श्रीराम बैंक एक ऐसा अनोखा वित्तीय संस्थान है जो पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं से परे है। यहां पैसे का लेन-देन नहीं होता, बल्कि श्रद्धालुओं को प्रभु राम का नाम लिखने का ऋण दिया जाता है।
महाकुंभ में श्रीराम बैंक : एक अनोखा बैंक जो पैसे के बजाय राम का नाम देता उधार, जानें इसकी खासियत
Jan 22, 2025 11:00
Jan 22, 2025 11:00
बैंक की स्थापना और ऋण प्रक्रिया
श्रीराम बैंक की एक शाखा 22 दिसंबर को मेला क्षेत्र के सेक्टर छह में खोली गई थी। इस बैंक के कर्ताधर्ता आशुतोष वार्ष्णेय का कहना है कि यह बैंक करीब 150 साल पुराना है और इसकी स्थापना पहले चौक के व्यापारियों ने की थी। शुरुआत में व्यापारियों ने अपनी कमाई का 10 प्रतिशत सामाजिक कार्यों में लगाने की सोची थी, और इसी से राम नाम लेखन का सिलसिला शुरू हुआ। पहले बही खातों में लेखन होता था, फिर बुकलेट्स आईं और अब ई-राम का उपयोग सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए लेन-देन के लिए किया जा रहा है।
ऋण की प्रक्रिया
श्रीराम बैंक में राम नाम लिखने का ऋण लेने के लिए किसी भी श्रद्धालु को कम से कम डेढ़ लाख का ऋण मिलता है। इसके बाद यह श्रद्धालु अपनी इच्छानुसार अधिक ऋण भी ले सकते हैं। राम नाम लिखने के लिए श्रद्धालुओं को मुफ्त में छपी हुई बुकलेट्स दी जाती हैं, जिसमें खाली पन्नों पर वे प्रभु राम का नाम लिखते हैं। इस लेखन की गणना हर पृष्ठ पर की जाती है। बुकलेट्स पूरी होने के बाद, भक्त इन्हें बैंक में जमा कर देते हैं और यह ऋण का भुगतान मानते हैं। यह प्रक्रिया बैंक के खाता-बही में दर्ज होती है और बाद में दूसरे श्रद्धालुओं के लिए यह ऋण का काम करती है।
ऋण की वसूली और शर्तें
श्रीराम बैंक में ऋण की वसूली मासिक किस्तों (EMI) के रूप में की जाती है। इस बैंक में ऋण लेने के लिए कोई भी श्रद्धालु अपनी पहचान के रूप में केवल एक फोटो दिखा सकता है। इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण शर्त है कि ऋण लेने वाले को मांस-मदिरा के साथ लहसुन-प्याज का सेवन भी त्यागना होता है। इसके अलावा, ऋण लेने वाले श्रद्धालु को छह से लेकर 80 वर्ष की आयु तक का होना चाहिए।
विदेशों से भी श्रद्धालु लेते हैं ऋण
राम नाम के ऋण लेने वालों में सिर्फ भारतीय नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु जुड़ रहे हैं। नीदरलैंड के हैंक केल्मैन और अमेरिका में रहने वाली सोनल सिंह ने एक-एक करोड़ का राम नाम ऋण लिया है। हैंक अब रामकृष्ण दास के नाम से प्रसिद्ध हैं।
श्रीराम बैंक का सामाजिक योगदान
इस बैंक का उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाना नहीं है, बल्कि यह समाज के कल्याण के लिए भी कार्य करता है। आशुतोष वार्ष्णेय बताते हैं कि उनके परिवार ने हमेशा सामाजिक कार्यों के लिए अपनी कमाई का एक हिस्सा दान में दिया है। बैंक की शुरुआत से लेकर अब तक इसका लक्ष्य केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि एक सशक्त और सामूहिक धार्मिक भावना को बढ़ावा देना है।
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