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जानें प्रयागराज को : किसी ने कहा 'पांच प्रयागों का राजा' तो कोई बोला ‘अल्लाह का शहर’

किसी ने कहा 'पांच प्रयागों का राजा' तो कोई बोला ‘अल्लाह का शहर’
UP Times | History of Prayagraj

Dec 20, 2023 17:57

हर जगह के नाम को लेकर अलग अलग कहानियां होती हैं। कुछ ऐसा ही प्रयागराज के साथ भी है, जिसको कई नामों से पुकारा गया। फिर लोगों के मन में ये सवाल ज़रूर आता है कि प्रयाग नाम कैसे पड़ा। दरअसल हिन्दू मान्यता है कि सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद सबसे प्रथम यज्ञ यहां किया था।

Dec 20, 2023 17:57

Short Highlights
  • पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने प्रयागराज में किया था सबसे बड़ा यज्ञ
  • किसी ने 'पांच प्रयागों का राजा'तो किसी ने प्रयागराज को कहा ‘अल्लाह का शहर’
Prayagraj News : हर जगह के नाम को लेकर अलग अलग कहानियां होती हैं। कुछ ऐसा ही प्रयागराज के साथ भी है, जिसको कई नामों से पुकारा गया। फिर लोगों के मन में ये सवाल ज़रूर आता है कि प्रयाग नाम कैसे पड़ा। दरअसल हिन्दू मान्यता है कि सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद सबसे प्रथम यज्ञ यहां किया था। इसी प्रथम यज्ञ के ‘प्र’और ‘याग’ अर्थात यज्ञ की सन्धि द्वारा प्रयाग नाम बना। ऋग्वेद और कुछ पुराणों में भी इस स्थान का उल्लेख ‘प्रयाग’ के रूप में किया गया है। हिंदी भाषा में प्रयाग का शाब्दिक अर्थ 'नदियों का संगम' भी है। बता दें कि यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्सर 'पांच प्रयागों का राजा' कहलाने के कारण इस नगर को प्रयागराज भी कहा जाता रहा है।
 

जानें क्या है प्रयाग का अर्थ


‘प्र’ का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा ‘याग’ का अर्थ होता है यज्ञ। ‘प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः’ इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’ पड़ा। दूसरा वह स्थान जहां बहुत से यज्ञ हुए हों। दूसरी मान्यताओं के मुताबिक हिंदी भाषा में प्रयाग का शाब्दिक अर्थ। 'नदियों का संगम' भी है, यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्सर 'पांच प्रयागों का राजा' कहलाने के कारण भी इस नगर को प्रयागराज कहा जाता रहा है।
 

अध्यात्म नगरी है प्रयाग


प्रयागराज (इलाहाबाद) प्राचीन काल से ही अध्यात्म की नगरी के तौर पर देखा जाता रहा है। आज भी लोगों के मन में इसके लिए अपार श्रद्धा का भाव साफ तौर पर दिखाई देता है।
 

ब्रह्मा ने किया था यज्ञ


पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे। तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप के बोझ को हल्का करने के लिए एक ‘वृक्ष’ उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। यह आज भी विद्यमान है।
 

आज भी अमर है अक्षयवट


इस वृक्ष को नष्ट करने के औरंगजेब ने बहुत प्रयास किए। इसे खुदवाया, जलवाया, इसकी जड़ों में तेज़ाब तक डलवाया। किन्तु वर प्राप्त यह अक्षयवट आज भी विराजमान है। आज भी इस पर औरंगजेब के द्वारा जलाने के चिन्ह देखे जा सकते हैं। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसकी विचित्रता से प्रभावित होकर अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है।
 

ह्वेन त्सांग ने अपनी यात्रा विवरण में किया इस शहर का ज़िक्र 


वर्तमान में झूंसी क्षेत्र जो कि संगम के बहुत करीब है, पहले यहां चंद्रवंशी (चंद्र के वंशज) राजा पुरुरव का राज्य था। 643 ई.पू.में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने देखा कि हिंदू इस जगह को अति पवित्र मानते थे। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षवर्धन के राज में 644 सीई में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपनी यात्रा विवरण में पो-लो-ये-किया नाम के शहर का ज़िक्र किया है, जिसे इलाहाबाद माना जाता है। उन्होंने दो नदियों के संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य (राजा हर्ष) द्वारा कराए एक स्नान का ज़िक्र किया है, जिसे प्रयाग के कुंभ मेले का सबसे पुराना और ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है। हालांकि इसे लेकर कुछ साफ तरीके से नहीं कहा गया है क्योंकि उन्होंने जिस स्नान का ज़िक्र किया है वह हर 5 साल में एक बार होता था,जबकि कुंभ हर 12 साल में एक बार होता है।
 

प्रयागराज कैसे बन गया इलाहाबाद


पहले इस देवभूमि का प्राचीन नाम 'प्रयाग' या 'प्रयागराज' ही था, इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। सन् 1500 की शताब्दी में मुस्लिम शासक अकबर ने इसका नाम 1583 में बदलकर ‘अल्लाह का शहर’ रख दिया। मुगल बादशाह अकबर के राज इतिहासकार और अकबरनामा के रचयिता अबुल फजल बिन मुबारक ने लिखा है कि 1583 में अकबर ने प्रयाग में एक बड़ा शहर बसाया और संगम की अहमियत को समझते हुए इसे ‘अल्लाह का शहर’, इल्लाहावास नाम दे दिया।
 

इल्लाहावास से बना अलाहाबाद (इलाहाबाद) 


जब भारत पर अंग्रेज़ राज करने लगे तो रोमन लिपी में इसे ‘अलाहाबाद’ लिखा जाने लगा, जो बाद में बिगड़कर इलाहाबाद हो गया। परन्तु इस संबंध में एक मान्यता और भी है कि ‘इला’ नामक एक धार्मिक सम्राट (जिसकी राजधानी प्रतिष्ठानपुर थी) के वास के कारण इस जगह का नाम ‘इलावास’ पड़ा, जो अब झूंसी  है। कालान्तर में अंग्रेज़ों ने इसका उच्चारण इलाहाबाद कर दिया।

1800 के शुरुआती दिनों में ब्रिटिश कलाकार तथा लेखक जेम्स फोर्ब्स ने दावा किया था कि अक्षय वट के पेड़ को नष्ट करने में विफल रहने के बाद इसका नाम बदलकर ‘इलाहाबाद’ या 'भगवान का निवास' कर दिया गया था। हालाकिं यह नाम उससे पहले का है, क्योंकि इलाहबास और इलाहाबाद दोनों ही नामों का उल्लेख अकबर के शासनकाल से ही शहर में अंकित सिक्कों पर होता रहा है, जिनमें से बाद वाला नाम सम्राट की मृत्यु के बाद प्रमुख हो गया। यह भी माना जाता है कि इलाहाबाद नाम अल्लाह के नाम पर नहीं, बल्कि इल्हा (देवताओं) के नाम पर रखा गया है। शालिग्राम श्रीवास्तव ने प्रयाग प्रदीप में दावा किया कि नाम अकबर द्वारा जानबूझकर हिंदू (“इलाहा”) और मुस्लिम (“अल्लाह”) शब्दों के एकसमान होने के कारण दिया गया था।

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