गोरक्षपीठ के लिए साल के दोनों (चैत्र एवं शारदीय) नवरात्र बेहद खास होते हैं। पहले दिन से ही वहां अनुष्ठान शुरू हो जाता है। पूजा और 10 दिन चलने वाले अनुष्ठान की सारी व्यवस्था मठ के पहली मंजिल पर स्थापित शक्तिपीठ पर ही होती है।
लोक कल्याण के लिए गोरक्षपीठ ने कभी भी परंपरा की फिक्र नहीं की : नवरात्र में योगी ने जब फर्ज के आगे तोड़ी थी परंपरा
Oct 14, 2024 18:38
Oct 14, 2024 18:38
नवरात्र और पीठ की परंपरा
उल्लेखनीय है कि गोरक्षपीठ के लिए साल के दोनों (चैत्र एवं शारदीय) नवरात्र बेहद खास होते हैं। पहले दिन से ही वहां अनुष्ठान शुरू हो जाता है। पूजा और 10 दिन चलने वाले अनुष्ठान की सारी व्यवस्था मठ के पहली मंजिल पर स्थापित शक्तिपीठ पर ही होती है। परंपरा रही है कि पहले दिन कलश स्थापना के बाद नवरात्रि तक पीठ के पीठाधीश्वर और उनके उत्तराधिकारी मठ से नीचे नहीं उतरते। पूजा के बाद रूटीन के काम और खास मुलाकातें ऊपर ही होती थीं।
ट्रेन हादसे के बाद लोगों की मदद के लिए योगी ने तोड़ी थी पीठ की परंपरा
सितंबर 2014 में फर्ज के आगे वर्षों से स्थापित यह परंपरा भी टूट गई थी। दरअसल गोरखपुर कैंट स्टेशन के पास नन्दानगर रेलवे क्रॉसिंग पर लखनऊ-बरौनी और मंडुआडीह-लखनऊ एक्सप्रेस की टक्कर हुई थी। रात हो रही थी। गुलाबी ठंड भी पड़ने लगी थी। हादसे की जगह से रेलवे और बस स्टेशन करीब 5-6 किमी की दूरी पर हैं। दो ट्रेनों के हजारों यात्री। रात का समय साधन उतने थे नहीं। यात्रियों को मय सामान और परिवार के साथ स्टेशन तक पहुंचना मुश्किल था। खास कर जिनके साथ छोटे बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग थे। चर्चा होने लगी कि छोटे महाराज (पूर्वांचल में लोग प्रेम से लोग योगी जी को इसी नाम से पुकारते हैं) आ जाते तो इस समस्या का हल निकल आता। हादसे की सूचना थी ही। लोगों के जरिए समस्या वह से भी वाकिफ हुए। उसकी गंभीरता को समझा। फिर क्या था? वह मठ से उतरे और लोगों की मदद के लिए दुर्घटना स्थल पर आए। साथ मे उनके खुद के संसाधन और समर्थक भी। उनके आने पर प्रशासन भी सक्रिय हुआ। देर रात तक सबको सुरक्षित स्टेशन पहुंचा दिया गया।
मुख्यमंत्री बनने के बाद बार नोएडा जाकर भी उन्होंने यही संदेश दिया
मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश के मुखिया के रूप में भी वह स्थापित मिथ को तोड़ने के लिए नोएडा गए। मान्यता थी कि बतौर मुख्यमंत्री जो भी नोएडा गया वह फिर से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बना। योगी न केवल पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे बल्कि लगातार दूसरी बार शानदार तरीके से सत्ता में वापसी का भी रिकॉर्ड भी रच दिया।
जिस अयोध्या का नेता नाम नहीं लेते थे वहां भी बार-बार गए
यही नहीं जिस अयोध्या के नाम से लोगों को करंट लगता था, वहां बार-बार जाकर उन्होंने साबित किया कि पहले की तरह वह अयोध्या के हैं और अयोध्या उनकी। और अब तो उनके ही कार्यकाल में उनके गुरु के सपनों के अनुसार अयोध्या में जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है बल्कि विभिन्न परियोजनाओं के जरिए अयोध्या का कायाकल्प हो रहा है। आने वाले वर्षों में अयोध्या का शुमार धार्मिक लिहाज से दुनियां के सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों में होगा।
काशी में डोम राजा के घर भोजन कर योगी के गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने भी तोड़ी थी परंपरा
समाज में फैली ऊंच-नीच और अछूत के खिलाफ संदेश देने के लिए ही योगी जी के पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने समाज के विरोध के बावजूद वर्षों पहले काशी में संतों के साथ डोमराजा के घर सहभोज किया था। वह भी तब जब समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव था। कुछ जतियों के यहां भोजन तो दूर लोग उनका छुआ हुआ कुछ भी नहीं ग्रहण करते थे।
कुछ और उदाहरण
पटना (बिहार) के महावीर मंदिर में पहली बार दलित समाज के एक पुजारी की नियुक्ति, रामजन्म भूमि के शिला पूजन के दौरान एक दलित से पहली शिला रखवाना भी इसी की कड़ी थी। सहभोज के जरिए व्यापक हिंदू समाज को जोड़ने के इस सिलसिले को योगी आदित्यनाथ ने पीठ के उत्तराधिकारी, पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री के रूप में भी जारी रखा है।
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