भारत की स्वतंत्रता संग्राम के कई अज्ञात नायकों में एक नाम सुर साम्राज्ञी विद्याधरी बाई का भी शामिल है, जिनकी कहानी आज भी कम ही लोग जानते हैं। चंदौली जिले के जसुरी गांव की रहने वाली विद्याधरी बाई ने न केवल अपनी गायकी से लोगों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपने अनूठे तरीके से योगदान भी दिया।
बनारस के कोठे पर गाया था देशभक्ति का पहला मुजरा : काशी नरेश के दरबार की गायिका विद्याधरी बाई, जो क्रांतिकारियों को देती थीं पैसे
Aug 15, 2024 21:03
Aug 15, 2024 21:03
- काशी के कोठे पर गाया था मुजरा
- महात्मा गांधी से हुई थीं प्रभावित
- प्रकृति प्रेमी थीं विद्याधरी बाई
काशी के कोठे पर गाया था मुजरा
विद्याधरी बाई का सबसे बड़ा योगदान उनके देशभक्ति मुजरे में था, जो उन्होंने काशी के एक कोठे पर गाया था। यह मुजरा भारत का पहला देशभक्ति मुजरा था, जिसमें उन्होंने अपनी गायकी के माध्यम से क्रांतिकारियों का समर्थन किया। उनके मुजरे के शुरू और खत्म होने पर वंदेमातरम की गूंज सुनाई देती थी। उनकी गायकी की पूरी कमाई चुपके से स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाती थी, जो उनके अदम्य देशभक्ति और बलिदान की प्रतीक है।
महात्मा गांधी से हुई थीं प्रभावित
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बनारस के तवायफों के बीच एक सभा की थी, जिसमें हुस्ना बाई ने एक प्रभावशाली भाषण दिया। इस सभा का पूरा खर्च विद्याधरी बाई ने उठाया था। गांधी जी ने तवायफों से कहा था कि वे संगीत में देशभक्ति का भाव बनाए रखें, और विद्याधरी बाई ने इस सुझाव को मानते हुए पहला देशभक्ति मुजरा लिखा और गाया। यह मुजरा स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जाता है, हालांकि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी अन्य किताबों में इसका जिक्र नहीं मिलता है।
प्रकृति प्रेमी थीं विद्याधरी बाई
विद्याधरी बाई का जसुरी गांव में एक तीन मंजिला भवन था, जिसमें बेल्जियम के झूमर लगे हुए थे। इस भवन में उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों को शरण दी और अंग्रेजों की जांच से उन्हें बचाया। उनकी धार्मिक और प्रकृति प्रेमी प्रवृत्ति के कारण, उन्होंने अपने घर के पीछे एक बड़ा बगीचा भी बनवाया था, जिसमें आम, लीची समेत कई फल लगे हुए थे। बगीचे की सिंचाई के लिए बनाया गया कुआं आज भी मौजूद है और बगीचे में संगीत के प्रेमियों के लिए कमरे भी बने हुए थे।
जर्जर हो चुका है पुराना मकान
हालांकि विद्याधरी बाई का योगदान उनके जीवन के बाद तक किसी को याद नहीं रहा, उनके गांव की नई पीढ़ी उनसे अनभिज्ञ है। उनका पुराना मकान जर्जर हो चुका है और उनकी पहचान के तौर पर घर के कोने में पड़ी उनकी तस्वीर भी दीमक खा रही है। उनके निधन के बाद, उनके भाई भगवती प्रसाद की मृत्यु और उनकी एकमात्र पुत्री वीणा देवी और उनके पति सर्वनाथ राय के घर पर रहने के बावजूद, विद्याधरी बाई का वास्तविक योगदान आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। 10 मई 1971 को वाराणसी के मिश्र पोखरा स्थित मुक्ति भवन में उन्होंने अंतिम सांसें लीं, और वे हमेशा के लिए अमर हो गईं।
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