महाकुंभ का आकर्षण विशेष रूप से साधु-संतों के अखाड़ों से जुड़ा होता है, जिनका नगरप्रवेश और पेशवाई आयोजन इस मेले का मुख्य आकर्षण बनता है...
धर्म और शस्त्र विद्या का संगम : आदि शंकराचार्य की विरासत, जानिए महाकुंभ में शामिल प्राचीन 13 अखाड़ों का इतिहास
Jan 10, 2025 18:04
Jan 10, 2025 18:04
कैसे हुई 'अखाड़ा' शब्द की उत्पत्ति
अखाड़ा, साधुओं का एक विशेष समूह होता है जो शस्त्र विद्या में निपुण होते हैं। आमतौर पर शब्द "अखाड़ा" का प्रयोग कुश्ती या शारीरिक प्रशिक्षण के लिए किया जाता है, लेकिन साधुओं के संदर्भ में इसका एक अलग ही महत्व है। ऐतिहासिक रूप से, "अखाड़ा" शब्द अलख से उत्पन्न हुआ माना जाता है, जो साधुओं के प्रशिक्षण केंद्र या उनके कार्यक्षेत्र को संदर्भित करता है। पहले इन स्थानों को "साधुओं का बेड़ा" कहा जाता था, लेकिन मुग़ल काल में इसका नाम बदलकर अखाड़ा रख दिया गया।
किसने की अखाड़े की स्थापना
अखाड़ों की शुरुआत का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है। वह आठवीं सदी में हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र विद्या में दक्ष साधुओं के संगठन बनाने के लिए प्रसिद्ध हुए। शंकराचार्य ने कुल 13 अखाड़ों की स्थापना की, जो आज भी अस्तित्व में हैं। इन अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना, लेकिन साथ ही शारीरिक बल को भी प्रोत्साहित करना था। कुंभ मेलों के दौरान सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते हैं, लेकिन नासिक के कुंभ में यह व्यवस्था थोड़ी भिन्न होती है, जहां वैष्णव और शैव अखाड़े अलग-अलग स्थानों पर स्नान करते हैं।
भारत में कितने अखाड़ा हैं?
वर्तमान में, महाकुंभ में कुल 13 अखाड़े हैं, जो तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित हैं— शैव, वैष्णव और उदासीन। इन अखाड़ों में विभिन्न परंपराओं और संप्रदायों के साधु जुड़े होते हैं। शैव संप्रदाय के 7 अखाड़े, वैष्णव और उदासीन संप्रदायों के 3-3 अखाड़े होते हैं। इन अखाड़ों का महाकुंभ और अर्धकुंभ के आयोजनों में विशेष स्थान होता है। पहले इन अखाड़ों को "बेड़ा" कहा जाता था, लेकिन मुग़ल काल से यह शब्द "अखाड़ा" के रूप में प्रचलित हो गया, जो आज भी धार्मिक और शारीरिक प्रशिक्षण का प्रतीक है।
शैव संप्रदाय के अंतर्गत कुल सात अखाड़े होते हैं, जिनमें भगवान शिव की पूजा करने वाले साधु शामिल होते हैं। वैष्णव संप्रदाय में तीन प्रमुख अखाड़े होते हैं, जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं। वहीं, उदासीन संप्रदाय में भी तीन अखाड़े होते हैं, जिनके अनुयायी 'ॐ' का जाप और पूजा करते हैं। इन अखाड़ों में विभिन्न प्रकार की परंपराएं और आस्थाएं देखने को मिलती हैं, जो भारतीय धार्मिक विविधता को प्रदर्शित करती हैं।
13 प्रमुख अखाड़े कौन से हैं और कहां स्थित हैं
शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े:
1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी – दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
2. श्री पंच अटल अखाड़ा – चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी – दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती – त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा – बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा – दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा – गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)
बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े:
8. श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा – शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)
9. श्री निर्वानी आनी अखाड़ा – हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
10. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा – धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)
उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े:
11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा – कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
12. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन – कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)
13. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा – कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)
नियमों और परंपराओं के आधार पर होते हैं अलग
अखाड़ों में विभिन्न परंपराओं और नियमों के आधार पर अंतर पाया जाता है। हर अखाड़े में दीक्षा देने का तरीका भी अलग होता है। कुछ अखाड़ों में महिला साध्वियों को भी दीक्षा दी जाती है, जबकि कुछ में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते हैं। इसके अलावा, कुछ अखाड़ों में 8 से 12 साल के बच्चों को दीक्षा दी जाती है, जबकि कुछ अखाड़े कुश्ती पर ज्यादा जोर देते हैं। हाल ही में, किन्नर अखाड़े की मान्यता को लेकर भी काफी विवाद उठ चुका है।
सबसे बड़ा अखाड़ा कौन-सा है?
