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कभी इटावा ने कांशीराम को पहुंचाया था संसद : फिर बसपा हो गई जीत की मोहताज, मुलायम के घर में भाजपा ने कैसे लगाई सेंध?

फिर बसपा हो गई जीत की मोहताज, मुलायम के घर में भाजपा ने कैसे लगाई सेंध?
UPT | कभी इटावा ने कांशीराम को पहुंचाया था संसद

May 10, 2024 20:10

इटावा लोकसभा सीट का जिक्र आते ही जेहन में मुलायम सिंह यादव की तस्वीर उभरती है। कभी इटावा के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव सत्ता की सीढ़ी ऐसी चढ़ते गए कि पहले वह खुद और फिर उनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

May 10, 2024 20:10

Short Highlights
  • इटावा ने कांशीराम को पहुंचाया था संसद
  • यादव परिवार का काफी ज्यादा प्रभाव
  • 2014 से भाजपा ने की वापसी
Etawah News : इटावा, वह लोकसभा सीट जिसका जिक्र आते ही जेहन में मुलायम सिंह यादव की तस्वीर उभरती है। कभी इटावा के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव सत्ता की सीढ़ी ऐसी चढ़ते गए कि पहले वह खुद और फिर उनके बेटे अखिलेश यादव  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसी इटावा ने कभी बसपा के संस्थापक रहे कांशीराम को भी जिताकर संसद भेजा था। लेकिन फिर बसपा उसके बाद यहां से कभी जीत नहीं पाई। देश में चौथे चरण की वोटिंग 13 मई को होनी है। उत्तर प्रदेश में चौथे चरण में जिन सीटों पर वोटिंग होनी है, उसमें  शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच शामिल हैं। इसके पहले के एपिसोड में हम शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख और फर्रुखाबाद की बात कर चुके हैं। आज बात इटावा की...

कांग्रेस और समाजवादियों का गढ़ रही सीट
इटावा की लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई। यहां से पहली बार सोशलिस्ट पार्टी के नेता अर्जुन सिंह भदौरिया और कांग्रेस के रोहनलाल चतुर्वेदी चुनाव जीते। इसके बाद 1962 में कांग्रेस के टिकट पर जीएम दीक्षित ने जीत हासिल की। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अर्जुन सिंह भदौरिया दोबारा मैदान में उतरे और जीत गए। लेकिन 1971 में कांग्रेस ने इटावा की सीट दोबारा हासिल कर ली। 1977 में जब इमरजेंसी के बाद चुनाव हुए तो हर जगह की तरह इटावा में भी जनता पार्टी का सांसद चुना गया। इस बार भी टिकट अर्जुन सिंह भदौरिया को ही मिला था। 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर राम सिंह शाक्य चुनाव लड़े और जीत गए। 1984 में कांग्रेस (इंदिरा) ने टिकट रघुराज सिंह चौधरी को दिया और वह सांसद बन गए। इसके बाद 1989 में राम सिंह शाक्य ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की।

गठबंधन से जीते कांशीराम
साल 1991 आया। देश में उस वक्त राम मंदिर की लहर थी और भाजपा उसी के रथ पर सवार थी। बसपा के संस्थापक रहे कांशीराम 1988 में इलाहाबाद और 1989 में पूर्वी दिल्ली की लोकसभा सीट से किस्मत आजमा चुके थे। एक ओर कांशीराम को संसद तक पहुंचना था और दूसरी ओर भाजपा के रथ को थामना था। इसका हल निकला सपा और बसपा के गठबंधन के जरिए। नया नारा आया- 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम'। मुलायम और कांशीराम के साथ आने का गणित काम कर गया और कांशीराम ने अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी को 20 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया। फिर समाजवादी पार्टी का दौर शुरु हुआ। राम सिंह शाक्य सपा के टिकट पर चुनाव जीत गए।

आखिरकार भाजपा का खुला खाता
इटावा की लोकसभा सीट को अस्तित्व में आए 40 साल से ज्यादा का वक्त बीत गया था। लेकिन अब तक भारतीय जनता पार्टी यहां अपना खाता नहीं खोल पाई थी। लेकिन यह चक्र भी आखिरकार टूट गया। भाजपा के टिकट पर सुखदा मिश्रा ने 1998 का चुनाव जीत लिया था। लेकिन यह खुशी केवल 1 साल ही टिक पाई और फिर भाजपा अगले 15 साल के लिए वनवास में चली गई। 1999 और 2004 में सपा के रघुराज सिंह शाक्य ने लगातार दो बार चुनाव जीता। वह इटावा के इतिहास में दो बार लगातार जीतने वाले एकलौते प्रत्याशी हैं। 2009 में सपा के टिकट पर प्रेमदास कठेरिया ने भी चुनाव जीत लिया।

