कभी लोहिया जीते थे फर्रुखाबाद से चुनाव : फिर सलमान खुर्शीद का बना गढ़, अब भाजपा के पक्ष में 'खुल्ला खेल'?

फिर सलमान खुर्शीद का बना गढ़, अब भाजपा के पक्ष में 'खुल्ला खेल'?
UPT | कभी लोहिया जीते थे फर्रुखाबाद से चुनाव

May 10, 2024 17:01

फर्रुखाबाद समेत उत्तर प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों पर 13 मई को चौथे चरण में वोट डाले जाने हैं। इसमें फर्रुखाबाद के अलावा शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच शामिल है।

May 10, 2024 17:01

Short Highlights
  • फर्रुखाबाद में दिलचस्प होगा मुकाबला
  • कोई प्रत्याशी नहीं लगा पाया हैट्रिक
  • राम मनोहर लोहिया भी लड़े थे चुनाव
Farrukhabad News : फर्रुखाबाद समेत उत्तर प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों पर 13 मई को चौथे चरण में वोट डाले जाने हैं। इसमें फर्रुखाबाद के अलावा शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच शामिल है। फर्रुखाबाद को लेकर एक कहावत कही जाती है कि 'खुल्ला खेल फर्रुखाबादी'। फर्रुखाबाद में खुल्ला खेल किसके पक्ष में है, इस पर आज हम चर्चा करेंगे…

राम मनोहर लोहिया लड़े थे चुनाव
1952 में जब देश में आम चुनाव हुए, तब कांग्रेस के मूलचंद दुबे और वेंकटेश नारायण तिवारी फर्रुखाबाद से जीतकर संसद पहुंचे। उस समय एक सीट पर दो सांसद चुने जाते थे। मूलचंद दुबे को पहले 1957 और फिर 1962 में भी जनता का आशीर्वाद मिला और वह लगातार तीन बार फर्रुखाबाद से सांसद बने। 1962 में जब उपचुनाव हुए, तो राम मनोहर लोहिया ने पर्चा भरा। लोहिया इसके पहले 1962 का आम चुनाव जवाहर लाल नेहरु के खिलाफ फूलपूर से लड़े थे और हार गए थे। लेकिन उपचुनाव में फर्रुखाबाद की जनता ने उन्हें जिताकर संसद भेज दिया।

इमरजेंसी के पहले और बाद का दौर
1967 में लोहिया चुनाव लड़ने कन्नौज पहुंच गए और फर्रुखाबाद में फिर से कांग्रेस की वापसी हुई और अवधेश चंद्र सिंह राठौर चुनाव जीते। उन्होंने 1971 में फिर यही करिश्मा दोहरा दिया। इसके बाद देश में इमरजेंसी लग गई। 1977 में जब इमरजेंसी के बाद चुनाव हुए तो जनता पार्टी के दया राम शाक्य ने फर्रुखाबाद को जीत लिया। ये जीत 1980 में भी बरकरार रही। लेकिन कांग्रेस की एक बार फिर वापसी हुई और तब के कांग्रेस के दिग्गज नेता और सलमान खुर्शीद के पिता खुर्शीद आलम खान ने चुनाव जीत लिया। 1989 में जनता दल के संतोष भदौरिया सांसद बने। इसके बाद 1991 में खुर्शीद आलम खान के बेटे सलमान खुर्शीद ने फर्रुखाबाद से चुनाव लड़ा और जीत गए।

जब भाजपा ने खोला अपना खाता
भारतीय जनता पार्टी ने 1996 में साक्षी महाराज को फर्रुखाबाद से चुनावी मैदान में उतारा। साक्षी महाराज ने पहले 1996 और फिर 1998 में फतह हासिल की। अब बारी समाजवादी पार्टी की थी। 1999 में चंद्रभूषण सिंह सपा के टिकट पर मैदान में आए और जीतकर संसद पहुंचे। चंद्रभूषण की यह जीत 2004 में भी बरकरार रही। लेकिन फिर सलमान खुर्शीद की वापसी हुई और वह 2009 में यहां से सांसद बन गए। उनके सामने बसपा के नरेश चंद्र अग्रवाल और सपा के चंद्र भूषण सिंह थे। इस चुनाव में बसपा दूसरे, सपा तीसरे और भाजपा चौथे नंबर पर रही थी। वहीं सलमान खुर्शीद ने मात्र 27 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी।

भाजपा की 2014 में हुई वापसी
2014 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार बनाया, तो फर्रुखाबाद की जनता भी मोदी लहर में खिंची चली गई। भाजपा के मुकेश राजपूत 4 लाख वोट पाकर चुनाव जीत गए। इस चुनाव में सपा के रामेश्वर सिंह यादव को 2.5 लाख वोट, बसपा के जयवीर सिंह को 1.14 लाख वोट और कांग्रेस के सलमान खुर्शीद को मात्र 95 हजार वोट मिले। 2014 में जहां भाजपा की जीत का अंतर 1.5 लाख था, वह 2019 में बढ़कर 2.2 लाख हो गया। मुकेश राजपूत को इस बार 5.69 लाक वोट मिले और वह लगातार दूसरी बार सांसद बन गए। सपा-बसपा के गठबंधन के कारण यह सीट बसपा के खाते में आई और प्रत्याशी मनोज अग्रवाल 3.48 लाख वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे। लेकिन सलमान खुर्शीद की स्थिति और खराब हो गई और वह मात्र 55 हजार वोट ही पा सके।

कोई प्रत्याशी नहीं लगा पाया हैट्रिक
फर्रुखाबाद का इतिहास इस बात का गवाह है कि यहां आज तक कोई भी प्रत्याशी जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाया है। 1952 के आम चुनाव को छोड़ दें, तो मूलचंद दुबे, अवधेश सिंह, दया राम शाक्य, साक्षी महाराज और चंद्र भूषण लगातार दो बार चुनाव जीते, लेकिन वह तीसरी बार फर्रुखाबाद की सीट नहीं जीत पाए। अब साबित करने की बारी मुकेश राजपूत की है। भाजपा ने उन्हें तीसरी बार अपना प्रत्याशी बनाया है। उनके सामने सपा के नवल किशोर शाक्य और बसपा के क्रांति पांडेय हैं। अगर फर्रुखाबाद अपना इतिहास दोहराता है, तो मुकेश राजपूत की हार तय है। लेकिन राजनीति में कयासों से ज्यादा समीकरण मायने रखते हैं। फर्रुखाबाद में लोधी राजपूत मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। इसके अलावा यादव, पाल और कहार समाज के मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं। सवर्ण में ठाकुर और ब्राह्मण मतादाताओं की तादाद ज्यादा है। इलाके में अल्पसंख्यक मतदाता भी हैं, लेकिन किसी भी प्रमुख पार्टी ने यहां से अल्पसंख्यक मतदाता को टिकट नहीं दिया है। ऐसे में अल्पसंख्यक वोटरों के बिखराव की पूरी उम्मीद है। वैसे भी सारी तस्वीर 4 जून को साफ हो जाएगी।

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