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शाहजहांपुर में हैट्रिक लगाने की तैयारी में भाजपा : बसपा नहीं खोल पाई कभी इस सीट पर खाता, सपा की चुनौती ज्यादा बड़ी

बसपा नहीं खोल पाई कभी इस सीट पर खाता, सपा की चुनौती ज्यादा बड़ी
UPT | शाहजहांपुर में हैट्रिक लगाने की तैयारी में भाजपा

May 07, 2024 15:00

शाहजहांपुर में इस बार का मुकाबला काफी टक्कर का होने वाला है। यहां भाजपा हैट्रिक लगाने के जज्बे के साथ मैदान में उतरेगी, वहीं समाजवादी पार्टी अपनी खोई सीट वापस पाने की कोशिश करेगी।

May 07, 2024 15:00

Short Highlights
  • हैट्रिक पर भाजपा का फोकस
  • सपा वापस लेना चाहेगी सीट
  • कांग्रेस की स्थिति सबसे बुरी
Shahjahanpur News : लोकसभा चुनाव के चौथे चरण का मतदान 13 मई को होना है। इस चरण में उत्तर प्रदेश की 13 सीटें शामिल हैं। इसमें शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच शामिल है। शाहजहांपुर में इस बार का मुकाबला  काफी टक्कर का होने वाला है। यहां भाजपा हैट्रिक लगाने के जज्बे के साथ मैदान में उतरेगी, वहीं समाजवादी पार्टी अपनी खोई सीट वापस पाने की कोशिश करेगी। शाहजहांपुर लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें आती हैं, जिसमें कटरा, जलालाबाद, तिलहर, पौवायां, शाहजहांपुर और ददरौल शामिल हैं। इस सभी पर भाजपा का कब्जा है। आज बात शाहजहांपुर के सियासी समीकरण की...

बसपा नहीं खोल पाई अपना खाता
शाहजहांपुर की लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर अब तक इस सीट पर 15 चुनाव हो चुके हैं, लेकिन बसपा यहां से कभी भी जीत नहीं दर्ज कर पाई है। हालांकि पार्टी यहां पर हर बार अपने प्रतिद्वंदियों को कड़ी टक्कर देती रही है। 2009 में बसपा की सुनीता सिंह यहां से चुनाव लड़ी थीं और 1.86 लाख वोट पाकर दूसरे नंबर पर रही थीं। जबकि भाजपा के कृष्णा राज 1.68 लाख वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में सपा प्रत्याशी मात्र 70 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर पाए थे। 2014 में चली लहर के बावजूद बसपा के उमेद सिंह कश्यप ने यहां 2.89 लाख वोट हासिल किए थे। हालांकि वह दूसरे नंबर पर रहे थे। 2019 में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। तब शाहजहांपुर की सीट बसपा के खाते में आई थी और अमर चंद्र जौहर ने पर्चा भरा था। अमर चंद्र को तब 4.20 लाख वोट भले मिल गए हों, लेकिन वह भाजपा के अरुण सागर से 2.68 वोटों के अंतर से हार गए।

हैट्रिक पर भाजपा का फोकस
भारतीय जनता पार्टी ने शाहजहांपुर में पहली बार 1989 में जीत दर्ज की थी। तब सत्यपाल सिंह यादव यहां से जीतकर संसद पहुंचे थे। सत्यपाल सिंह ने यही कारनामा 1991 और 1998 में भी दोहराया। इसके बाद शाहजहांपुर की सीट पहले कांग्रेस और फिर समाजवादी पार्टी के पास रही। 2014 में जब मोदी लहर चली, तो नतीजे फिर से भाजपा के पक्ष में गए। पिछले दस साल से यह सीट पार्टी के कब्जे में है। 2014 में कृष्णा राज और 2019 में अरुण कुमार सागर ने यहां से जीत दर्ज की। अब 2024 में भाजपा हैट्रिक लगाने का मंसूबा लेकर मैदान में उतरेगी। शाहजहांपुर की सभी 6 विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में है। वहीं अगर पिछले दो चुनावों में जीत का अंतर देखें, तो भाजपा लगातार ढाई लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर रही है, जबकि 2019 में सपा और बसपा का गठबंधन भी था।

