हाथरस का हत्यारा पंडाल : चार चूक जिन्होंने सत्संग को श्मशान बना दिया

चार चूक जिन्होंने सत्संग को श्मशान बना दिया
UPT | हाथरस का हत्यारा पंडाल

Jul 03, 2024 14:50

उत्तर प्रदेश के हाथरस में सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 121 लोगों की जान चली गई। मरने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। लेकिन आखिर इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे? क्या प्रशासन के इंतजाम पर्याप्त नहीं थे या फिर वजह कुछ और थी?

Jul 03, 2024 14:50

Short Highlights
  • हाथरस के पंडाल में 121 लोगों की मौत
  • बाबा के पैर की धूल लेने के लिए लोग पागल
  • धक्का-मुक्की में कई लोगों की जान
Hathras News : उत्तर प्रदेश के हाथरस में सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 121 लोगों की जान चली गई। मरने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। योगी सरकार ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है। स्थिति कितनी भयावह रही होगी, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि शवों को देखकर एक सिपाही को हार्ट अटैक आ गया। लेकिन आखिर इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे? क्या प्रशासन के इंतजाम पर्याप्त नहीं थे या फिर वजह कुछ और थी?

पहली चूक : अनुमति 80 हजार की, जुटे 2.5 लाख
जब सत्संग के लिए लोग अपने घरों से निकले होंगे, तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसमें से कई वापस लौटकर अपने घर नहीं आ पाएंगे। जिस फुलराई गांव में यह घटना हुई, वहां करीब 150 बीघा के खेत में सत्संग का आयोजन हुआ था। पुलिस ने अपने एफआईआर में ये बात दर्ज की है कि आयोजन के लिए केवल 80 हजार लोगों की अनुमति दी गई थी, लेकिन तीन गुने से ज्यादा भीड़ जुटा ली गई। सत्संग में शामिल होने के लिए 2.5 लाख से ज्यादा लोग जुटे थे। यही नहीं, उससे भी ताज्जुब की बात ये है कि इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए वहां सिर्फ 40 पुलिसकर्मी मौजूद थे। ना प्रशासन से सुध ली और न आयोजकों ने उन्हें बताना जरूरी समझा।

दूसरी चूक : पिछली गलतियों से नहीं सीखा प्रशासन
बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि सिर्फ अपनी ही नहीं, दूसरे की गलतियों से भी सीखना चाहिए। लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा ने कोरोना काल के दौरान फर्रुखाबाद में भी ऐसी ही भीड़ जुटाई थी। तब कार्यक्रम में केवल 50 लोगों को शामिल होने की अनुमति दी गई थी, लेकिन पहुंचे थे 50 हजार लोग। स्थिति ऐसी हो गई थी कि शहर की यातायात व्यवस्था तक ध्वस्त हो गई थी। उस समय भी जिला प्रशासन ने आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन न तो कोई कार्रवाई हुई, न ही प्रशासन ने कोई सबक सीखा। हर बार आयोजनों में अनुमति से कई गुना ज्यादा लोग जुटते रहे और प्रशासन मूक बनकर देखता रहा।

तीसरी चूक : बाबा का वीआईपी ट्रीटमेंट बना काल
हमारे देश में तो किसी मामूली सी पार्टी के मामूली से शहर में मामूली से पद पर आसीन छुटभैया नेता भी अपने आप को वीआईपी मानता है। ये तो फिर भी लाखों की भीड़ लेकर चलने वाला बाबा है। वीआईपी ट्रीटमेंट के बिना आखिर काम कैसे चलता। लग्जरी गाड़ियां, प्राइवेट आर्मी, सूट-बूट पहनकर प्रवचन सुनाना, ये सबके बस की बात तो नहीं। जिसके कार्यक्रम में खुद अखिलेश यादव पहुंच रहे हों, वो कई छोटा-मोटा आदमी तो होगा नहीं। लिहाजा हाथरस में भी जब सत्संग खत्म हुआ, तो लोग बाहर जाने लगे। लेकिन बाबा के सेवादारों ने सबको रोककर पहले बाबा को वहां से निकाला। गर्मी और उमस का हाल तो हम सबने देखा ही है। जैसे ही बाबा निकले, लोग उमड़ पड़े पहले बाहर निकलने को। इसी जल्दीबाजी में भगदड़ मच गई। सोचिए कि बाबा का रसूख इतना है कि इतने बड़े हादसे के बाद भी पुलिस ने एफआईआर में बाबा का नाम नहीं जोड़ा है।

चौथी चूक : जनता भी भेड़ चाल में चल रही
भारत में कई धर्मों के लोग रहते हैं। जनसंख्या के लिहाज से हम चीन को भी पीछे छोड़कर दुनिया में पहले नंबर पर आ चुके हैं। यहीं वजह है कि हमारे यहां धर्मगुरुओं की संख्या भी ज्यादा है। हर रोज देश के कई हिस्सों में अलग-अलग धर्मों के कार्यक्रम होते ही रहते हैं। इसमें भीड़ भी दो-तीन हजार नहीं, लाखों में जुटती है। जनता भी ऐसे बाबाओं के पीछे आंखें बंद कर दौड़ती है। कहते हैं कि ये बाबा अपने आश्रम में लोगों को पानी पिलाता था। दावा करता था कि पीने से सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पानी को पीने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती थी। जहां सत्संग चल रहा था, वहां बाबा के पैरों के नीचे की मिट्टी उठाने के लिए लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर आगे जाने की कोशिश कर रहे थे। ये चरणों की धूल ऐसे लोगों की आखिरी भूल हो गई।

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