महाकुंभ में शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा है। इसकी स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में हुई थी। इस अखाड़े के इष्ट देव शिव और रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं और इसका मुख्यालय वाराणसी में स्थित है। जूना अखाड़ा विशेष रूप से नागा साधुओं के लिए जाना जाता है, जहां लगभग 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं। इसके आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज हैं और अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरी हैं।
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सबसे भव्य होती है इसकी पेशवाई
जूना अखाड़े की पेशवाई बेहद भव्य होती है, जो महाराजाओं की शान और वैभव को दर्शाती है। इसमें स्वर्ण रथ और अन्य भव्य वस्तुएं शामिल होती हैं। इसके अलावा, पेशवाई में हाथी भी शामिल होता है, जो इस अखाड़े की विशिष्टता को और बढ़ाता है। यह अखाड़ा अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है और महाकुंभ में इसकी प्रमुख भूमिका रहती है।
अखाड़ा परिषद की जरूरत क्यों पड़ी?
अखाड़ा परिषद की स्थापना कुंभ मेले जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में साधु-संतों के बीच होने वाली विवादों को रोकने के लिए की गई थी। परिषद में कुल 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े होते हैं, जिनका संचालन लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए अध्यक्ष और सचिव करते हैं। अखाड़ा परिषद की सभा में सर्वसम्मति से अध्यक्ष का चुनाव होता है। महंत नरेंद्र गिरी दो बार अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे थे।
अखाड़ों की खास बातें
अखाड़ों की परंपराएं और उनके नियम विभिन्न होते हैं, और हर अखाड़े की अपनी विशेषताएं हैं। जैसे -
- अटल अखाड़ा : इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति के लोग ही दीक्षा ले सकते हैं, अन्य कोई भी इस अखाड़े में शामिल नहीं हो सकता।
- आवाहन अखाड़ा : इस अखाड़े में महिला साध्वियों को दीक्षा देने की कोई परंपरा नहीं है, जबकि अन्य अखाड़ों में ऐसा किया जाता है।
- निरंजनी अखाड़ा : यह अखाड़ा सबसे शिक्षित अखाड़ा माना जाता है, यहां लगभग 50 महामंडलेश्वर मौजूद हैं।
- अग्नि अखाड़ा : इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते हैं, अन्य कोई दीक्षा नहीं ले सकता।
- महानिर्वाणी अखाड़ा: इस अखाड़े के पास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा की जिम्मेदारी है, जो वर्षों से चली आ रही परंपरा है।
- आनंद अखाड़ा : यह शैव अखाड़ा है, जिसमें आज तक कोई महामंडलेश्वर नहीं बना है और इस अखाड़े के आचार्य का पद सर्वोच्च होता है।
- दिंगबर अणि अखाड़ा : इसे वैष्णव संप्रदाय में "राजा" कहा जाता है और यहां सबसे ज्यादा खालसा सदस्य होते हैं, जिनकी संख्या 431 है।
- निर्मोही अणि अखाड़ा : इस अखाड़े में तीनों अणि अखाड़ों में से सबसे अधिक अखाड़े शामिल हैं, कुल संख्या 9 है।
- निर्वाणी अणि अखाड़ा : इस अखाड़े में कुश्ती का प्रमुख स्थान है, और इसके कई साधु पेशेवर पहलवान रह चुके हैं।
- बड़ा उदासीन अखाड़ा : इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य सेवा करना है, और इसमें केवल 4 महंत होते हैं जो कभी भी अपने कार्यों से निवृत्त नहीं होते।
- नया उदासीन अखाड़ा: इस अखाड़े में 8 से 12 साल के बच्चों को नागा बनाया जाता है, जिनकी दाढ़ी-मूंछ नहीं निकली होती।
- निर्मल अखाड़ा : इस अखाड़े में धूम्रपान की इजाजत नहीं है, और इसके सभी केंद्रों के गेट पर इस बारे में सूचना दी जाती है।
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