केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की है जिससे भारतीय सड़क परिवहन क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आएगा। उन्होंने मौजूदा टोल सिस्टम को समाप्त करने और एक सैटेलाइट...
काम की खबर : अब भारत में लागू होगा सैटेलाइट बेस्ड टोल कलेक्शन सिस्टम, जानें क्या होगी प्रक्रिया...
Jul 27, 2024 09:47
Jul 27, 2024 09:47
सैटेलाइट बेस्ड टोल सिस्टम
सैटेलाइट बेस्ड टोल सिस्टम एक नई तकनीकी पहल है, जिसमें GNSS का उपयोग करके टोल टैक्स संग्रहित किया जाएगा। यह मौजूदा RFID आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम को बदलने का प्रस्ताव है। इस प्रणाली में वर्चुअल टोल गेट्स का उपयोग किया जाएगा, जो कि वाहन की स्थिति के आधार पर टोल राशि की कटौती करेंगे। बता दें कि इस समय भारतीय सड़कों पर टोल संग्रह के लिए RFID टैग्स का उपयोग किया जा रहा है। इस सिस्टम में वाहन पर लगे RFID टैग को सड़क पर स्थापित टोल गेट्स के स्कैनर द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे टोल राशि स्वतः ही काटी जाती है। हालांकि यह प्रणाली कुछ सीमाओं के साथ आती है, जैसे कि उच्च भीड़भाड़ वाले टोल प्लाजा पर लंबी कतारें और RFID टैग की खराबी या न पढ़े जाने की समस्याएँ।
सैटेलाइट बेस्ड टोल सिस्टम की विशेषताएँ
- GNSS तकनीक का उपयोग : GNSS आधारित टोलिंग सिस्टम में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम का उपयोग किया जाएगा। भारत में उपलब्ध GAGAN और NavIC जैसे नेविगेशन सैटेलाइट्स की सहायता से वाहन की स्थिति को सटीक रूप से ट्रैक किया जा सकेगा।
- वर्चुअल गैन्ट्रीज : इस प्रणाली में वर्चुअल गैन्ट्रीज को सड़कों पर स्थापित किया जाएगा। ये गैन्ट्रीज वास्तविक गेट्स की तरह नहीं दिखेंगे, बल्कि एक डिजिटल सिस्टम के माध्यम से काम करेंगे। वाहन के GNSS सिग्नल्स के आधार पर ये वर्चुअल गैन्ट्रीज निर्धारित करेंगे कि वाहन ने किस क्षेत्र में प्रवेश किया और इसके अनुसार टोल राशि का निर्धारण करेंगे।
- स्वचालित टोल कलेक्शन : जब वाहन वर्चुअल गैन्ट्री से गुजरेगा, तो सॉफ्टवेयर ऑटोमेटिक रूप से वाहन के अकाउंट से टोल राशि की कटौती कर देगा। इस प्रक्रिया के दौरान वाहन मालिक को टोल भुगतान के लिए कोई अतिरिक्त क्रिया करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे समय की बचत और सुविधा में वृद्धि होगी।
- डेटा सुरक्षा और सटीकता : GNSS आधारित प्रणाली के माध्यम से डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी, क्योंकि सभी ट्रैकिंग और टोल कलेक्शन गतिविधियाँ एन्क्रिप्टेड डेटा के माध्यम से की जाएंगी। इसके अलावा, वाहन ट्रैकिंग की सटीकता में सुधार होगा, जिससे टोल शुल्क की गणना और संग्रहण में उच्च स्तर की सटीकता प्राप्त की जा सकेगी।
फास्टैग आधारित टोल सिस्टम की वर्तमान स्थिति
फास्टैग आधारित टोल सिस्टम में वाहन मालिकों को टोल प्लाजा पर अपनी गाड़ी के फास्टैग को स्कैन करने के बाद टोल का भुगतान करना पड़ता है। यह भुगतान यात्रा की दूरी पर निर्भर नहीं करता। बल्कि एक निश्चित टोल टैक्स होता है जो टोल प्लाजा पर रुकने पर लिया जाता है। इस प्रणाली में एक प्रमुख समस्या यह है कि छोटी दूरी की यात्रा के लिए भी पूरे टोल का भुगतान करना पड़ता है, जिससे कुछ यात्रियों को अधिक लागत का सामना करना पड़ता है।
सैटेलाइट टोल सिस्टम का लाभ
नए सैटेलाइट टोल सिस्टम में टोल शुल्क आपकी यात्रा की वास्तविक दूरी के आधार पर निर्धारित किया जाएगा। इसका मतलब है कि अगर आप हाईवे पर छोटी दूरी की यात्रा करते हैं, तो आपको केवल उतनी ही दूरी के लिए टोल देना होगा। इससे अतिरिक्त टोल टैक्स का भुगतान करने से बचा जा सकता है, जो विशेष रूप से उन यात्रियों के लिए फायदेमंद होगा जो केवल संक्षिप्त दूरी की यात्रा करते हैं।
भारत में नया सिस्टम लागू होने की तैयारी
भारत में एक नया सिस्टम लागू होने जा रहा है, जिसका उद्देश्य सरकारी प्रक्रियाओं और सेवाओं को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाना है। यह सिस्टम डिजिटल और तकनीकी नवाचारों का लाभ उठाते हुए नागरिकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करेगा।
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