मत्स्य मंत्री संजय निषाद बोले : तालाबों को मनरेगा से कराये मरम्मत, अलीगढ़ को बनायेंगे फिश फार्मिंग का हब

 तालाबों को मनरेगा से कराये मरम्मत, अलीगढ़ को बनायेंगे फिश फार्मिंग का हब
UPT | मत्स्य मंत्री संजय निषाद ने की समीक्षा बैठक

Oct 03, 2024 15:11

अलीगढ़ में मत्स्य विभाग के मंत्री संजय निषाद गुरुवार को कलेक्ट्रेट में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा करने पहुंचे

Oct 03, 2024 15:11

Short Highlights
  • अलीगढ़ को फिश फार्मिंग का हब बनायेंगे
  • मछुआरा कल्याण कोष से मिलेगी मदद
  • मछुआरों के बच्चों के लिए डिजीटल लाइब्रेरी खुलवाई जा रही 
Aligarh news : अलीगढ़ में मत्स्य विभाग के मंत्री संजय निषाद गुरुवार को कलेक्ट्रेट में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा करने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने मछुआरों के हितों में चलने वाली योजनाओं की चर्चा की। उन्होंने कहा की योजनाएं धरातल पर पहुंचे, इसी की समीक्षा करने आयें हैं। 

अलीगढ़ को फिश फार्मिंग का हब बनायेंगे

मत्स्य विभाग के मंत्री संजय निषाद ने बताया कि जब मैं मंत्री नहीं था, तब प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना बनाई थी, जिसमें लाभार्थी के लिए कैटेगरी बनाई गई थी। जिसमें सब्सिडी भी दी गई थी। जिसके तहत परंपरागत मत्स्य पालकों को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था। वहीं अब मत्स्य पालकों के लिए तालाब मनरेगा से विकसित कराया जा रहा है। अलीगढ़ एनसीआर के करीब है, इसलिए इसको फिश फार्मिंग में हब बनाना है। यहां संभावनाएं अधिक है, इसलिए यहां कम समय में कम जगह में हाईटेक तरीके से लोग मछली पालना कर सकते हैं। 

मछुआरा कल्याण कोष से मिलेगी मदद

मत्स्य पालकों के लिए फ्री का बीमा भी है। जिसमें बीमा धारक का 5 लाख का बीमा है, ढाई लाख विकलांग होने पर है। वहीं, अस्पताल में भर्ती होने पर 25 हजार रुपये मिलेंगे। इनके इलाज की भी फ्री व्यवस्था की गई है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश पहला प्रदेश है, जहां मछुआरा कल्याण कोष की स्थापना की है । वहीं, मछुआरों के बच्चों की शिक्षा की भी व्यवस्था की गई है। इंटर में पढ़ने पर 10 हजार रुपये  ग्रेजुएट है, तो ग्रेजुएट करने पर  बीस हजार रुपये और पोस्ट ग्रेजुएट व टेक्निकल शिक्षा लेना है तो  50 हजार की सहायता सरकार दे रही हैं।


मछुआरों के बच्चों के लिए डिजीटल लाइब्रेरी खुलवाई जा रही 

उन्होंने बताया कि पहले था कि जिसके पास खेत, पानी, पोखरा होगा। वह मछली पालन करेगा, लेकिन अब हाईटेक व्यवस्था दी गई है। पहले की सरकारों में मछुआरों के बच्चे को पढाने की व्यवस्था नहीं थी। जो मछली मार रहे हैं। वह मछुआरा कहलाता था और इसके चलते मछुआरा समाज का हक मारा जाता था। अब केवट, मल्लाह, मांझी, साहनी, कोली, निषाद आदि जातियां आती है। उनके बच्चे अगर स्कूल जाते हैं और उनकी आय 2 लाख से कम है, तो उनकी आर्थिक मदद की जाती है। उनके यहां डिजिटल लाइब्रेरी भी खुलवा रहे हैं, जिससे समाज के बच्चे पढ़ेंगे और आगे बढ़ेंगे।

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