इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला : महाकुंभ में जहां पहले जमीन मिली थी वहां दोबारा देने का वादा नहीं कर सकते, नए सिरे से करें आवेदन

महाकुंभ में जहां पहले जमीन मिली थी वहां दोबारा देने का वादा नहीं कर सकते, नए सिरे से करें आवेदन
UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट

Dec 22, 2024 12:21

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुंभ मेले में अतीत में दी गई जमीन पर दुबारा अधिकार का दावा करने से मना किया है। कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए याची से कहा कि वह नए सिरे से आवेदन दे।

Dec 22, 2024 12:21

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुंभ मेले में अतीत में दी गई जमीन पर दुबारा अधिकार का दावा करने से मना किया है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति पिछले आवंटन के आधार पर उसी जमीन पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता। यह निर्णय न्यायमूर्ति शेखर बी सर्राफ और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने योग सत्संग समिति की याचिका पर दिया। यह संस्था योगी सत्यम से जुड़ी हुई है।

कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से किया इंकार
कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए याची से कहा कि वह नए सिरे से आवेदन दे और संबंधित अधिकारी उस पर सात दिनों के भीतर तर्कपूर्ण आदेश दें। याची के वकील ने अदालत में यह तर्क रखा कि उन्हें भूमि आवंटित किए जाने का निहित अधिकार है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि उन्हें उसी स्थान पर फिर से जमीन दी जाए, जो पहले उन्हें दी गई थी। याची ने यह भी बताया कि वर्ष 2001, 2007 और 2013 के कुंभ मेला में त्रिवेणी मार्ग और मुक्ति मार्ग चौराहे पर उन्हें जमीन आवंटित की गई थी। इसके बाद 2019 में उन्हें अन्य स्थान पर भूमि आवंटित की गई थी, लेकिन इस बार याची ने आपत्ति नहीं की थी।



भूमि के आवंटन में नहीं हो सकता 
सरकार और प्रयागराज मेला प्राधिकरण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि याची जिस भूमि पर दावा कर रहे हैं, वह शंकराचार्यों, अखाड़ों और महामंडलेश्वरों को दी गई है। इस भूमि के आवंटन में बदलाव से स्थिति जटिल हो सकती है और इससे समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

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प्रशासनिक अधिकारियों को दिया निर्देश
न्यायालय ने दोनों पक्षों की विस्तृत सुनवाई के बाद यह निर्णय दिया कि कोई भी व्यक्ति या संस्था पूर्व में मिली जमीन के आधार पर निहित अधिकार का दावा नहीं कर सकती। हालांकि न्यायालय ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए नए सिरे से आवेदन करने की अनुमति दी है और प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे सात दिनों के भीतर तर्कसंगत निर्णय लें।

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