करहल उपचुनाव की राजनीति में जब नया मोड़ आ गया जब भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के दामाद अनुजेश यादव को अपना प्रत्याशी घोषित किया...
यूपी उपचुनाव : लालू-मुलायम के दामाद आमने-सामने, सियासी रणभूमि में फूफा-भतीजे की टक्कर
Oct 24, 2024 16:56
Oct 24, 2024 16:56
फूफा-भतीजे होंगे आमने-सामने
भाजपा के इस कदम से करहल के चुनाव में नया मोड़ आ गया है। अनुजेश यादव मुलायम सिंह यादव की भतीजी संध्या यादव के पति हैं। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं उनके भतीजे तेज प्रताप यादव मुलायम सिंह के पौत्र और सपा के मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे हैं। सैफई परिवार के इन दो सदस्यों के आमने-सामने आने से मुकाबला और भी रोचक हो गया है।
अनुजेश यादव का राजनीतिक सफर
अनुजेश यादव सिर्फ मुलायम सिंह यादव के रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि खुद एक सशक्त राजनीतिक चेहरा हैं। उनकी पत्नी संध्या यादव मैनपुरी की जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं और अनुजेश खुद भी फिरोजाबाद से जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारकर करहल सीट पर अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया है।
सैफई परिवार में बंटी राजनीतिक वफादारी
यह चुनाव सैफई परिवार के भीतर राजनीति और रिश्तों की जटिलता को भी उजागर कर रहा है। मुलायम सिंह के परिवार का एक हिस्सा सपा के साथ मजबूती से खड़ा है, जबकि भाजपा ने परिवार के अन्य सदस्यों को अपनी ओर खींचकर एक नई रणनीति बनाई है। इस चुनावी मुकाबले ने सैफई परिवार की वफादारियों को भी विभाजित कर दिया है, जहां एक ओर तेज प्रताप यादव सपा की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं अनुजेश भाजपा के बैनर तले खड़े हैं।
भाजपा की रणनीति
भाजपा का अनुजेश यादव को टिकट देने का फैसला कई राजनीतिक संकेत देता है। पार्टी ने सैफई परिवार के ही एक सदस्य को उतारकर यह सुनिश्चित किया है कि यादव वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके। अनुजेश की स्थानीय पहचान और उनके पारिवारिक संबंध भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं, क्योंकि करहल सपा का गढ़ माना जाता है।
तेज प्रताप यादव का मजबूत दावा
दूसरी ओर तेज प्रताप यादव करहल से अपनी जीत को लगभग सुनिश्चित मानकर चल रहे हैं। वह पहले भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं और यादव समुदाय में उनकी पकड़ मजबूत है। अखिलेश यादव और सपा का समर्थन उन्हें चुनाव में और भी ताकतवर बनाता है। हालांकि अनुजेश यादव की मौजूदगी से मुकाबला अब और भी कड़ा हो गया है। इस बार का करहल उपचुनाव पारंपरिक राजनीति से अलग है, क्योंकि यहां मुकाबला सियासी रणनीतियों और पारिवारिक रिश्तों का संगम है। अब देखना होगा कि फूफा-भतीजे की इस जंग में किसका पलड़ा भारी रहता है।
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