Uttar Pradesh Exit Polls : बसपा की नाकामी के लिए कौन जिम्मेदार, जानें कहां हो रही मायावती से चूक

बसपा की नाकामी के लिए कौन जिम्मेदार, जानें कहां हो रही मायावती से चूक
UPT | बसपा सुप्रीमो मायावती

Jun 03, 2024 17:22

लोकसभा चुनाव के 4 जून को आने वाले परिणाम से पहले विभिन्न एग्जिट पोल के आंकड़ों को लेकर एनडीए खेमा जहां गदगद है, वहीं विपक्ष की ओर से नतीजे इसके पूरी तरह से उलट होने के दावे किए जा रहे हैं...

Jun 03, 2024 17:22

Lucknow News (संजय सिंह) : लोकसभा चुनाव के 4 जून को आने वाले परिणाम से पहले विभिन्न एग्जिट पोल के आंकड़ों को लेकर एनडीए खेमा जहां गदगद है, वहीं विपक्ष की ओर से नतीजे इसके पूरी तरह से उलट होने के दावे किए जा रहे हैं। उनका कहना है कि इस बार जनादेश उनके गठबंधन इंडिया को ही मिलेगा। इन सबके बीच दोनों गठबंधन से किनारा करके अकेले मैदान में उतरने वाली बसपा को जिस तरह से एक भी सीट नहीं मिलने की बात एग्जिट पोल में सामने आई है, उसे पार्टी समर्थकों के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। अगर चार जून को वाकई में ऐसा होता है तो इससे पार्टी सुप्रीमो मायावती के रणनीतिक फैसले पर सवाल उठना तय है।

2019 में इन सीटों पर बसपा को मिली थी जीत
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और रालोद एक साथ थे। ये गठबंधन मायावती के लिए अपने सहयोगी दलों की तुलना में फायदे वाला साबित हुआ और उनके 10 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, जबकि सपा के हिस्से में महज पांच सीटें आईं थीं। बसपा को 19.3 फीसदी वोट मिले थे। सपा 18 फीसदी वोट हासिल कर सकी थी। इस बार एग्जिट पोल बसपा के शून्य पर पहुंचने की भविष्यवाणी कर चुके हैं। 2019 में बसपा ने जिन सीटों पर जीत दर्ज की थी, उनमें से किसी पर भी इस बार उसका जीत दोहराना मुश्किल है। इसके अलावा एग्जिट पोल अन्य सीटों पर भी बसपा उम्मीदवारों के जीत से दूर रहने का दावा कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा के अंबेडकरनगर से रितेश पांडेय, अमरोहा से कुंवर दानिश अली, बिजनौर से मलूक नागर, गाजीपुर से अफजाल अंसारी, घोसी से अतुल कुमार सिंह, जौनपुर से श्याम सिंह यादव, लालगंज से संगीता आजाद, नगीना से गिरीश चंद्र, सहारनपुर से हाजी फजलउर्रहमान और श्रवास्ती से राम शिरोमणि ने जीत दर्ज की थी। इस बार पार्टी ने नए चेहरों पर दांव लगाया, लेकिन उसे खाली हाथ ही रहना पड़ सकता है।

अपना वोट बैंक संभालने में असफल हो रही बसपा
देखा जाए तो चुनाव दर चुनाव बसपा मतदाताओं का भरोसा जीतने में असफल होती जा रही है। पार्टी दलित मतदाताओं के बीच अपने घटते जनाधार को रोकने में भी नाकाम साबित हो रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में वह 20 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने में सफल हुई थी, लेकिन फिर इसमें गिरावट का सिलसिला शुरू हो गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज 12.8 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी और और उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। कभी बसपा की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले दलितों ने भी उससे किनारा करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा उसका परंपरागत जाटव वोट भी उससे छिटकने लगा है। भाजपा दलित वोटों पर सेंध लगाने में सफल हुई है, तो अधिकांश अल्पसंख्यक मतदाता भी बसपा की तुलना में सपा के पाले में नजर आ रहे हैं।

