डॉ. साहिल ने बताया कि कोरोना संक्रमण के साथ ही वर्ष 2021-22 में मंकीपॉक्स के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई। भारत समेत 100 से अधिक देशों में संक्रमण के मामले सामने आए।
मंकीपॉक्स के जीन में बदलाव से संक्रमण दर बढ़ी पर मौतें घटीं : वैज्ञानिकों ने सुलझायी मंकीपॉक्स के संक्रमण में तेजी आने की गुत्थी
Jun 15, 2024 02:17
Jun 15, 2024 02:17
वायरस के 1718 जीनोम सिक्वेंसिंग का अध्ययन
डॉ. साहिल ने बताया कि मेटा एनालिसिस में अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित 51 रिसर्च को शामिल किया गया। इसमें देश में मंकीपॉक्स वायरस के जीनोम सिक्वेंसिंग पर हुई रिसर्च को शामिल किया गया। इनमें वायरस के 1718 जीनोम सिक्वेंसिंग मिले, जिसमें 404 जीनोम सिक्वेंसिंग ही मानक के मुताबिक पाए गए। इन 404 वायरस के जीनोम सिक्वेंसिंग को ही रिसर्च में अंतिम रूप से शामिल किया गया। इनमें भारत में संक्रमित चार मरीजों से मिले वायरस का जीनोम सिक्वेंसिंग भी शामिल है।
जीन ओपीजी 153 में मिला बदलाव
उन्होंने बताया कि मंकीपॉक्स वायरस के जीन ओपीजी 153 में माइक्रो सेटेलाइट की संख्या में बदलाव मिला है। खास बात यह है कि वर्ष 1970 में कहर बरपाने वाले मंकीपॉक्स वायरस और कोरोना काल में संक्रमण फैलान वाले वायरस के स्ट्रेन में काफी अंतर मिला है। कोरोना काल के वायरस में माइक्रो सेटेलाइट की संख्या में काफी गिरावट मिली है। इस कमी के कारण ही मारक क्षमता कम हो गई है। हालांकि, संक्रमण की दर बढ़ गई है।
1970 में अफ्रीका में मिला था वायरस मंकीपॉक्स का इंसानों में संक्रमण पहली बार 1970 में पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में मिला। यह डबल स्टैंडर्ड डीएनए वायरस है। संक्रमित जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। इसके लक्षण चेचक से मिलते-जुलते होते हैं। बुखार, सिरदर्द, ठंड लगना, शारीरिक कमजोरी और लिम्फनोड की सूजन शामिल हैं। प्रारंभिक लक्षणों के बाद, मरीजों को त्वचा पर दाने और घाव दिखाई देने लगते हैं। आमतौर पर यह दाने चेहरे, हाथों और पैरों पर होते हैं।
समय से पता चलेगा संक्रमण, बनेगी सस्ती जांच किट
डॉ. जितेंद्र नारायण ने बताया कि इस रिसर्च के कई फायदे हैं। भविष्य में संक्रमण फैलने पर त्वरित पहचान होगी। वायरस संक्रमण का सर्विलांस हो सकेगा। वायरस में कुछ माइक्रो सेटेलाइट ऐसे मिले, जिनमें बदलाव नहीं हुआ है। इसके आधार पर रियल टाइम पीसीआर की जांच किट तैयार की जा सकेगी। अभी बाजार में मौजूद किट बेहद महंगी है। इस रिसर्च से सस्ती किट तैयार हो सकेगी। यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल वायरस एवोल्यूशन में इसी साल मई में प्रकाशित हुआ है।
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