कानपुर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं ने प्रमुख कोशिका रिसेप्टर की ऐतिहासिक खोज की है। कानपुर (IITK) के जैविक विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व में एक शोध...
Kanpur News : संक्रामक रोगों पर लगेगी रोक, आईआईटी के शोधकर्ताओं की ऐतिहासिक खोज, जानें डिटेल
Aug 01, 2024 13:24
Aug 01, 2024 13:24
क्या कहते हैं प्रो. अरुण के. शुक्ला
कानपुर आईआईटी के जैविक विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. अरुण के. शुक्ला ने कहा कि कई सालों से दुनियाभर के शोधकर्ता डफी एंटीजन रिसेप्टर के रहस्यों को जानने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि यह बैक्टीरिया और परजीवियों को हमारी कोशिकाओं पर हमला करने और बीमारी पैदा करने में मदद करने के लिए एक 'प्रवेश द्वार' के रूप में कार्य करता है। इस रिसेप्टर को हाई-रिज़ॉल्यूशन पर देखने में हमारी सफलता हमें यह समझने में मदद करेगी कि रोगाणु कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए इसका कैसे फायदा उठाते हैं। यह जानकारी नई एंटीबायोटिक दवाओं और एंटीमलेरियल सहित उन्नत दवाओं को बनाने में मददगार साबित होगी, खासकर ऐसे समय में, जब हम बढ़ते एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं।
नए उपचारों की मिलेगी जानकारी
प्रोफेसर शुक्ला ने कहा, 'जबकि डफी एंटीजन रिसेप्टर अधिकांश आबादी में आम तौर पर पाया जाता है, अफ्रीकी मूल के लोगों का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत आनुवंशिक भिन्नता के कारण अपने लाल रक्त कोशिकाओं पर डफी रिसेप्टर का उत्पादन नहीं करता है। यह उन्हें मलेरिया परजीवियों के कुछ प्रकारों के लिए स्वाभाविक रूप से प्रतिरोधी बनाता है, जो उन कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए उस विशिष्ट ‘प्रवेश द्वार’ पर निर्भर करते हैं। यह दर्शाता है कि इन बीमारियों के लिए डफी एंटीजन रिसेप्टर कितना महत्वपूर्ण है और इसे लक्षित करने से नए उपचार कैसे संभव हो सकते हैं।
संक्रमण को प्रभावी ढंग से रोकना संभव होगा
अनुसंधान दल ने डफी एंटीजन रिसेप्टर की जटिल संरचना को उजागर करने के लिए अत्याधुनिक क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (cryo-EM) का इस्तेमाल किया, जिससे डफी रिसेप्टर की अनूठी संरचनात्मक विशेषताओं नई जानकारी प्राप्त हुई और इसे मानव शरीर में समान रिसेप्टर्स से अलग किया जा सका। यह विस्तृत समझ अत्यधिक लक्षित उपचारों के निदान में महत्वपूर्ण होगी, जो अवांछित दुष्प्रभावों के बिना संक्रमण को प्रभावी ढंग से रोक सकती है।
संक्रामक रोगों के बारे में समझ बढ़ेगी
कानपुर आईआईटी के निदेशक प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि शोधकर्ताओं की हमारी टीम की इस उल्लेखनीय उपलब्धि ने आईआईटी कानपुर की उपलब्धियों के ताज में एक और कीर्तिमान स्थापित किया है, जो वैज्ञानिक ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाती है। इस शोध की सफलता संक्रामक रोगों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाएगी और दवा प्रतिरोधी रोगजनकों के लिए उपचार विकसित करने में मदद करेगी।
शोध दल में ये रहे शामिल
शोध दल में आईआईटी कानपुर के शिरशा साहा, जगन्नाथ महाराणा, सलोनी शर्मा, नशराह जैदी, अन्नू दलाल, सुधा मिश्रा, मणिशंकर गांगुली, दिव्यांशु तिवारी, रामानुज बनर्जी और प्रो. अरुण कुमार शुक्ला शामिल थे। इसके अलावा, टीम में CDRI लखनऊ, स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख, कोरिया गणराज्य के सूवॉन, जापान के तोहोकू और यूनाइटेड किंगडम के बेलफास्ट के शोधकर्ता भी शामिल थे। इस शोध को मुख्य रूप से जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB), DBT वेलकम ट्रस्ट इंडिया अलायंस और आईआईटी कानपुर द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
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