सपा को वापस मिलेगी सीट?
समाजवादी पार्टी ने शाहजहांपुर की सीट पर 1996 में जीत दर्ज की थी। तब सपा के टिकट पर राममूर्ति सिंह यहां से जीतकर संसद पहुंचे थे। इसके करीब 13 साल बाद सपा ने दोबारा यह सीट जीती। शाहजहांपुर की सीट पर समाजवादी पार्टी के लिए चुनौती ज्यादा बड़ी इसलिए है, क्योंकि यहां सीट सपा के लिए कभी बड़े अंतर की गवाह नहीं बन पाई। 1996 में जब सपा ने पहली बार शाहजहांपुर से जीत दर्ज थी, तब वोटों का अंतर मात्र 6 हजार था। 2009 में दूसरी बार जीत दर्ज करने पर वोटों का अंतर बढ़ा जरूर, लेकिन इसमें कोई अप्रत्याशित वृद्धि नहीं दिखी। 2009 में सपा उम्मीदवार मिथिलेश कुमार की जीत का अंतर मात्र 70 हजार वोट था। ऐसे में शाहजहांपुर की सीट सपा को मिलना इतना भी आसान नहीं होने वाला है।

कांग्रेस की स्थिति सबसे बुरी
शाहजहांपुर की लोकसभा सीट पर पहला चुनाव कांग्रेस ने ही जीता था। कांग्रेस के प्रेम कृष्णा खन्ना तब लगातार 10 साल और फिर 1971 में पार्टी के जितेंद्र प्रसाद 5 साल के लिए तक सांसद रहे। इसके बाद 1977 में भले ही जनता पार्टी ने सीट पर कब्जा कर लिया हो, लेकिन ठीक 3 साल बाद हुए चुनाव में जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के टिकट पर न सिर्फ जीते, बल्कि 10 साल तक सांसद भी रहे। 1999 और 2004 में भी कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की। लेकिन इन सबके बावजूद कांग्रेस यहां लगातार हाशिए पर खिसकती जा रही है। 2009 में कांग्रेस ने उमेद सिंह कश्यप को प्रत्याशी बनाया था, मगर वह मात्र 1 लाख वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे। 2014 में उमेद सिंह बसपा के प्रत्याशी बन गए और कांग्रेस ने चेतराम को टिकट दिया। चेतराम को केवल 27 हजार वोट मिले और कांग्रेस फिर से चौथे स्थान पर रही। 2019 में कांग्रेस ने ब्रह्म स्वरूप सागर को प्रत्याशी बनाया, जिन्हें केवल 35 हजार मत मिले। हालांकि कांग्रेस की स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ और वह तीसरे स्थान पर आ गई। आंकड़े बताते हैं कि शाहजहांपुर में कांग्रेस लगातार हाशिए पर खिसकती जा रही है।

2024 में किसका पलड़ा भारी?
शाहजहांपुर में 22 लाख मतदाताओं में से 80 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुस्लिम हैं। हिंदुओं में मौर्य, कुशवाहा, कश्यप और सैनी जातियों का अधिक वर्चस्व है। कहते हैं कि इस सीट का मुस्लिम वोटर अक्सर अंतिम वक्त में हवा का रुख देखर वोटिंग करता है। कई बार मुस्लिम वोट निर्णायक भी साबित होते हैं। 2024 में भाजपा ने अरुण कुमार सागर पर फिर से भरोसा जताया है। वह दूसरी बार पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने दोदराम वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस इस बार गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। यह सीट सपा के हिस्से में गई है। सपा ने पहले राजेश कश्यप को टिकट दिया था, लेकिन उनका पर्चा खारिज होने के बाद ज्योतसना गोंड यहां से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी बनी हैं। 2008 में परिसीमन होने के बाद से इसे सुरक्षित सीट बना दिया गया था। आंकड़े गवाही देते हैं कि भाजपा के लिए इस सीट पर जीतना कोई बड़ी चुनौती नहीं है। क्योंकि 2019 में बसपा-सपा के गठबंधन के बावजूद भाजपा ने 2.68 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में सपा के साथ गठबंधन के बावजूद प्रत्याशी को जीत मिलने में संदेह है। हालांकि राजनीति में किसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 4 जून को आने वाले नतीजे सारी हकीकत बयां कर देंगे।

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