महाकुंभ के दौरान अखाड़ों के छावनी प्रवेश की शोभायात्रा में काशी और दरभंगा की रंगमंडलियों के कलाकार अपनी अनोखी प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह रहे हैं। कोई अघोरी बनकर स्वांग रचा रहा है तो कोई भगवान कृष्ण की भूमिका में रस भर रहा है।
महाकुंभ के दौरान शोभायात्रा में धूमधाम : महाकाल और अघोरी के स्वांग रचाते कलाकार,आकर्षण में है मूंछों का डांस
Jan 12, 2025 14:08
Jan 12, 2025 14:08
महाकुंभ के दौरान शोभायात्रा
महाकुंभ के दौरान अखाड़ों के छावनी प्रवेश की शोभायात्रा में काशी और दरभंगा की रंगमंडलियों के कलाकार अपनी अनोखी प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह रहे हैं। कोई अघोरी बनकर स्वांग रचा रहा है तो कोई भगवान कृष्ण की भूमिका में रस भर रहा है। इन कलाकारों की मेहनत और कला की कीमत भी कम नहीं—इनकी फीस दो हजार से लेकर सवा लाख रुपये तक होती है।
भगवान महाकाल के स्वरूप की लोकप्रियता
काशी के सोनू जो महाकाल की भूमिका निभाते हैं बताते हैं कि भगवान का स्वरूप धारण करना सरल नहीं है। इसके लिए मानसिक और शारीरिक तैयारी आवश्यक होती है। उन्होंने पहली बार 2019 में महाकाल का स्वांग रचाया था। भभूत से सजी उनकी प्रस्तुति ने दर्शकों के दिल में गहरी छाप छोड़ी, जिससे उन्हें एक अलग पहचान मिली। सोनू की टीम में पार्वती की भूमिका सपना निभाती हैं और 10 अन्य युवा अघोरी का किरदार निभाते हैं। उनकी प्रस्तुतियों की मांग न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में भी होती है। काशी के आयोजनों में सोनू को 61 हजार रुपये मिलते हैं, जबकि अन्य राज्यों में उनकी फीस सवा लाख रुपये तक होती है।
स्वांग रचाने की मेहनत और तैयारी
सोनू जो बीएचयू से संगीत में डिप्लोमा कर चुके हैं बताते हैं कि महाकाल के रूप में तैयार होने में तीन से चार घंटे का समय लगता है। एक बार तैयार होने के बाद वे छह से आठ घंटे तक इस स्वरूप में रहते हैं। सबसे खास बात यह है कि ये कलाकार अपना मेकअप स्वयं करते हैं, जिससे उनकी प्रस्तुति और अधिक प्रामाणिक और प्रभावशाली बनती है।
मूंछों के नृत्य का अनोखा प्रदर्शन
महाकुंभ में राजेंद्र तिवारी जिन्हें "दुकानजी" के नाम से जाना जाता है, अपनी मूंछों के नृत्य से सबका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। उनका पूरा शरीर स्थिर रहता है, जबकि उनकी मूंछें अनोखे अंदाज में भाव-भंगिमाएं प्रस्तुत करती हैं। दुकानजी ने 17 साल की उम्र में एक साधु से प्रेरणा लेकर अपनी मूंछें बढ़ाना शुरू किया। साधु ने उन्हें हिमालय ले जाकर आध्यात्मिक शिक्षा दी और मूंछें न काटने की सलाह दी। उनके इस समर्पण ने उन्हें कई रिकॉर्ड दिलाए, जैसे 1994 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, 1995 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और 2012 में इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला।
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