आज के वक़्त में नेता किसी राज्य या जिले का ख़्याल करता है वहीं प्राचीन काल में बादशाह या राजा की हुकूमत चलती थी। 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण के बाद से इलाहाबाद मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग (महान किला) निर्माण करवाया था।
इतिहास के पन्नों में दर्ज है इलाहाबाद : लंबे वक्त तक मुगलों की राजधानी रहा 'प्रयागराज', अकबर ने बनवाया था किला
Dec 21, 2023 12:38
Dec 21, 2023 12:38
- लंबे वक़्त तक मुगलों की प्रांतीय राजधानी रहा 'प्रयागराज'
- अक्षयवट को श्रीराम ने दिया था अक्षय रहने का वरदान
अलाउद्दीन ख़िलज़ी
अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने इलाहाबाद में कड़ा के निकट अपने चाचा व ससुर जलालुद्दीन ख़िलज़ी की धोख़े से हत्या कर अपने साम्राज्य की स्थापना की थी। मुग़ल काल में भी इलाहाबाद अपनी ऐतिहासिकता को बनाए रखने में कामयाब रहा।
प्रयागराज किला
सन 1538 ई.में अकबर ने संगम तट पर किले का निर्माण कराया। ऐसी भी मान्यता है कि यह किला मौर्य सम्राट अशोक द्वारा निर्मित था और अकबर ने इसका जीर्णोद्धार मात्र करवाया। पुनः 1838 में अंग्रेज़ों ने इस किले का पुनर्निर्माण करवाया और वर्तमान रूप दिया। इस किले में भारतीय और ईरानी वास्तुकला का मेल आज भी कहीं-कहीं दिखाई देता है। इस किले में 232 ई.पू.का अशोक का स्तम्भ, जोधाबाई महल, पातालपुरी मंदिर, सरस्वती कूप और अक्षय वट अवस्थित हैं। कहा जाता है कि वनवास के दौरान भगवान राम इस वट-वृक्ष के नीचे ठहरे थे और उन्होंने उसे अक्षय रहने का वरदान दिया था, इसीलिए इसका नाम अक्षयवट पड़ा। किले-प्रांगण में अवस्थित सरस्वती कूप में सरस्वती नदी के जल का दर्शन किया जा सकता है।
खुसरो बाग़
मुग़ल काल की याद आज भी कोई चीज़ ताज़ा करती है तो वो हैं उस वक़्त के बाग़। मुग़लकालीन शोभा बिखेरता ‘खुसरो बाग़’ बादशाह जाहांगीर के बड़े पुत्र खुसरो द्वारा बनवाया गया था। यहां बाग़ में खुसरो, उसकी मां और बहन सुल्तान-उन-निसा की क़ब्रें हैं। ये मक़बरे काव्य और कला के सुन्दर नमूने हैं। फ़ारसी भाषा में जीवन की नश्वरता पर जो कविता यहां अंकित है, वह मन को अंदर तक स्पर्श करती है।
मौर्यकालीन इतिहास
मौर्य काल में पाटलिपुत्र, उज्जयिनी और तक्षशिला के साथ कौशाम्बी व प्रयाग भी चोटी के नगरों में थे। प्रयाग में मौर्य शासक अशोक के 6 स्तम्भ लेख प्राप्त हुए हैं। संगम-तट पर किले में अवस्थित 10.6 मीटर ऊंचा अशोक स्तम्भ 232 ई० पू० का है, जिस पर तीन शासकों के लेख खुदे हुए हैं। कालान्तर में 1605 ई में इस स्तम्भ पर मुग़ल सम्राट जहांगीर के तख़्त पर बैठने का वाकया भी ख़ुदवाया गया। 1800 ई० में किले की प्राचीर सीधी बनाने हेतु इस स्तम्भ को गिरा दिया गया और 1838 में अंग्रेज़ों ने इसे पुनः खड़ा किया।
गुप्तकालीन इतिहास
'प्रयाग'गुप्त काल के शासकों की राजधानी रहा है। 200 ई० में समुद्रगुप्त इसे कौशाम्बी से प्रयाग लाया और उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित ‘प्रयाग-प्रशस्ति’ स्तम्भ ख़ुदवाया गया। इलाहाबाद में प्राप्त 448 ई. के एक गुप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि पांचवी सदी में भारत में दाशमिक पद्धति ज्ञात थी। इसी प्रकार इलाहाबाद के करछना नगर के समीप अवस्थित गढ़वा से एक-एक चन्द्रगुप्त व स्कन्दगुप्त का और दो अभिलेख कुमारगुप्त के प्राप्त हुए हैं, जो उस काल में प्रयाग की महत्ता दर्शाते हैं। भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट माने जाने वाले हर्षवर्धन के वक़्त में भी प्रयाग की महत्ता अपने चरम पर थी।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लिखा कि “इस काल में पाटलिपुत्र और वैशाली पतनावस्था में थे, इसके विपरीत दोआब में प्रयाग और कन्नौज अपनी चरम अवस्था में थे। ह्वेनसांग ने हर्ष द्वारा महायान बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ कन्नौज और तत्पश्चात् प्रयाग में आयोजित महामोक्ष परिषद का भी उल्लेख किया है। इस सम्मेलन में हर्ष अपने शरीर के वस्त्रों को छोड़कर सर्वस्व दान कर देता था। स्पष्ट है कि प्रयाग बौद्धों हेतु भी उतना ही महत्त्वपूर्ण रहा है, जितना कि हिन्दुओं हेतु। कुम्भ मेले में संगम में स्नान का प्रथम ऐतिहासिक अभिलेख भी हर्ष के ही काल का है।
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