उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की धरती प्रख्यात कवि काका हाथरसी के नाम से भी पहचानी जाती है। हास्य कवि काका हाथरसी की आज जयंती और अवसान दिवस भी है। हास्य और व्यंग्य के कवि काका हाथरसी उर्फ प्रभु लाल का...
Hathras News : ऊंट गाड़ी पर निकली हास्य कवि काका की सवारी, श्मशान घाट में लगे ठहाके...
Sep 18, 2024 14:32
Sep 18, 2024 14:32
मुझको आदत है मुस्कुराने की
काका हाथरसी उर्फ प्रभु लाल घर का जन्म हाथरस शहर की जैन गली में 18 सितंबर 1906 को शिवलाल घर हुआ था, जन्म के कुछ समय बाद ही उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद उनकी मां उन्हें अपने मायके अलीगढ़ जिले के इगलास ले गईं। काका का बचपन अपनी मां के यहां बेहद गरीबी में बीता। बचपन में काका ने चाट पकौड़ी तक बेची।
ऐसे हुए काका हाथरसी
काका ने अपनी पहली कविता एक वकील साहब को सुनाई थी। इसके बाद काका 16 वर्ष की आयु में वापस हाथरस आ गए। यहां आकर एक आढ़त पर मुंशी के रूप में काम करने लगे। काका को बचपन से ही नाटकों में अभिनय करने का शौक था। प्रभु लाल ने एक नाटक में काका का किरदार निभाया, तभी से प्रभु लाल काका हाथरसी हो गए। इस दौरान काका की शादी रतन देवी से हो गई और काका की रचनाओं में रतन देवी काकी कहलाने लगीं।
वर्ष 1985 में मिला था पद्मश्री
काका ने अपनी कलम से अंग्रेजों के विरुद्ध भी कविताएं लिखीं, इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। काका हाथरसी का नाम हिंदी के कवि सम्मेलन में पहचाने जाने लगा। वर्ष 1957 में काका ने दिल्ली के लाल किले पर आयोजित एक समारोह में काव्य पाठ किया तो उनका नाम विख्यात हो गया। वर्ष 1985 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। काका हाथरसी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के साथ भी मंच साझा किया।
जय बोलो बेईमान की
काका ने बहुत सी कविताएं लिखीं और पढ़ीं, जो आज भी बड़े मंचों पर पढ़ी जाती है। काका की एक कविता बहुत प्रसिद्ध हुई, कहा खाते हैं कि मन मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है, भीतर से भ्रष्टाचार। झूठों के घर पंडित बांचें, कथा सत्य भगवान की, जय बोलो बेईमान की। साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी बताते हैं कि काका ने सरल और सहज भाषा में कविताएं लिखी और पढ़ीं। हिंदी हास्य साहित्य को एक अलग पहचान दिलाई। आज उनकी स्मृतियों को संजोकर रखने की जरूरत है।
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