मृतक आश्रित कोटे के तहत नियुक्तियों के मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस कोटे का मकसद परिवार को तात्कालिक मदद देना होता है और इसे वर्षों बाद आधार बनाकर नियुक्ति की मांग करना न्यायसंगत नहीं है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट : मृतक आश्रित कोटा में तात्कालिक मदद का प्रावधान, 19 साल बाद याचिका की खारिज
Sep 29, 2024 15:19
Sep 29, 2024 15:19
नियुक्ति के लिए लंबा इंतजार वैध नहीं
हाईकोर्ट ने जालौन के निवासी देवेंद्र कुमार की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने मृतक आश्रित कोटे के तहत 19 साल बाद नियुक्ति के लिए अर्जी दाखिल की थी, जिसे हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने कहा कि इस कोटे के अंतर्गत नियुक्ति का आधार तत्काल राहत होता है, जो लंबे समय बाद उपयोगी नहीं रह जाता।
अदालत की राय
याचिकाकर्ता देवेंद्र कुमार का कहना था कि उनके पिता, हरे कृष्ण चौधरी, जो खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग में एडीओ (बायोगैस) के पद पर कार्यरत थे, का निधन हो गया था। इसके बाद उनकी माता का भी देहांत हो गया। परिवार में एक बहन बालिग थी, जबकि याचिकाकर्ता और अन्य सभी वारिस उस समय नाबालिग थे। उस समय बालिग बहन ने मृतक आश्रित कोटे के तहत नियुक्ति की अर्जी दी थी, लेकिन उसे नियुक्ति नहीं दी गई।
जब याचिकाकर्ता बालिग हुआ, तो उसने फिर से इस कोटे के तहत नियुक्ति की मांग की। हालांकि, डायरेक्टर ने याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज कर दी, यह कहते हुए कि पद रिक्त नहीं था और अर्जी तीन साल के बाद दाखिल की गई थी, जो नियमों के अनुसार अमान्य है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने इस फैसले को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) में चुनौती दी, जहां से वाद खारिज हो गया।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि 2004 से 2011 तक कुछ अन्य लोगों को लंबी अवधि के बाद नियुक्ति दी गई थी, इसलिए याचिकाकर्ता को भी समान अवसर मिलना चाहिए। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया और कहा कि नकारात्मक समानता की मांग नहीं की जा सकती।
कोर्ट का निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने कैट के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि नियुक्ति के लिए रिक्ति का होना आवश्यक है और यह मामला तात्कालिक राहत से संबंधित है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मृतक आश्रित कोटा का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है, और इसे लंबे समय तक खींचकर वैकल्पिक रोजगार का स्रोत नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने यह भी माना कि बहन की नियुक्ति अर्जी को चुनौती न दिए जाने के बाद याचिकाकर्ता को नियुक्ति के लिए अधिकार नहीं था। अदालत ने कहा कि जो अन्य लोग लंबे समय के बाद नियुक्त हुए थे, वह इस मामले में लागू नहीं हो सकते, क्योंकि नियुक्ति की प्रक्रिया और नियम भिन्न हो सकते हैं।
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