बसपा का राष्ट्रीय दर्जा छिनने का खतरा : गठबंधन पर मायावती की बार-बार सफाई, मजबूरी या सियासी दांव? जानें चुनावों में बसपा का प्रदर्शन...

गठबंधन पर मायावती की बार-बार सफाई, मजबूरी या सियासी दांव? जानें चुनावों में बसपा का प्रदर्शन...
Uttar Pradesh Times | गठबंधन पर मायावती की बार-बार सफाई, मजबूरी या सियासी दांव?

Jan 17, 2024 16:24

मायावती कई बार इंडिया और एनडीए गठबंधन में जाने से इंकार कर चुकी हैं। यह बात उन्होंने सोमवार को एक बार फिर 68वें जन्मदिन के मौके पर कही। मगर उनके बार-बार इंडिया और एनडीए से अलग होने के बयानों को लेकर तमाम तरह के सवाल उठने लगे हैं।

Jan 17, 2024 16:24

Short Highlights
  • इंडिया के गठबंधन से मायावती का इंकार
  • एनडीए से भी दूरी बरकरार रखेगी बसपा
  • लोकसभा चुनाव में खराब हो रहा है पार्टी का प्रदर्शन
Bareilly (साजिद रजा खां) : लोकसभा चुनाव 2024 करीब आ चुका है। राजनीतिक दल सियासी रण जीतने की कोशिश में जुटे हैं। जिसके चलते विपक्षी दलों ने I.N.D.I.A (इंडिया) बनाया है। इसमें करीब 28 दल हैं, तो वहीं केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा के N.D.A (एनडीए) में करीब 38 दल हैं। मगर हर किसी की निगाह बसपा प्रमुख मायावती पर लगी है। हालांकि, मायावती कई बार इंडिया और एनडीए गठबंधन में जाने से इंकार कर चुकी हैं। यह बात उन्होंने सोमवार को एक बार फिर 68वें जन्मदिन के मौके पर कही। मगर उनके बार- बार इंडिया और एनडीए से अलग होने के बयानों को लेकर तमाम तरह के सवाल उठने लगे हैं। बरेली में बसपा से जुड़े एक नेता ने दबी जुंबा से बताया कि बहन जी और उनके भाई के खिलाफ जांच चल रही हैं। उनको जांच एजेंसियों की कार्रवाई का खौफ है। इसीलिए बार-बार गठबंधन न करने को लेकर सफाई देनी पड़ रही है। बसपा प्रमुख मायावती पुरानी सियासी नेता हैं और उनका वोट भी ठोस है। इसलिए यह उनका सियासी फैसला होगा। मायावती इंडिया के साथ मिलकर चुनाव लड़ती हैं, तो बसपा और इंडिया दोनों को फायदा होगा. लेकिन उनके अलग लड़ने से इंडिया से अधिक बसपा को नुकसान होगा। मगर बसपा के अलग लड़ने से भाजपा को बड़ा फायदा होगा। हालांकि, चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि अंतिम समय में मायावती इंडिया के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ेंगी। बसपा प्रमुख ने जन्मदिवस पर  जनकल्याण और जनहित के मुद्दों पर भाजपा, सपा और कांग्रेस पर तमाम आरोप लगाए थे।

राष्ट्रीय दल का दर्जा बचाना चुनौती
इंडिया में शामिल दलों के नेताओं से लेकर एनडीए तक की निगाह बसपा की तरफ लगी है। क्योंकि यूपी में दलित (एससी) वोट करीब 22 फीसदी है। यह वोट बसपा सुप्रीमो मायावती का कोर वोट माना जाता था। हालांकि, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा को करीब 12.88 फीसदी वोट मिला, जिसके चलते वर्ष 2007 चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का सिर्फ एक विधायक जीत पाया। बसपा का वोट फीसद लगातार कम हो रहा है। यह वोट भाजपा के साथ ही सपा में शिफ्ट होने लगा है। मगर लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस भी दलित वोट साधने में जुटी है। इसकी जिम्मेदारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे संभाल रहे हैं। इस लोकसभा में बसपा अकेले लड़ती है, तो 5 से 7 फीसद वोट लेने की उम्मीद जताई जा रही है। मगर बाकी 5 से 7 फीसद एससी वोट भाजपा में शामिल हो सकता है। इससे इंडिया का खेल बिगड़ने का खतरा है। हालांकि, अकेले चुनाव लड़ने से बसपा को सबसे बड़ा नुकसान है। बसपा का राष्ट्रीय दल का दर्जा खतरे में है। बसपा का वोट प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है। पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 1993 के बाद सबसे कम मत (वोट) मिले। यह घटकर सिर्फ 12.88 फीसद रह गए। इससे पार्टी काफी खराब दौर में पहुंच गई है। यूपी में 22 फीसदी दलित हैं, लेकिन पार्टी को 12.88 फीसदी वोट मिलना यह संकेत दे रहा है कि पार्टी का अपना बेस वोट भी दूर होने लगा है।

