प्राचीन पौराणिक कथाओं का साक्षी नागवासुकी मंदिर : समुद्र मंथन के बाद सर्पराज ने यहां किया विश्राम, महाकुंभ में होगा आकर्षण का केंद्र

समुद्र मंथन के बाद सर्पराज  ने यहां किया विश्राम, महाकुंभ में होगा आकर्षण का केंद्र
UPT | नागवासुकी मंदिर

Dec 11, 2024 19:18

प्रयागराज के पौराणिक मंदिरों में नागवासुकी मंदिर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सनातन धर्म में नागों या सर्पों की पूजा का प्रचलन बहुत प्राचीन काल से है...

Dec 11, 2024 19:18

Prayagraj News : प्रयागराज के पौराणिक मंदिरों में नागवासुकी मंदिर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सनातन धर्म में नागों या सर्पों की पूजा का प्रचलन बहुत प्राचीन काल से है और पुराणों में नागवासुकी के बारे में कई कथाएं वर्णित हैं। उन्हें सर्पराज माना जाता है और वे भगवान शिव के कण्ठहार हैं। समुद्र मंथन की कथा में बताया गया है कि नागवासुकी को सागर मंथन के दौरान रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था। मंथन के बाद, भगवान विष्णु के निर्देश पर नागवासुकी ने प्रयाग में विश्राम किया और देवताओं के अनुरोध पर वहीं निवास करने का निर्णय लिया।

नागवासुकी का दर्शन करने से होती है फल की प्राप्ति
नागवासुकी के मंदिर का स्थान वर्तमान में प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और यहां संगम स्नान के बाद नागवासुकी का दर्शन करने से भक्तों को पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। इस मंदिर की महत्ता को लेकर विशेष विश्वास है, जो प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।



सर्पराज नाग वासुकि ने यहां किया था विश्राम 
नागवासुकि जी कथा का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण,भागवत पुराण और महाभारत में भी मिलता है। समुद्र मंथन की कथा में वर्णन आता है कि जब देव और असुर, भगवान विष्णु के कहने पर सागर को मथने के लिए तैयार हुए तो मंदराचल पर्वत मथानी और नागवासुकि को रस्सी बनाया गया था। लेकिन मंदराचल पर्वत की रगड़ से नागवासुकि जी का शरीर छिल गया था। तब भगवान विष्णु के ही कहने पर उन्होंने प्रयाग में विश्राम किया और त्रिवेणी संगम में स्नान कर घावों से मुक्ति प्राप्त की। वाराणसी के राजा दिवोदास ने तपस्या कर उनसे भगवान शिव की नगरी काशी चलने का वरदान मांगा।

देवताओं ने प्रयागराज में रहने का किया आग्रह
इसके बाद, दिवोदास की तपस्या से प्रसन्न होकर जब नागवासुकि प्रयाग से जाने लगे तो देवताओं ने उनसे प्रयाग में ही रहने का आग्रह किया। तब नागवासुकि ने कहा कि, अगर मैं प्रयागराज में रुकूंगा तो संगम स्नान के बाद श्रद्धालुओं के लिए मेरा दर्शन करना अनिवार्य होगा और सावन मास की पंचमी के दिन तीनों लोकों में मेरी पूजा होनी चाहिए। देवताओं ने उनकी इन मांगों को स्वीकार कर लिया। तब ब्रह्माजी के मानस पुत्र द्वारा मंदिर बना कर नागवासुकि को प्रयागराज के उत्तर पश्चिम में संगम तट पर स्थापित किया गया। 

नागवासुकि ने किया भोगवती तीर्थ का निर्माण  
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब देव नदी गंगा जी का धरती पर अवतरण हुआ तो भगवान शिव की जटा से उतर कर भी मां गंगा का वेग अत्यंत तीव्र था और वो सीधे पाताल में प्रवेश कर रहीं थी। तब नागवासुकि ने ही अपने फन से भोगवती तीर्थ का निर्माण किया था। नागवासुकि मंदिर के पुजारी श्याम लाल त्रिपाठी ने बताया कि प्राचीन काल में मंदिर के पश्चिमी भाग में भोगवती तीर्थ कुंड था जो वर्तमान में कालकवलित हो गया है। मान्यता है बाढ़ के समय जब मां गंगा मंदिर की सीढ़ियों को स्पर्श करती उस समय इस घाट पर गंगा स्नान से भोगवती तीर्थ के स्नान का पुण्य मिलता है।

नागपंचमी पर सर्पों के पूजन पर्व की यहीं से हुई शुरुआत
मंदिर के पुजारी ने बताया कि नागपंचमी पर्व की शुरुआत भगवान नागवासुकि जी की शर्तों के कारण ही हुई। नाग पंचमी के दिन मंदिर में प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। मान्यता है इस दिन भगवान वासुकि का दर्शन कर चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा अर्पित करने मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, प्रत्येक मास की पंचमी तिथि को नागवासुकि के विशेष पूजन का विधान है। इस मंदिर में कालसर्प दोष और रूद्राभिषेक करने से जातक के जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

महाकुम्भ में हुआ जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण 
पौराणिक वर्णन के अनुसार, प्रयागराज के द्वादश माधवों में से असि माधव का स्थान भी मंदिर में ही था। इस वर्ष देवोत्थान एकादशी के दिन असि माधव जी के नये मंदिर में उन्हें फिर से प्रतिष्ठित किया गया है। उन्होंने बताया कि इससे पहले सांसद मुरली मनोहर जोशी ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस महाकुम्भ में नागवासुकि मंदिर और उनके प्रांगण का जीर्णोंद्धार और सौंदर्यीकरण का कार्य हुआ है। यूपी सरकार और पर्यटन विभाग के प्रयासों से मंदिर की महत्ता से नई पीढ़ी को भी परिचित कराया जा रहा है। संगम स्नान, कल्पवास और कुम्भ स्नान के बाद नागवासुकि के दर्शन के बाद ही पूर्ण फल की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाली सभी बाधांए दूर होती हैं

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