकारी के मुताबिक पुलिस पहली बार सुरक्षा व्यवस्था में एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है। एआई-कैमरों और ड्रोन की मदद से भीड़ का पता लगाया जाएगा। वाहनों की गिनती करने और समय पर सही जानकारी मिलने की मदद मिलेगी। ओडिसा पुलिस ने पहली बार सार्वजनिक घोषणा प्रणाली से लैस पांच अत्याधुनिक जग ड्रोन को इस्तेमाल करने का फैसला लिया है। हाथरस हादसे का बाद पुलिस रथ यात्रा के दौरान ज्यादा सतर्क रहने वाली है।
यह है पूरी व्यवस्था
बताया जा रहा है कि पुलिस का लक्ष्य तीन किमी लंबी ग्रैंड रोड जहां से रथ को खींचकर ले जाया जाएगा, वहां पर किसी भी हादसे से बचाना है। पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक वहां पर 200 से ज्यादा ए-आई कैमरे लगाए गए हैं। इसके अलावा तीन ड्रोन ऐसे हैं, जिनमें कैमरा, पब्लिक एड्रेस सिस्टम और सायरन लगा हुआ है। तीनों ड्रोन यात्रा को कवर करते चलेंगे। इसके साथ ही रैपिड एक्शन फोर्स की तीन कंपनियां, सीआरपीएफ की दो कंपनियां और आठ प्लाटून एसओजी ग्रुप की लगाई गई हैं। यात्रा को लेकर पुलिस प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है।
कैसे हुआ था हाथरस हादसा
उत्तर प्रदेश के हाथरस में 2 जुलाई को दर्दनाक हादसा हुआ था जिसमें 121 लोगों की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि सत्संग के लिए 80 हजार लोगों की अनुमति ली गई थी, लेकिन सत्संग के दौरान 2 लाख से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ थी। एसडीएम सिकंदराराऊ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सत्संग खत्म होने के बाद नारायण साकार हरि (भोले बाबा) के दर्शन और चरण स्पर्श करने के साथ चरण रज माथे पर लगाने के लिए लोग आगे बढ़े। तभी श्रद्धालु उनके वाहन की ओर दौड़ने लगे। बाबा के निजी सुरक्षा कर्मियों ने सेवादारों ने भीड़ को रोकने के लिए धक्का-मुक्की शुरू कर दी। इससे कुछ लोग नीचे गिर गए। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में पता चला कि अधिकांश लोगों की मौत दम घुटने से हुई।
कल से शुरू हो रही है यात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा इस साल 7 जुलाई से शुरू हो रही है। इस यात्रा का हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से आयोजन किया जाता है और यह दशमी तिथि तक चलती है। इस रथ यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा पुरी शहर में रथ की सवारी करते हैं। यह यात्रा विश्वभर में रथ यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है। इस शुभ अवसर पर जगन्नाथजी की रथ यात्रा में शामिल होने का मान्यता प्राप्त करना समर्थ्य और सम्माननीय माना जाता है। रथ यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन से ही शुरू होती है, जब श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों का निर्माण प्रारंभ होता है।
ऐसे हुई यात्रा की शुरूआत
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ का 800 साल पुराना मंदिर स्थित है, जहां वे भगवान श्रीकृष्ण के रूप में विराजमान हैं। यहां के तीन रथों - जगन्नाथ रथ, बलभद्र रथ और सुभद्रा रथ, से जुड़ी विशेष बातें और उनकी महत्वपूर्णता के बारे में भी जानकारी मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलरामजी से नगर की दर्शनीय स्थलों को देखने की इच्छा जाहिर की। इस पर उनके भाइयों ने प्रेम से उनके लिए एक भव्य रथ तैयार करवाया और तीनों मिलकर नगर का भ्रमण किया। रास्ते में वे अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए, जहां वे 7 दिनों तक ठहरे, और फिर अपनी यात्रा को पूरा करके वापस लौटे। इस घटना के बाद, हर साल तीनों भाई-बहन अपने रथ पर सवार होकर नगर की यात्रा करते हैं, और गुंडिचा मंदिर में जाते हैं। इनमें सबसे पहले बलरामजी का रथ, फिर सुभद्रा का रथ, और सबसे आखिर में कृष्णजी का रथ होता है।
क्या है जगन्नाथ यात्रा का महत्व
भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन के रथ नीम की परिपक्व और पकी हुई लकड़ी से बनाए जाते हैं, जिसे दारु कहते हैं। इन रथों को तैयार करते समय केवल लकड़ी का ही उपयोग किया जाता है, और किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल नहीं होता। भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं और यह दो अन्य रथों से बड़ा होता है। रथ यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी सम्पन्न किए जाते हैं। विश्वास है कि इस रथ यात्रा के दर्शन से 1000 यज्ञों का पुण्य फल प्राप्त होता है। जब तीनों रथ सजसंवरकर तैयार हो जाते हैं, तो फिर पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है और रथों की पूजा की जाती है। इसके बाद, सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के मार्ग को साफ किया जाता है।
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