2007 के बाद से गिरने लगा जनाधार
यूपी में बसपा ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। मगर इसके बाद 2022 चुनाव में सिर्फ एक ही विधायक बना। पार्टी को दिल्ली एमसीडी चुनाव में एक फीसद से भी कम वोट मिले थे। बीएसपी का ग्राफ 2012 यूपी विधानसभा चुनाव से गिर रहा है। 2017 में बीएसपी 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई। हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत में इजाफा नहीं हुआ लेकिन एसपी के साथ गठबंधन का फायदा मिला और 10 लोकसभा सीटें पार्टी ने जीती थीं। ऐसे में बीएसपी की आगे की राजनीतिक राह काफी मुश्किल है। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाने के साथ ही पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए उसका इंडिया गठबंधन में रहना मजबूरी होगी। इसके साथ ही विधानमंडल से लेकर संसद तक में प्रतिनिधित्व का संकट खड़ा हो जाएगा।

एससी को साधने में जुटी बसपा 
कांग्रेस यूपी में बसपा को साथ लाने की कोशिश में लगी है। इसके लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी है। बताया जाता है कि बसपा दिसंबर के बाद इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाएगी। मगर बसपा के शामिल नहीं होने पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे को यूपी में दलित चेहरे के रूप में उतारा जाएगा। उनको यूपी की सुरक्षित सीट बाराबंकी, मोहनलालगंज, अंबेडकर नगर, नगीना या इटावा से चुनाव लड़ाने की संभावनाओं को तलाशा जाने लगा है।

यह है राष्ट्रीय दल बरकरार रखने का नियम
राष्ट्रीय दल के नियम के मुताबिक चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन आदेश, 1968) में कहा गया है कि एक राजनीतिक दल को एक राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी जा सकती है, यदि पार्टी कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा की 2 प्रतिशत सीटें जीतती है, लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम चार या अधिक राज्यों में हुए मतदान का कम से कम 6 फीसदी वोट हासिल करती है। इसके अलावा कम से कम चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करती है, तो पार्टी को चार प्रदेशों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता मिलती है। चुनाव आयोग ने आखिरी बार 2016 में नियमों में संशोधन किया था, ताकि 5 के बजाय हर 10 साल में राष्ट्रीय और राज्य पार्टी की स्थिति की समीक्षा की जा सके.

लोकसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन
कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बसपा की स्थापना की थी। बसपा को 11वीं लोकसभा में 6 सीट यानी 20.6 फीसद वोट मिला था। 1998 लोकसभा चुनाव में 4 सदस्य और 20.9 फीसद वोट, 13वीं लोकसभा (1999-2004) में 14 सदस्य और 22.08 फीसद वोट,  14वीं लोकसभा (2004- 2009) में 17 सदस्य और 24.09 फीसद वोट, 15वीं लोक सभा में 21 सदस्य और 27.42 फीसद थे। लेकिन 16वीं लोकसभा (2014- 2019) में पार्टी का एक भी सांसद नहीं था, मगर 19.77 फीसद वोट थे। वहीं 17 वीं लोकसभा में सपा गठबंधन का फायदा मिला। अब लोकसभा में बसपा के 10 सांसद हैं और 19.43 फीसद वोट मिला है।

पांच राज्यों के चुनाव में बसपा को मिली 2 सीट
पिछले वर्ष 3 दिसंबर 2023 को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आया था। इसमें बसपा का वोट काफी कम हुआ है। राजस्थान विधानसभा चुनाव में बसपा को 1.82 प्रतिशत यानी 721037 वोट मिले। उनके 2 विधायक जीते हैं, जबकि पिछली बार 2018 में 4.03 फीसद वोट और 6 विधायक जीते थे। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में 2.09 फीसद वोट मिले. लेकिन एक भी विधायक नहीं जीता, जबकि पिछले चुनाव 2018 में 3.87 फीसद वोट के साथ 2 विधायक जीते थे। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में 3.32 फीसद वोट मिले, कोई विधायक नहीं जीता, जबकि 2018 विधानसभा चुनाव में 5.01 फीसद वोट, और 2 विधायक जीते थे। तेलंगाना में 1.38 फीसद वोट मिले, कोई विधायक नहीं बना, 2018 में भी कोई विधायक नहीं था, मगर 2014 में 2 विधायक जीते थे।

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