प्रयागराज को सनातन संस्कृति का तीर्थराज माना जाता है, क्योंकि यह नगर न केवल भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है, बल्कि यहां पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने यहां सृष्टि का पहला यज्ञ किया था, जिसके कारण इस क्षेत्र को प्रयाग के नाम से जाना जाता है।
प्रयागराज का दशाश्वमेध घाट : जहां ब्रह्मा जी ने किया था सृष्टि का प्रथम यज्ञ, जानें जुड़ी पौराणिक कथाएं और धार्मिक महत्व
Dec 10, 2024 23:59
Dec 10, 2024 23:59
- दशाश्वमेध घाट सृष्टि का प्रथम यज्ञस्थल
- सीएम योगी के प्रयासों से हो रहा मंदिर और घाट का कायाकल्प
- ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से श्रद्धालु को मिलती है मुक्ति
दस अश्वमेध यज्ञ
प्रयागराज का दशाश्वमेध घाट गंगा के तट पर स्थित है, जहां भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि के निर्माण के बाद दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। इस कारण ही इस घाट का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। यहां पर भगवान ब्रह्मा ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना की थी और यह स्थान अब ब्रह्मेश्वर महादेव के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, युधिष्ठिर ने भी धर्मराज के आदेश पर यहां दशाश्वमेध यज्ञ किया था।
प्रयागराज का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
प्रयागराज का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वेदों और पुराणों में वर्णित कथाओं से स्पष्ट होता है। ऋगवेद में इसे चंद्रवंशी राजा इला की राजधानी के रूप में उल्लेखित किया गया है। इसके साथ ही रामायण, महाभारत और पद्मपुराण जैसे ग्रंथों में भी प्रयागराज का महत्व बताया गया है। भगवान ब्रह्मा द्वारा किए गए यज्ञ के कारण इसे सृष्टि का प्रथम यज्ञस्थल माना गया और सनातन संस्कृति के पहले तीर्थ के रूप में इसका स्थान स्थिर हुआ।
ब्रह्मेश्वर महादेव: ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित शिवलिंग
प्रयागराज के दारगंज में स्थित दशाश्वमेध मंदिर में ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना भगवान ब्रह्मा ने स्वयं की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस शिवलिंग के दर्शन और पूजन से तात्कालिक फल की प्राप्ति होती है। यह मंदिर देश का एकमात्र शिव मंदिर है, जहां एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा होती है। इस स्थान की महिमा से जुड़ी एक प्रचलित कथा है, जिसके अनुसार मुगल आक्रांता औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया था, लेकिन शिवलिंग से निकलने वाली दूध और रक्त की धार देखकर वह हतप्रभ हो गया और मंदिर को नुकसान पहुंचाए बिना लौट गया। इसके बाद खंडित शिवलिंग के स्थान पर दशाश्वमेध शिवलिंग की स्थापना की गई, लेकिन ब्रह्मेश्वर शिवलिंग को वहां से नहीं हटाया गया। तब से यहां दोनों शिवलिंगों का पूजन होता है।
श्रावण मास में विशेष महत्व
पुजारी विमल गिरी के अनुसार, श्रावण मास में ब्रह्मेश्वर शिवलिंग का पूजन विशेष महत्व रखता है। इस समय काशी विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए आने वाले कांवड़िए दशाश्वमेध घाट से गंगा जल लेकर ब्रह्मेश्वर शिवलिंग का पूजन करते हैं और फिर काशी कांवड़ यात्रा के लिए जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां शिवलिंग की पूजा करने से शीघ्र फल प्राप्त होते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र सृष्टि का प्रथम यज्ञ स्थल माना जाता है। महाभारत के अनुसार, धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां मार्कण्डेय ऋषि की सलाह पर दश अश्वमेध यज्ञ किए थे और विजय प्राप्त की थी।
ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से ब्रह्मलोक की प्राप्ति
प्रयागराज के दशाश्वमेध घाट पर स्थित ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से संबंधित एक पौराणिक मान्यता है कि यहां शिवलिंग का पूजन करने से व्यक्ति को त्रिविध तापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में दशाश्वमेध घाट पर एक ब्रह्म कुण्ड भी था, जिसे ब्रह्मा जी ने स्वयं बनाया था। इस कुण्ड का जल शिव जी के अभिषेक के लिए अत्यंत पुण्यकारी माना जाता था। प्रयाग क्षेत्र में गंगा स्नान के बाद ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से श्रद्धालु को मुक्ति मिलती है और उसका जीवन और अधिक पुण्यमय हो जाता है।
सीएम योगी के प्रयासों से मंदिर और घाट का कायाकल्प
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में महाकुम्भ 2025 के लिए प्रयागराज के दशाश्वमेध मंदिर और घाट का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण कार्य तेजी से चल रहा है। योगी सरकार ने न केवल मंदिर और घाट का जीर्णोद्धार किया है, बल्कि इसे सुंदर बनाने के लिए नक्काशी, चित्रकारी और लाईटिंग का भी कार्य कराया है। इस कार्य से दशाश्वमेध मंदिर ने अपने प्राचीन वैभव को फिर से हासिल किया है। स्थानीय लोगों के अनुसार, सीएम योगी से पहले किसी भी सरकार ने इस मंदिर के जीर्णोधार पर ध्यान नहीं दिया था, लेकिन अब यह स्थल श्रद्धालुओं के लिए और भी आकर्षक और मनोहक हो गया है।
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