केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कानपुर के वाजिदपुर में नवनिर्मित 20 एमएलडी ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण किया। यह ट्रीटमेंट प्लांट 600 करोड़ रुपए की लागत से बनकर तैयार हुआ है। यह एशिया का सबसे बड़ा ट्र्रीटमेंट प्लांट है।
केंद्रीय मंत्री का दावा : प्रयागराज कुंभ 2025 से पहले गंगा होगी शुद्ध, नमामि गंगे परियोजना के तहत काम तेज
Feb 16, 2024 19:22
Feb 16, 2024 19:22
केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और प्रदेश सरकार में मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह कानपुर पहुंचे। उन्होंने जाजमऊ के वाजिदपुर में नवनिर्मित 20 एमएलडी के ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण किया। प्लांट कैसे काम करेगा, और ट्रीटमेंट प्लांट से जब पानी निकलेगा, तो उसकी गुणवत्ता कैसी होगी। उन्होंने इस पूरे प्रॉसेस को समझा। इसके साथ ही उन्होंने जिम्मेदार अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी जारी किए। मीडिया से बात करते हुए, उन्होंने सरकार की उपलब्धियां गिनाईं।
नमामि गंगे मिशन के तहत किए गए कार्य
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पिछले 09 वर्षों में नमामि गंगे परियोजना के तहत कई कार्य किए गए। इस दौरान 30 हजार करोड़ की लागत से पानी को शुद्ध करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण कराया गया। इसके साथ ही गंगा नदी की सहायक नदियों पर भी इसी तरह के ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए। गंगा नदी के पूरे ईको सिस्टम को सुधारने के लिए ग्लेशियर का स्टेबिलाइजेशन, छोटी नदियों को दोबारा जीवित करना। इन सभी क्षेत्रों में प्रयास मिशन नमामि गंगे के तहत हुए हैं।
सीसामऊ नाला बना पिकनिक स्पॉट
उन्होंने कहा कि कानपुर के इस परिदश्य को देखकर निश्चित रूप से मिशन नमामि गंगे सफल हुआ है। मुझे याद आता है जब गंगा के अविरलता और निर्मलता पर प्रश्न चिन्ह लगाए जाते थे, तो तब सीसामऊ नाले की तश्वीर और वीडियो दिखाए जाते थे। वो सीसामऊ का नाला 14 करोड़ पानी रोज गंगा में प्रत्यक्षरूप से सीवेज का पानी छोड़ता था। आज वही नाला पिकनिक स्पॉट जैसा बन गया है। कानपुर की लेदर इंडस्ट्री विश्वविख्यात है। इतना बड़ा ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने के कारण गंदा पानी गंगा को प्रदूषित करता था। पुराना ट्रीटमेंट प्लांट 09 एमएलडी का था, जो जल का शोधन पूरी क्षमता से नहीं कर पाता था।
एशिया का सबसे बड़ा ट्रीटमेंट प्लांट
कानपुर में एशिया का सबसे बड़ी ट्रीटमेंट 600 करोड़ रुपए की लागत से बनकर तैयार हुआ है। जिसमें 20 एमएलडी पानी को ट्रीट करके, विश्वस्तरीय मानक पर पानी को लाकर खेतों में सिचाई के लिए भेजा जा रहा है। इससे पहले जहरीला पानी टेनरी का जाता था। उससे गंगा का जलीय जीवन लगभग समाप्त हो गया था। ऐसा कहा जाता था कि कानपुर में गंगा के पानी में उंगली डुबोकर बाहर निकालो तो उंगलियों का रंग बदल जाता था। जलीय जीवों का जीवन यहां पर संभव नहीं था।
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