आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने भारतीय तकनीकी ग्रेजुएट्स को वैश्विक मंच पर छाने का सुनहरा अवसर प्रदान किया है। गूगल जैसे दिग्गज कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं, और अंग्रेजी जानने वाले STEM ग्रेजुएट्स हर साल भारत से सबसे अधिक निकलते हैं। अब गुणवत्ता सुधारने की आवश्यकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : भारतीय तकनीकी ग्रेजुएट्स के लिए वैश्विक मंच पर बड़ा अवसर, भारत में हो रहा बड़े पैमाने पर निवेश
Jan 19, 2025 14:27
Jan 19, 2025 14:27
भारतीय शिक्षा तंत्र और उसकी समस्याएं
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, और तकनीकी नवाचारों के बावजूद भारतीय इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा संस्थाएं बदलते समय के साथ उत्पन्न हो रही चुनौतियों का सामना करने में संघर्ष कर रही हैं। भारतीय सरकार आज भी शिक्षा क्षेत्र में जीडीपी का तीन प्रतिशत से कम खर्च करती है, जबकि 1966 के कोठारी कमीशन ने 6 प्रतिशत खर्च की सिफारिश की थी। इसका परिणाम यह है कि भारतीय शिक्षा तंत्र, विशेष रूप से तकनीकी और मेडिकल शिक्षा, कमजोर और लचर बन गया है। इसके विपरीत, चीन ने अपने विकास की यात्रा में अपार प्रगति की है, और यह तुलना अक्सर भारतीय राजनीति और प्रशासन के कमजोर पहलुओं को उजागर करती है।
चीन और भारत : लोकतंत्र बनाम तानाशाही
चीन ने 1947 में भारत से काफी पहले खुद को सुधारने का रास्ता चुना था, और इसके बाद माओ जैसे कड़े नेतृत्व ने देश को दिशा दी। वहीं, भारत लोकतंत्र के नाम पर भ्रष्टाचार, वोट बैंक पॉलिटिक्स और अराजकता से घिरा रहा। यह असंतुलन न केवल विकास में रुकावट डालता है, बल्कि देश के भीतर आय असंतुलन और सामाजिक असमानता को भी बढ़ावा देता है। चीन के बड़े औद्योगिक और तकनीकी प्रोजेक्ट्स ने उसे वैश्विक मंच पर प्रमुख स्थान दिलाया, जबकि भारत ने गांधीवादी दृष्टिकोण के तहत छोटे उद्योगों पर अधिक ध्यान दिया। इसने बड़ी प्रगति की राह में अवरोध उत्पन्न किया।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य और सुधार की दिशा
कुछ लोग यह मानते हैं कि 2014 के बाद भारत में एक निर्णायक मोड़ आया है और पिछले दशक में सुधारात्मक कदमों ने विकास की गति को बढ़ाया है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक भारतीय कार्यबल की गुणवत्ता में वैश्विक मानकों के अनुरूप सुधार नहीं होता, तब तक इस प्रगति को स्थायी संतुष्टि प्रदान करना मुश्किल होगा। वर्तमान में, भारत की इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा की स्थिति यह दर्शाती है कि लाखों इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स जॉब्स के लिए संघर्ष करते हैं, या फिर वे स्पेशलाइज्ड नौकरियों के लिए नाकाबिल पाए जाते हैं।
प्रशिक्षण और नवाचार के अभाव में गिरावट
अक्सर यह देखा गया है कि भारतीय उद्योगों में पर्याप्त प्रशिक्षण की कमी होती है। यहां व्यावहारिक अनुप्रयोग और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित नहीं किया जाता। इसके परिणामस्वरूप, प्राइवेट टेक्निकल इंस्टीट्यूशन्स, जो पिछले कुछ वर्षों में कुकुरमुत्तों की तरह उभरे हैं, छात्रों को आवश्यक कौशल और वातावरण प्रदान करने में असफल रहे हैं। इन संस्थानों से निकलने वाला कार्यबल उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है, और वे अंततः बहुराष्ट्रीय कंपनियों में "साइबर कुली" के रूप में कार्य करने के लिए विवश होते हैं।
नवाचार और शोध में कमी
भारत की अधिकांश कंपनियां रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए बजट आवंटित करने में कंजूसी करती हैं, जिससे नवाचार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। एक उद्यमी का कहना है, "लागत में कटौती और आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भरता से भारतीय विकास को बाधा मिलती है। पेटेंट्स की संख्या भी सीमित है, और नए उत्पादों की कमी है।" भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, जबकि स्वदेशी विकास कमजोर है।
शिक्षा और उद्योग के बीच संवाद की कमी
भारत में इंजीनियरिंग और आईटी शिक्षा के बीच संवाद की कमी है, जिससे उद्योग-प्रासंगिक समाधान और नवाचार में बाधा उत्पन्न होती है। सरकार अब नई इंटर्नशिप नीति के माध्यम से इस गैप को भरने की कोशिश कर रही है, लेकिन फिर भी यह समझने की आवश्यकता है कि नवाचार पर लागत का प्रभाव और उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को कैसे बढ़ाया जाए।
सुधार की दिशा: शिक्षा और उद्योग का एकजुट होना
भारत की शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से उद्योग से जोड़ने की आवश्यकता है। छात्रों को हाथों-हाथ प्रशिक्षण और वैश्विक मानकों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। राज्य सरकारों को भी इस दिशा में प्रणालीगत सुधार की तत्काल आवश्यकता है। इंजीनियरिंग शिक्षा में सुधार, अनुसंधान एवं विकास में निवेश, और उद्योग-अकादमिक साझेदारी को मजबूत करना भारतीय इंजीनियरों की क्षमता को उभारने और भारत को वैश्विक नवाचार में नेता बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं।
भारत की क्षमता का सशक्तिकरण
भारत में तकनीकी शिक्षा और नवाचार के क्षेत्र में सुधार की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन अभी भी गुणवत्ता में सुधार और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता है। अगर भारत अपने कार्यबल की गुणवत्ता में सुधार करता है, अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाता है, और शिक्षा व उद्योग के बीच बेहतर संवाद स्थापित करता है, तो भारत निश्चित रूप से नवाचार में वैश्विक नेता बन सकता है।
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