उगते हुए सूर्य को तो सभी प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पहला ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए (अस्ताचलगामी) सूर्य की भी आराधना की जाती है। इतना ही नहीं उगते सूर्य की आराधना की बारी डूबते सूर्य के बाद आती है। यही इस पर्व की खूबी है।
Chhath Puja 2024 : आस्था के महापर्व छठ को लेकर गोरखपुर के बाजारों में रौनक, जानें महत्व और तिथियां
Nov 04, 2024 11:34
Nov 04, 2024 11:34
बाजारों में खरीदारी करने पहुंच रहे लोग
शहर के गोलघर, असुरन चौक, राप्तीनगर, घंटाघर, मोहद्दीपुर व धर्मशाला बाजार में छठ पूजा के लिए फलों व सब्जी की खरीदारी के लिए सुबह से लोग पहुंचने लगे हैं। फलों का मोल भाव करने के साथ ही दीया, कोसी, ढकनी की खरीदारी कर रहे हैं। बाजार में कुछ छोटे दुकानदार आसपास के गांव से ताजा हरी हल्दी, अदरक व पानी फल (सिंघाड़ा) लेकर आए हैं।
बिहार से आया गोरखपुर में छाया छठ महापर्व
बिहार से शुरू हुए महापर्व छठ की छटा देश की सीमाओं को पार कर आज विदेश तक जा पहुंची है। बिहार से सटे गोरखपुर में तो मानो यह पर्व यहीं का लगने लगा है। चार दशक पहले तक गोरखपुर के घाटों व तालों पर पचास-साठ परिवारों की भीड़ अब हजारों परिवार में तब्दील हो चुकी है। साल-दर-साल व्रती महिलाओं व व्रत से जुड़ने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। आस्था व परंपरा के इस लोक उत्सव में नई पीढ़ी के जुड़ने से अब फैशन भी इसमें अपनी जगह बना रहा है, लेकिन आस्था के दायरे में रहकर। फैशन और आस्था के बीच समन्वय तब देखने को मिलता है, जब व्रती महिलाएं महंगे वस्त्र व आभूषण के साथ पूजा-अर्चना के लिए पानी में उतरने से गुरेज नहीं करतीं। सामाजिक संगठनों की सक्रियता ने छठ पर्व की सामूहिकता को बढ़ा दिया और यह और सुंदर हो गया है। घाटों की साफ- सफाई से लेकर जगह-जगह नि शुल्क जलपान की व्यवस्था में स्वयंसेवी युवाओं की टोली बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं।
उगते व अस्त होते सूर्य दोनों की होती है आराधना
उगते हुए सूर्य को तो सभी प्रणाम करते हैं, लेकिन छठ पहला ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते हुए (अस्ताचलगामी) सूर्य की भी आराधना की जाती है। इतना ही नहीं उगते सूर्य की आराधना की बारी डूबते सूर्य के बाद आती है। यही इस पर्व की खूबी है। दरअसल, छठ पर्व आज के दौर की आवश्यकता बन गया है। यह एकाकी परिवारों के नाते-रिश्तेदारों और परिचितों से मेल-मिलाप का अवसर देता है। गोरखपुर में राप्ती नदी, सूरजकुंड धाम, गोरखनाथ मंदिर के ताल, सुमेर सागर पोखरा, राजघाट, रामगढ़ताल के अलावा अपार्टमेंट, बहुमंजिली इमारतों की छतों पर छठ का नजारा देखने लायक होता है। मुहल्लों में भी अस्थायी पोखरे खुदवाकर जब इस पर्व को उत्साहपूर्वक मनाते हैं तो अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति-धर्म की दीवारें टूट जाती हैं। अर्घ्य अनुष्ठान का हिस्सा हर कोई बिना किसी भेदभाव के बनता है। छठ एक पारंपरिक व्रत है। इसमें सास अपनी बहू को डाला छठ की खास पूजन डलिया देती है। इस व्रत को आगे बढ़ाने में महिलाओं का ही योगदान प्रमुख है। परंपरा से जुड़ा होने के कारण तमाम व्यस्तताओं के बीच महिलाएं व्रत के लिए समय निकाल ही लेती हैं। यह पर्व शुद्धता, धैर्य और अनुशासन की मिसाल है।
छठ पूजा से पूर्ण होती है व्रती महिलाओं की सभी मनोकामना
धार्मिक अनुष्ठान के प्रति महिलाओं में विशेष लगाव होता है। खासक सूर्योपासना के महापर्व छठ पूजा के प्रति महिलाओं की श्रद्धा और तैयारी देखते ही बनती है। छठ पूजा की तैयारी में महिलाओं के साथ घर के पुरुष और बच्चे भी उत्साह के साथ जुड़े रहते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं साथ ही व्रतियों के आंचल में खुशियां भर जाती हैं।
मीरा देवी ने बताया कि सूर्योपासना के पर्व को लेकर मन में काफी उत्साह रहता है। व्रत की तैयारियां चल रही है। इसमें सबसे खास बात यह होती है इसमें पूरे परिवार का साथ मिलता है।
प्रियंका सिंह ने बताया कि भगवान भास्कर भक्तों को कभी निराश नहीं करते सदियों से छठ पूजा की मान्यता के महत्व का उल्लेख मिलता है। व्रती महिलाओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसकी तैयारी में पूरा परिवार लगा रहता है।
जानिए कब से शुरू होगा छठ पूजा
- छठ पूजा का पहला दिन : नहाय खाय - 0 5 नवंबर 2024, मंगलवार
- छठ पूजा का दूसरा दिन : खरना - 6 नवंबर 2024, बुधवार
- छठ पूजा का तीसरा दिन : संध्या अर्घ्य - 7 नवंबर , गुरुवार
- छठ पूजा का चौथा दिन : उषा अर्घ्य - 8 नवंबर, शुक्रवार
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