UP News : यूपी में 150 सहायक लेखा परीक्षकों की प्रोन्नति रद्द, नियुक्तियों में गड़बड़ी पर सख्त कार्रवाई

UPT | CM Yogi Adityanath

Jan 21, 2025 08:56

निदेशक पद्म जंग ने 31 दिसंबर को ही इन खाली पदों पर प्रोन्नति की प्रक्रिया पूरी कर दी। इतना ही नहीं, 16 जनवरी तक इन अधिकारियों को नई तैनाती भी दे दी गई। नियमतः यह प्रक्रिया नियमावली तैयार होने और कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद ही होनी चाहिए थी।

Lucknow News : प्रदेश सरकार ने सरकारी नियुक्तियों और प्रमोशन में गड़बड़ी के मामले में बड़ा कदम उठाया है। शासन ने सहकारी समितियां एवं पंचायत लेखा परीक्षा विभाग के करीब 150 सहायक लेखा परीक्षा अधिकारियों (एएओ) की हाल ही में की गई प्रोन्नति और तैनाती को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। इन्हें लेकर कई सवाल उठ रहे थे। बताया जा रहा है कि अब पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ये निर्णय किया गया है।

31 दिसंबर को हुआ पदों का पुनर्गठन
सरकार ने 31 दिसंबर 2024 को उत्तर प्रदेश अधीनस्थ (सहकारी समितियां एवं पंचायत) लेखा परीक्षा सेवा संवर्ग का पुनर्गठन किया था। इसके तहत सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी (एएओ) के 255 पदों को बढ़ाकर 405 कर दिया गया। इससे विभाग में 150 नए पद खाली हो गए।



आनन-फानन में हुई प्रोन्नति और तैनाती
निदेशक पद्म जंग ने 31 दिसंबर को ही इन खाली पदों पर प्रोन्नति की प्रक्रिया पूरी कर दी। इतना ही नहीं, 16 जनवरी तक इन अधिकारियों को नई तैनाती भी दे दी गई। नियमतः यह प्रक्रिया नियमावली तैयार होने और कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद ही होनी चाहिए थी। लेकिन, प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किए बगैर प्रोन्नति दिया जाना सवालों के घेरे में आ गया।

इस तरह मिला प्रन्नत अफसरों को लाभ
सूत्रों के मुताबिक, इस प्रोन्नति और तैनाती को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसे विशेष मकसद से अंजाम दिया गया। इस जल्दबाजी का लाभ प्रोन्नत अधिकारियों को मिलने वाले वेतन और अन्य भत्तों के रूप में हुआ। जुलाई में इन अधिकारियों को एक अतिरिक्त इंक्रीमेंट भी मिलने वाला था।

शासन ने मांगी पूरी रिपोर्ट
जब सरकार को इस गड़बड़ी की जानकारी मिली, तो अधिकारियों से जवाब-तलब किया गया। विशेष सचिव वित्त, समीर ने आदेश जारी कर सभी प्रोन्नतियां और तैनातियां रद्द कर दीं। साथ ही, सरकार ने प्रोन्नति और तैनाती से जुड़ी मूल पत्रावली और अन्य अभिलेख तुरंत शासन को भेजने के निर्देश दिए। शासन स्तर पर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि नियुक्तियों और प्रोन्नति की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे। इस मामले में निदेशालय के अधिकारियों पर आरोप हैं कि उन्होंने निजी लाभ के लिए जल्दबाजी में यह फैसला किया। 

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