2014 से भाजपा ने की वापसी
2014 की मोदी लहर में अशोक कुमार दोहरे कमल का निशान लेकर मैदान में कूद गए। उनके सामने सपा ने प्रेम दास कठेरिया और बसपा ने अजय पाल सिंह को टिकट दिया। अशोक दोहरे को 4.31 लाख वोट मिले और कठेरिया को 2.66 लाख वोट। वहीं बसपा प्रत्याशी अजय पाल मात्र 1.92 लाख वोट पर सिमट गए। भाजपा का वनवास खत्म हुआ और अशोक दोहरे को 1.72 लाख वोटों के अंतर से जीत मिली। 2019 में भाजपा ने अशोक दोहरे का टिकट काटकर राम शंकर कठेरिया को दे दिया। दोहरे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और उन्हें टिकट भी मिल गया। इस बार सपा ने अपना प्रत्याशी बदलकर कमलेश कठेरिया को उम्मीदवार बनाया। 2019 में सपा और बसपा का गठबंधन होने के कारण सपा प्रत्याशी का वोट प्रतिशत तो बढ़ा, लेकिन वह चुनाव नहीं जीत पाए। राम शंकर कठेरिया ने 5.22 लाख वोट हासिल किए और कमलेश कठेरिया को 64 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अशोक दोहरे को मात्र 16 हजार वोट ही हासिल हुए।

यादव परिवार का काफी ज्यादा प्रभाव
इटावा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभाएं इटावा, भरथना, डिबियापुर, औरेया, सिकंदरा आते हैं। इटावा और भरथना इटावा जिले, औरेया और डिबियापुर औरेया जिले और सिकंदरा सीट कानपुर देहात में आती है। इसमें से इटावा, औरेया और सिकंदरा सीट पर भाजपा का कब्जा है, जबकि भरथना और डिबियापुर की सीट सपा के खाते में है। मुलायम के परिवार ने भले ही यहां से एक भी चुनाव न लड़ा हो, लेकिन उनका प्रभाव इटावा की सीट पर हमेशा रहा। मुलायम और उनके बेटे दोनों सैफई में जन्मे, जो इटावा जिले में ही पड़ता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने वाले ए. ओ. ह्यूम 1857 में इटावा के ही जिला कलेक्टर थे। 2008 में यह सीट आरक्षित हो गई। यहां दलित वोटर्स काफी ज्यादा संख्या में हैं। अगर आंकड़ों पर नजर डाले, तो इटावा में दलित वोटर्स 4.5 लाख, ब्राह्मण 3 लाख, ठाकुर 1.2 लाख और मुस्लिम 1 लाख के करीब हैं। वहीं ओबीसी में लोधी वोटर इटावा में सबसे ज्यादा हैं।

इतिहास रचने उतरेंगे भाजपा प्रत्याशी?
भाजपा ने 2024 में अपने मौजूदा सांसद राम शंकर कठेरिया को ही प्रत्याशी बनाया है। अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले वह भाजपा के पहले और इटावा के इतिहास के दूसरे सांसद बन जाएंगे। लेकिन उनकी यह जीत इतनी भी आसान नहीं होने वाली है। कठेरिया के खिलाफ उनकी ही पत्नी मृदुला कठेरिया ने निर्दलीय नामांकन भर दिया था। हालांकि उन्होंने बाद में नामांकन वापस ले लिया। मृदुला इसके पहले 2019 में भी निर्दलीय नामांकन भरकर वापस ले चुकी हैं। लेकिन इसके कारण जनता के बीच गलत संदेश जा रहा है। रामशंकर कठेरिया दलित उपजाति धानुक समुदाय से आते हैं। उनके सामने सपा ने जितेंद्र दोहरे को उतार दिया है। वहीं बसपा की तरफ से सारिका सिंह बघेल को टिकट मिला है। इटावा में एक बड़ी तादाद है, जो वर्तमान सांसद से नाराज है। जानकार भी ऐसा मानते हैं कि मुलायम परिवार की छाप अब भी इटावा में बरकरार है और यही वजह है कि भाजपा के लिए यह टेढ़ी खीर होने वाला है। लेकिन जनता किसके हक में फैसला करेगी, वह 4 जून को स्पष्ट हो जाएगा।

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