न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में न्याय की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि जब तक किसी मामले में ठोस सबूत और स्पष्ट आरोप...
सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को दिखाया आईना : दहेज उत्पीड़न कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी जरूरी, बेंगलुरु के अतुल सुभाष सुसाइड के बीच चर्चा में...
Dec 11, 2024 23:58
Dec 11, 2024 23:58
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिना सबूत परिवार को न घसीटें
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में न्याय की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि जब तक किसी मामले में ठोस सबूत और स्पष्ट आरोप प्रस्तुत नहीं किए जाते, तब तक पति के परिवार के सदस्यों को ऐसे विवादों में शामिल करने से बचना चाहिए।पीठ ने स्पष्ट किया कि सामान्य और अस्पष्ट आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति या परिवार के खिलाफ आपराधिक मामला चलाना न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने कहा, "केवल सतही आरोपों को अपराध का आधार बनाकर अभियोजन चलाने से न केवल आरोपी व्यक्ति, बल्कि उनके परिवार पर भी अनावश्यक दबाव पड़ता है।"
झूठे मामलों को बढ़ावा न मिले
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वैवाहिक विवादों के दौरान लगाए गए अस्पष्ट आरोपों की ठीक से जांच होनी चाहिए। अन्यथा, यह न केवल निर्दोष लोगों को परेशान करेगा, बल्कि कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग भी होगा। पीठ ने कहा, "हम यह नहीं कह रहे हैं कि वास्तविक पीड़ित महिलाओं को चुप रहना चाहिए। उन्हें अपनी आवाज उठानी चाहिए। लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि झूठे मामलों को बढ़ावा न मिले।"
न्यायपालिका का संतुलन बनाए रखने पर जोर
अदालत ने यह भी कहा कि न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल शिकायतकर्ता को राहत देना नहीं, बल्कि दोनों पक्षों को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर प्रदान करना है। उन्होंने यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया कि झूठे मामलों से बचने के लिए मजबूत सबूत और ठोस आरोपों की आवश्यकता हो।
तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज करते हुए की, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला दुर्भावना और व्यक्तिगत प्रतिशोध का परिणाम था, जिसमें कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ।
कानून का उद्देश्य और वास्तविकता
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि आईपीसी की धारा 498ए को महिलाओं को उनके ससुराल में क्रूरता और दहेज की अवैध मांग से बचाने के उद्देश्य से लागू किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में, वैवाहिक विवादों और तनाव के बढ़ने के साथ, इस कानून के दुरुपयोग की घटनाएं भी बढ़ी हैं। पीठ ने कहा, "महिलाओं द्वारा पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध साधने के लिए इस कानून का गलत इस्तेमाल किया जाता है।"
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