भारत में कई तरह की मिठाइयां मिलती हैं लेकिन इस बीच भी इमरती की एक खास जगह है। इमरती के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यूपी के जौनपुर से इमरती की शुरुआत हुई और यह आज यह पूरे देश में पसंद की जाती है। इसे जीआई टैग दिलाने की कोशिश चल रही है।
कभी खाई है जौनपुर की इमरती : अंग्रेजों के समय से है जलवा, जीआई टैग मिल जाए तो घर बैठे मिलेगा स्वाद
Dec 20, 2023 18:13
Dec 20, 2023 18:13
इमरती की खोज
जौनपुर की लजीज इमरती का इतिहास अंग्रेज़ों के जमाने से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिशों के समय बेनीराम देवी प्रसाद नाम का एक डाकिया था। एक दिन अंग्रेज़ अफ़सर ने बेनीराम को कुछ अलग तरीके का खाना बनाने का आदेश दिया तो बेनीराम ने खाने के साथ इमरती भी बनाई। जिसे खा कर अंग्रेज़ अफ़सर उसके कायल हो गए। इस मिठाई को खाने के बाद अफसर ने बेनीराम को नौकरी छोड़ने को कहा, तो ऐसे में बेनीराम डर गया और उसने अफसर से माफी मांगा। इसके बाद अधिकारी ने कहा कि उनके पास एक बेहतरीन कला है और उसे अपनी कला का प्रयोग करना चाहिए। अंग्रेज़ अफ़सर ने कहा कि तुम्हारे हाथ में जादू है, आज तक मैंने ऐसी मिठाई कभी नहीं खाई। इसके बाद बेनीराम ने डाक विभाग से एक साल की छुट्टी लेकर 1855 में इमरती का काम शुरू किया। आज उसकी दुकान पर दूर-दूर से लोग इमरती खाने आते हैं।
इमरती की खासियत
जौनपुर में देशी घी से बनाई जाने वाली इमरती इतनी सॉफ्ट होती है कि लोग बिना दांत के भी इसका जायका ले सकते हैं। इसको बनाने के लिए उड़द की दाल के साथ इसमें देशी चीनी का ही इस्तेमाल होता है। इसको लकड़ी की धीमी आंच पर पकाया जाता है। इसमें सबसें खास बात है कि इमरती को कई दिनों तक स्टोर किया जा सकता हैं। इमरती बनाने के लिए इसके सभी कामों को हाथ से ही किया जाता हैं।
राजनेता भी हुए दिवाने
इमरती के दिवाने हर जगह मौजूद है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जौनपुर की इमरती बेहद पसंद थी। अटल जी के लिए प्राय: यहां से इमरती जाती थीं। इसके अलावा यूपी के पूर्व सीएम की पत्नी और समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद डिंपल यादव को भी इनरती ने इस कदर अपना दीवाना बनाया है कि वह इन इमरतियों को खासा जौनपुर से मंगवाती भी हैं।
कहा से आई इमरती
इमरती अरब से आई जलेबी का ही एक तरह का देशी वर्जन है। इसमें सबसे ज्यादा खास बात यह है यह दोनों ही डिजाइनदार तरीके से बनाई जाती है, लेकिन इन दोनों के रंग में बहुत अंतर है। बता दे इमरती हल्के ब्राउन रंग की होती है, पर कई जगह इसके रंगों में अंतर भी होता है।
आज भी दाल पिसाई के लिए करते सिल बट्टे का प्रयोग
इस इमरती को बनाने के लिए एक बुजुर्ग महिला कलावती देवी ने सिल बट्टे पर दाल पीसते अपनी पूरी उम्र गुजार दी है। इस महिला का कहना है कि सिल बट्टे पर पिसी दाल की वजह से इमरती के स्वाद में चार चांद लगता है। देशी चीनी और देशी घी में बनने के कारण इमरती गर्म या ठण्डी दोनो परिस्थितियों में मुलायम एवं स्वादिष्ट होती है। इसमें सबसे बड़ी खासियत है कि इसे बिना फ्रीज में रखे दस दिन तक खाया जा सकता है।
जलेबी और इमरती में अंतर
जलेबी और इमरती में देखने में तो कुछ खास अंतर नहीं हैं, लेकिन इनमें एक बहुत बड़ा अंतर है। इन दोनों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि जलेबी को मैदे से बनाया जाता है और इमरती को उड़द की दाल से बनाया जाता है। इमरती, जलेबी से थोड़ा ज्यादा ड्राई होती है।
जल्द ही घर बैठे मिलेगी इमरती
जौनपुर की मशहूर इमरती को बहुत जल्द जीआई टैग मिलने वाला है। इसको टैगिंग करने के लिए सभी प्रकार के जरूरी दस्तावेज भेज दिए गए हैं। इसके बाद यह इमरती बहुत जल्द फ्लिपकार्ट और अमेजॉन के जरिए लोगों को मिल सकेगी। इसको लेकर सभी कार्य पूरे कर लिए गए हैं। जौनपुर में उद्योग उपायुक्त हर्ष प्रताप सिंह ने बताया की जीआई टैग मिलने से यहां के लोगों के व्यापार में बढ़ोत्तरी आएगी। जिससे कि सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होगी और इस जिलें के कारीगरों को एक अलग पहचान मिल सकेगी।
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