चुनाव दर चुनाव खराब प्रदर्शन जारी
चुनाव दर चुनाव बसपा की खराब होती हालत पर नजर डालें तो 2007 में पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग के दम पर सरकार बनाई। पार्टी ने 206 सीटों पर जीत दर्ज की तो अधिकांश जगह उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहकर अपना दबदबा साबित करने में सफल रहे। तब बसपा को 30.43 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं 2012 में सपा ने 224 सीटें जीतने के साथ उसे करारी शिकस्त दी। सपा को 29.29 फीसद और बसपा को 25.95 फीसद वोट मिले। इस तरह बसपा पिछले चुनाव की तुलना में पांच प्रतिशत कम वोट मिलने के कारण सत्ता से बाहर हो गई। 2017 के चुनाव में मतदाताओं की उपेक्षा के कारण बसपा महज 19 सीट जीत सकी, उसके कई चर्चित चेहरों को हार का मुंह देखना पड़ा।

मायावती के फैसले पर उठे सवाल
भाजपा की बढ़ती सियासी ताकत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की युवाओं के बीच लोकप्रियता को देखते हुए मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित किया। आकाश लोकसभा चुनाव में रैलियों केे जरिए मैदान में उतरकर कोशिश कर रहे थे। लेकिन, मायावती ने खुद ही उनकी परिपक्वता पर सवाल उठाकर उन्हें साइड लाइन कर दिया। इसे लेकर भी सवाल उठे। खास बात है कि इस बार लोकसभा चुनाव में जिस तरह विपक्ष केंद्र में सत्ता बदलने के लिए हाथ पैर मारता नजर आया, वहीं मायावती सक्रिय नजर नहीं आईं। 400 पार का आंकड़ा पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित जहां भाजपा नेता फ्रंट फुट पर जोर-शोर से मैदान में नजर आए, वहीं मायावती का निष्क्रिय बना रहना भी पार्टी समर्थकों को रास नहीं आया। वह ज्यादातार ट्वीट पर ही सिमटी रहीं। समाजवादी पार्टी सहित अन्य विपक्षी दल शुरुआत से ही बसपा पर भाजपा की भी टीम होने का आरोप लगाते आए हैं। इस बार भी मायावती पर चुनाव में भाजपा की मदद करने का आरोप लगा।

रणनीति में बदलाव करने की दरकार
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की चार बार मुख्यमंत्री बनने वालीं मायावती लंबे अर्से से पार्टी को मतदाताओं से जोड़ने में सफल नहीं हो पा रही हैं। पार्टी संस्थापक कांशीराम के समय से जुड़े सभी बड़े नेता बसपा से किनारा कर चुके हैं या उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेताओं को खड़ा करना भी मायावती की रणनीति का कभी हिस्सा नहीं रहा। एक तरफ युवा मतदाताओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। इनमें दलित वर्ग से लेकर अन्य तबके के लोग शामिल हैं। ये वर्ग शिक्षित होने के साथ आधुनिक विचार पसंद करता है। बसपा की ओर से इन्हें जोड़ने की प्रभावी पहल नहीं सामने आई है। मायावती अभी भी पुराने तरीके के सहारे हैं। उन्होंने स्वयं आकाश आनंद को नेशनल कोओर्डिनेटर और अपने उत्तराधिकारी की अहम जिम्मेदारियों से पार्टी व मूवमेन्ट के व्यापक हित में पूर्ण परिपक्वता आने तक अलग कर दिया है। मायावती के विरोधी उनके सक्रिय नहीं रहने को प्रवर्तन निदेशालय और अन्य केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के डर से जोड़ते रहे हैं। वजह जो भी हो, अगर एग्जिट पोल के आंकड़े 4 जून को हकीकत में तब्दील होते हैं, तो मायावती को अपनी रणनीति को लेकर नए सिरे से आत्म चिंतन करना होगा, वह सिर्फ ट्वीट और आरोप प्रत्यारोप की राजनीति के सहारे जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में सफल नहीं हो सकतीं। अगर बसपा ने खुद को नहीं बदला तो यूपी की राजनीति में उसकी वापसी बेहद मुश्किल होगी।

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