आज हम स्वतंत्र रूप से आजादी की ज़िंदगी जी रहे हैं। भारत को आजादी दिलाने के लिए हजारों लोगों ने कुर्बानियां दीं। देश को आजादी के मुहाने पर लाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक बड़ी भूमिका रही। इसी जंग-ए-आजादी के...
आगरा के स्मारक में जिंदा इतिहास : जहां कभी महात्मा गांधी देश की आजादी के लिए करते थे मीटिंग, जानें आज किस हाल में है...
Oct 02, 2024 17:11
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वैष्णव जन तो तेने कहिए…
बताया जाता है कि 1929 में गांधी जी स्वास्थ्य लाभ के लिए आगरा में 11 दिन रुके थे। 1929 में आगरा आए गांधी जी ने इस बगीची को ही अपने 11 दिनों के स्वास्थ लाभ लिए चुना था। इस परिसर में बने चबूतरे पर बैठकर बापू ने 'वैष्णव जन तो तेने कहिए…’ गुनगुनाते तो उनके साथ बैठे लोग 'पीर पराई जाने रे…' गाना दोहराते। वर्ष 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद इस बगीची को दान कर दिया गया और इसे नया नाम गांधी स्मारक के रूप में मिला। साल 2015-16 में आगरा विकास प्राधिकरण ने यहां जीर्णोद्धार कराया था। बारिश में यहां बने भवन के छज्जे टूट गए हैं। क्षेत्रीय लोगों को भी गांधी स्मारक के महत्व के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।
रखरखाव न होने से हो रही जर्जर
कल-कल बहती कालिंदी के बगल में बने गांधी आश्रम का यह जर्जर भवन साफ रूप से दर्शा रहा है कि यहां पर आगरा प्रशासन, नगर निगम और विकास प्राधिकरण ने उदासीनता दिखाई है। जिस भवन में कभी गांधी जी स्वास्थ्य लाभ के लिए रुके थे, उस महत्वपूर्ण स्थल को प्रशासन ने गुमनामी के अंधेरों में यूं ही छोड़ दिया है। जर्जर हो गई इमारत के छज्जे टूट चुके हैं। गांधी स्मारक में लगे पत्थर पर अंकित विवरण के अनुसार, गांधी जी ने स्वास्थ्य लाभ के लिए वर्ष 1929 में 11 से 21 सितंबर तक 11 दिन ब्रजमोहन दास मेहरा की बगीची में प्रवास किया था। उनके साथ कस्तूरबा गांधी, आचार्य कृपलानी, मीरा बहन और जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती यहां रहीं थीं। उनसे मिलने बड़ी संख्या में लोग यहां आते थे। गांधी जी की हत्या के बाद वर्ष 1948 में ब्रजमोहन दास मेहरा ने अपने पिता रामकृष्ण दास मेहरा की स्मृति में बगीची को महात्मा गांधी स्मारक ट्रस्ट को दान कर दिया था। यहां के साथ चबूतरा सही कराया गया। रंगाई-पुताई कराई गई थी। जिन कमरों में गांधी जी रुके थे, वहां संग्रहालय बना दिया गया है। गांधी स्मारक का गेट बंद रहता है और यहां यदाकदा ही लोग पहुंचते हैं। उन्हें जानकारी देने वाला भी कोई नहीं मिलता। समय की मार के साथ-साथ यह भवन भी अब जर्जर होता जा रहा है। बारिश के कारण ऊपरी मंजिल के छज्जे भी गिर गए हैं, कई पत्थर भी टूट गए हैं। अधिकांश यह भवन अब बंद रहता है।
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सुध नहीं लेता प्रशासन
हर साल 2 अक्टूबर के आसपास इस भवन की साफ सफाई की जाती है। उसके बाद फिर इसे धूल फांकने के लिए छोड़ दिया जाता है। यहां पर मौजूद जगदीश यादव ने बताया कि आगरा विकास प्राधिकरण और नगर निगम की उदासीनता के चलते इस भवन के हालात बेहद भयावह हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस भवन की दुर्दशा को सुधारने के लिए कई बार सरकार और प्रशासन के अधिकारियों को पत्र भेजे हैं, लेकिन गांधी आश्रम के भवन के हालात जस के तस बने हुए हैं। उन्होंने बताया कि मुझे बहुत पीड़ा है कि देश को आजादी दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस आश्रय स्थल की अधिकारियों और सरकारों ने अभी तक सुध नहीं ली है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस व्यक्ति ने देश को आजादी दिलाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, उनके इस आश्रय स्थल की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। जगदीश यादव में बताया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि गांधी जी के आश्रम जो उनका चश्मा था वह टूट गया है और न जाने कहां चला गया है, कोई नहीं जानता। उनके चश्मे की तरह ही यहां से कई अन्य वस्तुएं भी गायब हो चुकी हैं। यहां पर गांधी जी के तीन बंदर, गांधीजी के द्वारा उपयोग में लिया जाने वाला चरखा और उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली घड़ी अब भी इस गांधी आश्रम की शोभा बढ़ा रही है।
आगरा में राष्ट्रपिता कब और कहां आए...
- 1929 : यमुना किनारे 11 दिन स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रवास किया।
- 1938 : दूसरी बार शहर में आए।
- 1915 : दक्षिण अफ्रीका से लौटकर वृंदावन के प्रेम महाविद्यालय पहुंचे।
- 1919 : पलवल से गिरफ्तार कर मथुरा लाया गया।
- 1921 : दिल्ली कांग्रेस के प्रांतीय अधिवेशन में।
- 1927 : दोबारा प्रेम महाविद्यालय पहुंचे।
- 1929 : खादी प्रचार यात्रा पर दो दिन के लिए आए।
- 1929 : रामलीला मैदान में सभा को संबोधित किया।
- 1929 : क्रिश्चियन कालेज मैदान में सभा की।
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